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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीशरणं श्रीशरणं (नपुं०) समवशरण । वृत्तं तथा योजनमात्र महं सार्द्धद्वय क्रोश समुन्नतं च । ख्यातं च नाम्ना समवेत्य यत्र ययुर्जनाः श्रीशरणं तदत्र ।। (वीरो० श्री श्रेष्ठिन् (पुं०) श्री वृषभदास सेठ श्रीसंज्ञं (नपुं०) लवंग, लाँग। श्रीसद्भः (पुं०) काश रोग, खांशी, श्वांस रोग। (जयो० १३ / १ ) (सुद० २/९ ) www.kobatirth.org श्रुतमश्रुतपूर्वमिदं तु कुतः कपिले त्वया स चैक्लैव्ययुक्तः (सुद० ८४) 'सुज्ञात, प्रसिद्ध, विख्यात, विश्रुत। श्रुतं (नपुं०) शास्त्र, धर्म विवेचन। (जयो० २/१४० ) ० आप्तवचन निबन्धन। ● आगम सिद्धांत (जयो० २/५६) ० अस्पष्ट ज्ञान । ० विख्यात (जयो० २६/४० ) १८/२२) श्रीसहोदर : (पुं० ) चन्द्र । श्रीसुंदरी (स्त्री०) कामसुंदरी ( सम्य० ६७ ) श्रीसवला (वि०) प्रमोद सहिता आनन्द युक्ता श्रीबलमुत्सवे लातीति धीसबला (जयो० १५/५४) श्रीसमागमः (पुं०) सौभाग्य प्राप्ति । श्रियः सौभाग्यसम्पत्तेः समागमः प्राप्तिः' (जयो० ३ / ११५) 'श्रीयुक्तः सम्यगागम आप्तोपज्ञो ग्रन्थ' (जयो०वृ० ३/११५) श्रीसरिता (स्त्री०) उत्तम सरिता (वीरो० २/१५) श्रीसुमन (वि०) कुसुम युक्त (जयो० १७७) श्रीसूक्तं (नपुं०) एक वैदिक ग्रंथ। श्री स्थिति (स्त्री०) बिल्वफल (जयो०० २८/३० ) श्रीहर (वि०) शोभापहारक (जयो० १२ / ६४) श्रीहरि (पुं०) विषु । श्रु (सक०) जाना, पहुंचना । ० सुनना, श्रवण करना। (वीरो० १४) श्रुणु (जयो०वृ० १/२६) ० अधिगम करना, अध्ययन करना । ० समाचार देना। श्रुत (भू० क० कृ० ) [ श्रु+क्त] शृणोति श्रवणमात्र का श्रुनम् । सुना हुआ, श्रवण किया हुआ (जयो० २/४०) (समु० ३/४१) १०९८ श्रुताधिगम्य ० श्रुत ज्ञान के भेदों में द्वितीय ज्ञान। (जयो० १ / ३ ) ' मतिज्ञान के विषयभूत पदार्थ से सम्बन्ध रखने वाले किसी दूसरे पदार्थ का जानना (त० सू० पृ० १७) श्रुतकीर्तिः (पुं०) एक आचार्य विशेष श्रुतकेवली (वि०) जो श्रुत द्वारा शुद्धात्मा को जानता है। जो सुदाणं सव्वं जाणादि सुदकेवलिं । (सम०पा० ९/१०) श्रुतज्ञानं (नपुं०) ज्ञान का द्वितीय भेद । मति पूर्वक जाना गया ज्ञान। (सम्य० १३०) श्रुतज्ञान विभाव के साथ नियम से अन्वय वाला होता है। 'श्रुतं विभावान्वयि' (सम्य० १३० ) श्रुतज्ञानमंत्र (नपुं०) 'णमो चोदसपुब्वीण' ऐसा श्रुतज्ञान मंत्र है। श्रुतदेवी (स्त्री०) सरस्वती, भारती । श्रुतधरः (वि०) आगम श्रावक । श्रुतधर्म (पुं०) श्रुत/शास्त्र के स्वभाव का बोधा श्रुतभक्तिः (स्त्री०) द्वादशांग भक्ति (भक्ति०वृ०५) श्रुतप्रमाणं (नपुं०) आगम प्रमाण । श्रुतप्रान्तगत (वि०) श्रवण विषयकृत, कर्ण प्रान्त को प्राप्त हुआ। (जयो० १ / ६९ ) श्रुतरचारिन् (वि०) श्रुतरसज्ञ, शास्त्र में रुचि लेने वाला। (जयो० २/८१) श्रुतवत् (वि०) [ श्रुत्मतुप्] वेदज्ञ, वेदज्ञाता श्रुतज्ञाता, शास्त्रज्ञ, सिद्धान्तज्ञ । ० आगम प्रवीणता युक्त Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतवाक् (नपुं०) आगम वचन, सिद्धांत वचन। (मुनि० ८) श्रुतवाचनं (नपुं०) आगम वचन। (मुनि०८) श्रुतविनयं ( नपुं०) सूत्रार्थ का ग्रहण | श्रुतसंहरहः (पुं०) श्रुत प्रवीण शास्त्र में चतुर. ० आगम प्रवीण (जयो० १९/६६ ) श्रुतसार: (पुं०) श्रुतसागर आचार्य । आचार्य शिरोमणि श्रुतसागर । दिगम्बरीभूय तपस्तपस्ममायमात्मा श्रुतस्मपमस्यन् (वीरो० ११ / ३१ ) श्रुतस्थविर (पुं०) श्रुतधारक स्थविर श्रुता (वि०) सुना गया। (सुद० ३/४१ ) श्रुताज्ञान (वि०) निरर्थक आदेश वाला। श्रुतातिचार (वि०) श्रुत पढ़ने में दोष श्रुताधिगम्य (वि०) श्रुत पढ़ने की ओर लगने वाला (वीरो० २०/१८) For Private and Personal Use Only
SR No.020131
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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