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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संसृष्टता १११५ सांस्थ संसृष्टता (वि०) [सम्+सृज्+क्त] समाज, संध। संसृष्टत्व देखों ऊपर। संसृष्टिः (स्त्री०) [सम्+सृज्+क्तिन्] ०सम्बंधी, जोड़, मिलाप, मिलन। साहचर्य, सहभागिता, साझीदारी। संग्रह, संचय करना, जोड़ना। संस्रवत (वि०) भरता हुआ, प्रच्यवत। (जयो० १०/६१) संसेकः (पुं०) [सम्+सिच्+घञ्] तर करना। (वीरो० १३/१५) संसेवमान् (वि०) सेवा करने वाला। छिड़कना। संम्रोतर (वि०) उक्ति प्रवाह। (जयो० ३/९३) संस्कृ (सक०) संस्कारित करना, योग्य बनाना। (सुद०३/१२) संस्कर्त (पुं०) [सम्+कृ+तृच] संस्कारित करना, बनाना, तैयार करना। संस्कारः (पुं०) [सम्+कृ+घञ्] संस्कृति। (जयो० २२/८३) ०सजावट। (मुनि० ३) शिक्षा, अनुशासन, सीख, प्रशिक्षण। ०सत्क्रिया। अलंकरण। अन्त:शुद्धि, पवित्रीकरण। पुनीतकार्य, अच्छे भाव। रश्मि, आशा। (जयो०वृ० ४/४३) ०प्रमार्जन, प्रक्षालन। प्रत्यास्मरण शक्ति, संस्मरण। संस्कारधारा (स्त्री०) परम्परागत धारा। (जयो०२/१११) संस्काराभाव: (पुं०) संस्कार का अभाव, अनुशासन की कमी। (हित० २४) संस्कृत् (भू०क०कृ०) [सम्+कृ+क्त] परिष्कृत्, परिमार्जित। संस्कारित, संस्कार युक्त किया गया। ०अनुभावित। (जयो० ३/५९) सुनिर्मित, सुसम्पादित, सुरचित। विधिवत् घटित, अच्छी तरह व्यवस्थि किया गया। ०व्याकरण निष्ठ बनाया गया। ०भासित। (जयो० १०/८९) अर्थसंस्कृतकुड्येषु संक्रातप्रतिमा नराः। विलोक्यते स्फुटं यत्र चित्राङ्का इव मञ्जुलाः। (जयो० १०/८९) 'संस्कृतस्य जगतो देववाणी। (जयोवृ० २२/८६) संस्कृतिः (स्त्री०) संस्कारित विधि, परिष्कृत विधि, जिसमें संस्कारों में बल दिया जाता है। संस्कार (जयो० २२/८३) यस्मात् गेहिभिन्नसंस्कृति विधौ नाना त्रुटि ह्रीऋषिः। (मुनि० ३१) संस्क्रिया (स्त्री०) संस्कार युक्त क्रिया। (सुद० १/३१) शुद्धि संस्कार, परिमार्जित, क्रिया, अनुशासत्मक क्रिया। संस्तम्भः (पुं०) [सम्+स्तम्भ+घञ्] ०आश्रय, आधार, सहारा। टेक। दृढ़ करना, सबल बनाना। विराम, यति। ०जड़ता। संस्तपनः (पुं०) सूर्य, रवि-संस्तापितः संस्तपनस्य पादैः पथि प्रजन् पांशुभिरुत्कृदङ्गः (वीरो० १२/११) संस्तरः (पुं०) [समृ+स्तृ+अप्] शय्या, पलंग, आसन, बिछौना, बिस्तर। संस्तरणं (नपुं०) बिछाना, फैलाना। ०शय्या, पलंग। संस्तवः (पुं०) [सम्+स्तु+अप्] प्रशंसा, स्तुति, पूज्य। (समु० २/१४) ०सम्मान योग्य, समाददिरत। ०रक्षण करना, स्तवन करना। (जयो० ३७) जान-पहचान, घनिष्टता। प्रार्थना, विनय, भक्ति। (मुनि० २७) मुक्तात्मभावोदरिणी जवेन समर्हणीया गुणसंस्तवेन। (जयो० २/४२) | संस्तवनं (पुं०) [सम्+स्तु+घञ्] प्रशंसा, ख्याति। स्तुतिपाठ, प्रार्थना। संस्तुत (भू०क०कृ०) [सम्+स्तु+क्त] प्रशस्त, प्रशंसित। ०पूजित, अर्जित। (समु० ४/२४) (वीरो० १०/२, समु० २/१९) महिमा युक्त, प्रसिद्ध। (सुद० ३/६) ०सम्मत, सम्वादी। घनिष्ट, परिचित। संस्तुतिः (स्त्री०) [सम्+स्तु+क्तिन्] प्रशांस, स्तुति, गुणगान। संस्त्यायः (पुं०) [सम्+स्त्ये+घञ्] संचय, राशि, संघात, सामीप्य। प्रसार, विस्तार। ०घर, आवास, निवास। सांस्थ (वि०) [समृ स्था+क] स्थित रहने वाला, ठहरने वाला। विद्यमान, मौजूद, उपस्थित। For Private and Personal Use Only
SR No.020131
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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