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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir षण्डक् ११०६ संयत् षण्डक् (पुं०) नपुंसक, हिजड़ा। षण्डाली (स्त्री०) [षण्ड+अल+अच्+ङीष्] सरोवर, तालाब, जोहड़। ०व्यभिचारिणी। ०असती स्त्री। षण्ढः (पुं०) [सन्+ढ] नपुंसक, हिजड़ा। षष् (संख्या वा०वि०) छः। षष्टि (वि०) [षड्गुणिता दशतिः] साठ। षष्ठिभागः (पुं०) शिव। षष्टिमत्तः (पुं०) साठ वर्ष की आयु का हस्ति। षष्ठ (वि०) छठा, छटवां। (सुद० ९३) (दयो० ७६) षष्ठसत (वि०) षष्ठांश युक्त। (जयो० २५/८) षष्ठसर्ग (वि०) छठा सर्ग। षष्ठांशः (पुं०) छठा भाग। (जयो० २५/८) छठा हिस्सा। (जयो०वृ० ११/३८) षष्ठाक्षरं (नपुं०) छठा अक्षर युक्त छन्द। (जयो०० २४/१४४) जग्मुर्निवृतिसत्सुखां समधिकं निर्देशतातीतिपं' (जयो०वृ०२७/६६) षष्ठी (स्त्री०) [षष्ठ+ङीप्] छठी विभक्ति। षष्ठीतत्पुरुषः (पुं०) तत्पुरुष समास का भेद। षष्ठीपूजनं (नपुं०) छठी देवी का पूजन। षहसानु (पुं०) मयूर, मोर। ० यज्ञ। षाटु (अव्य०) [सह+ण्वि] सम्बोध संबंधी अव्यय। षाट्कौशिक (वि०) [षट्कोश+ठक्] छः परतों में लिपटा षोडशं (नपुं०) [संख्या०वि०] सोलह। (जयो० १९/३१) षोडशकलः (पुं०) चन्द्र, शशि। षोडशकारणं (नपुं०) सोलह कारण भावना। (जयो० २४/८) षोडशगत (वि०) सोहल को प्राप्त हुआ। षोडशब्धि (पुं०) सोलह समुद्र। षोडशभावना (स्त्री०) सोलह कारण भावना। षोडशभुजा (स्त्री०) दुर्गा की मूर्ति। षोडशमातृका (स्त्री०) सोलह दिव्य माताएं। षोडशयामः (पुं०) सोलह प्रतर। (सुद० ९६) षोडशवर्षिका (स्त्री०) सोलह वर्ष वाली स्त्री। (जयो० १५/४८) षोडशसर्गः (पुं०) सोलहवां सर्ग। षोडशस्वर्गपतिः (पुं०) सोलह स्वर्ग का पति। अच्युतेन्द्र देव। (जयो० २८/६९) षोडशस्वप्नं (नपुं०) सोलह स्वप्न। (वीरो० ४/२७) षोडशी (स्त्री०) सोलह वर्ष की स्त्री। (वीरो० ४/३५) षोडशिक (वि०) सोलह भागों से युक्त। षोठा (अव्य०) छह प्रकार से। ष्ठिव् (अक०) थूकना, खखारना। प्रक्षेपण करना। ष्ठीवनं (नपुं०) [ष्ठिव्+ ल्युट्] थूकना। ०लाट, ०खखार। ष्वक्क् (सक०) जाना, पहुंचना। हुआ। षाडवः (पुं०) [षड्+अव+अच्] ततः स्वार्थ अण। राग, मनोयोग। संगीत स्वर। गीत। षागुव्यं (नपुं०) [षड्गुण+ष्यब] छ: गुणों की समष्टि। छः उपाय। षाड्गुण्यप्रयोगः (पुं०) राजनीति के छ: उपाय। पाण्मातुरः (पुं०) [षणां मातृणाम् अपत्यम्, षण्मात्+अण-उत्व रपर] छ: माताओं वाला। कार्तिकेय। पाण्मासिक (वि०) [षण्मास+ठक्] छमाही, अर्धवार्षिक। षायात् (विधि काल) रक्षा करे। (सुद० ७५) षाष्ठ (पुं०) छठा। षिड्गः (पुं०) [सिट+गन्] विलासी, कामुक। ___०असंगत, प्रेमी। षुः (स्त्री०) [सु+डु] प्रसूति, प्रजनन। षोडश (वि०) सोलहवां। (वीरो० ३/३०) सः (पुं०) यह उष्म ध्वनि है, इसका उच्चारण स्थान दन्त्य है। स-(सर्वनाम शब्द तत्) स (अव्य०) क्रिया विशेषण बनाने के लिए शब्द से पूर्व स उपसर्ग लगाने पर के साथ, मिलाकर, संयुक्त होकर, सहित, सह, सम, तुल्य आदि का अर्थ व्यक्त होता है। 'सलक्षण (जयो० १५/६६) लक्षणयुक्त। सदोष-रात्रि सति। (जयो० १५/८५) सः (पुं०) सर्प, सांप। पवन, वायु, हवा। ०पक्षी, षड्ज स्वर। शिव, शंकर। संधृ (सक०) धारण करना। (दयो० ३९) संधूप (अक०) धुंआ देना, संधूपयित्वा। (जयो०वृ० १९/७६) संधृत (वि०) धारण किया गया। (वीरो० १/८) संयः (पुं०) [सम्+यम् ड] कंकाल, पंजर। संयत् (स्त्री०) [सम्+यम्+क्विप्] युद्ध, संग्राम, लड़ाई। For Private and Personal Use Only
SR No.020131
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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