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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir युवतिभुजः ८७६ योगक्षेमः तरह से। (सर ] डोरी : (पुं०) युवतिभुजः (पुं०) स्त्री का भुजा, मांसल बाहु। (जयो० २/१५७) साक्षात्कुरुते हन्त युवतिभुजपाशनिवद्धकिञ्चाङ्गाति-गमोहनिगडवर्तितमपि न स्वंवेत्ति विकारी। (जयो० २/१५७) युवतिरलं (नपुं०) स्त्री रत्न। युवति रत्नमयत्नमवाप्यते तदधि ___ कं तु शमाय समाप्यते। युवतीर्थः (पुं०) युवावस्था। (वीरो० ८/७६) (जयो० ९/२३) युवनृपः (पुं०) युवराज। (जयो० ९/११) युवभावः (पुं०) ०तरुणभाव। चपल विचार। युवमनसी (स्त्री०) तरुण भावो। (जयो० ५/७४) युवामनस्विनी। (जयो० ५/७४) युवभावः (पुं०) तरुण भाव। (सुद० ३/३३) युवराज् (पुं०) युवनृप, राजकुमार। (समु० ४/१७) युवा (वि०) यौवन प्राप्त, युवावस्था को प्राप्त व्यक्ति। (जयो० ५/४) युवाधिराजः (पुं०) राजकुमार। (वीरो० ११/१३) युवान्त (वि०) तरुणान्त। (जयो० १२/१३२) युष्मद् (सर्व०) तू, तुम। त्वम् (सुद० १/१६) (सम्य० १५) तस्माद् (सुद० ९१) त्वदीयाम् (सुद० ४/१७) वरिस्यति त्वं तु सतीति (जयो० ३/८८) तस्य (सम्य० ३/३८) 'तव सम्मुखमस्यहं पिपासुः' (जयो० १२/११९) युवाभ्याम् (सुद० ४/४५) त्वयि (सुद० ४/३८) युष्मत्पदप्रयोगेण, सम्भवेदुत्तमः पुमान्। आदेशशोभवतामस्ति, न परप्रत्यवायकृत्।। (समु० ७/३३) युष्मद् पद का प्रयोग मध्यम पुरुष के लिए होता है। युस्मादृश् (वि०) तुम्हारी तरह। युस्माकम् (वि०) तुम्हारे के लिए। यूतिः (स्त्री०) मिश्रण, मेल, मिलाप। यूथं (नपुं०) [यु+थक्] भीड़, टोली, समुदाय, झुण्ड। ___रेवड़, लहंडा। यूथिका (स्त्री०) जूही, बेला। यून् (पुं०) कामी युवक। (सुद० १०१) युवक (जयो० १/५९) यूना (पुं०) तरुण, युवक, युवा। (जयो० ११/२६) तरुणानां यूनानामपि हृदये (जयो० ५/२९) यूनुः (पुं०) पुत्र, सुत। (जयो० ) यूपः (पुं०) यज्ञ की लकड़ी। यूषः (पुं०) [यूष्+क] रसा, झोल, रस, सूप। येन (अव्य०) जिससे, जिसके द्वारा, जिसलिए, जिस कारण से। चूंकि, क्योंकि। येन केन प्रकारेण (अव्य०) जिस किसी तरह से। (सुद०१०४) योक्त्रं (नपुं०) [युज्+ष्ट्रन्] डोरी, रस्सी, धागा, रज्जू। योगः (पुं०) [युज् भावादौ घञ्] ०जोड़ना, मिलाना। संयुक्त, संयोग, मिलान। ०संपर्क, स्पर्श। मिलान। योग एक इह मानवतायामेवमुद्वरितुमस्तु अपायत्। भोगतो गमयतः पुनरेतां किं भवेदनुभवेद् दृढ़चेता।। (समु०५/५) शरीर निग्रह। (जयो० २७/११) आत्मपरिस्पंद-मनोवचः कायकृतात्मचेष्टात्मकं तु योगं स किलोपदेष्टा। शुभाशुभप्रायतया जगाद, द्वेधा जिनो यस्य वदोऽभिवाद:।। (समु०८/२५) प्रयोग (सुद० १३३) स्वर्णत्वं रसयोगतोऽत्र लभते लोहस्य लेखा यतः। (सुद० १३३) कारण, निमित्त। हेतु। वदाद्य का दशा ते स्यान्मदीयकर योगतः। (सुद० १३४) ०व्यवहार-त्वमिमां शोचनीयास्थामाप्तो नैष्ठ्ययोगतः।। (सुद० १३४) योग नाम एकाग्रचिन्तानिरोधकम्। (जयो० २८/१४) सम्बन्ध। (सुद० १/३०) 'स्वतोऽधरं पूर्णमिदं सुयोगैः' (सुद० १/३०) तल्लीनता। (सुद० ७०) योग-भोगयोरन्तर खलु नासा दृशा समस्या एकता, समुदाय, सामञ्जस्य। (सम्य० ८४) समय। वर्षायोग हिसारस्य श्रीसमाजानुरोधतः। (सम्य० १५६) सन्निकटता। (योग आत्मनि सम्पन्नो दशमाद्गुणतः परम्। (सम्य० १४२) नियम, विधि। उपाय, योजना। ०व्यवसाय, कार्यपद्धति। औचित्य, योग्यता। कोशिश, उत्साह। ०फल, परिणाम। पद्धति, रीति, क्रम। योगक्षेमः (पुं०) समीचीन सुरक्षा, उचित उपाय। (जयो०वृ० २/२) ०सम्पत्ति की सुरक्षा। दुर्घटनाओं से सम्पत्ति को सुरक्षित रखने का शुल्क। For Private and Personal Use Only
SR No.020131
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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