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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शूद्रकः १०८२ शून्यघट जीविशूद्रेषु संस्काधारा नास्ति। शूद्राणी (स्त्री०) [शूद्र ङीष् पक्षे आनुक्] शूद्र की भार्या, परपरागत-गर्भाधानादिक्रिया न विद्यते। (जयो०वृ० २/१११) | शिल्पिनी। पिण्डशुद्धेरभावत्वान्मद्य-मांस-निवेषणात्। शूद्रिका (स्त्री०) शूद्रभार्या, शूद्रा, शिल्पकारिणा। (जयो० न्यग्वृत्तेश्चाक्रियाचाराच्छूद्रेष्वमोक्षवर्मता। __ २५/२५) (हित० सं० २४) शूद्री (स्त्री०) शूद्रिका, शूद्राणी, शिल्पिनी। हस्तादिकौशलं हिल्पमहावस्तुविभावने। शून (भू०क०कृ०) [श्वि+क्त] शूद्राणां वृत्तये साधु, साधनं स महीशिता।। (हित० सं०९) ०वर्धित, बढ़ा हुआ, समृद्ध। नृत्य-गान-वादित्रादि, विधिना वर्तनं पुनः। सूजा हुआ। विद्येति नामतः ख्यातः तेषामेवामुना परम्।। (हित० १०) शूना (स्त्री०) मृदुतालु, घंटी, उपजिह्विका। चार वर्णों में चतुर्थ वर्ण। ०बूचड़ खाना। •तुच्छ, अधम, परम्परा विहीन।। चक्की, ओखली। शूद्रकः (पुं०) मृच्छकटिकं नाटक का प्रसिद्ध रचनाकार, शून्य (वि०) [शूनायै प्राणिवधाय हितं रहस्य स्थानत्वात् यत्] जिसने जन-जीवन की यथार्थता का परिचय देने के लिए रिक्त, खाली। (सुद० ९८) पात्रोचित भाषा का प्रयोग भी किया है। इस रचनाकार ने ०शून्य स्थान, निर्जन स्थान। शकारी, मागश्री, चाण्डाली शौरसेनी महाराष्ट्री आदि का पारावार इव स्थितः पुनरहो प्रयोग बहुतायत किया है। इसमें जहां संस्कृत को। (१५ शून्ये श्मसाने तया। (सुद० ९८) से २०) ही स्थान मिल पाया है, वहां विविध प्राकृतो को सूनी, एकाकी। (दयो० ३९) ८० प्रतिशत से ८५ प्रतिशत स्थान मिला है। अविद्यमान। शूद्रकृत्यं (नपुं०) शूद्र कार्य, क्षुद्र कार्य। अभाव, कमी। शूद्रजाति: (स्त्री०) शिल्पकला प्रवीण जाति। (वीरो० १७/२८) अन्त, नाश, विनाश। शद्रत्व (वि०) सुच्छता, निम्न का सेवन। (वीरो० १७/२८) शूद्रधमः (पुं०) शूद्र का कर्तव्य। विविक्त, वीरान, जनविहीन। शूद्रपात्रं (नपुं०) शिल्प युक्त पात्र, नक्कासी युक्त पात्र। खिन्न, उदास, उत्साहहीन। शूद्रप्रियः (पुं०) शिल्पप्रिय। वञ्चित, रहित, अभावयुक्त। शूद्रवर्णः (पुं०) पामर वर्ण। निर्दोष, अर्थहीन। शूद्रवर्णत्व (वि०) पामरत्व। शून्यं (नपुं०) खोललापन, रिक्त। 'शूद्राणामाधिक्या' (जयो०वृ० १८/५०) बिन्दू। शूद्रा (स्त्री०) शूद्रा नामक दासी। (जयो०१० २५/२६) (पृ० आकाश, अन्तरिक्षा ११६४) शून्यवाद, क्षणिकवाद, प्रमाण और प्रमेद्य का विभाव एको दूरात्त्यजति मदिरां ब्राह्मणत्वाभिमाना स्वप्न की तरह होना। दन्यः शूद्रः स्वयमहमिति स्नाति नित्यं तयैव। अविद्यमानता, अस्तित्वहीनता। द्वावप्येतौ युगपदुदरान्निर्गतौ शूद्रिकायाः शून्यकार्य (वि०) कार्यमुक्त, कर्तव्य पथ से विमुख। शूद्रौ साक्षादथ च चरतो जातिभेदभ्रमेण।। शून्यकृत् (वि०) निरर्थक किया हुआ। (जयो०वृ० ११६४) शून्यकोष (वि०) कान्ति विहीनता, कौमुदी/चन्द्र की चांदनी शूद्राजनी (स्त्री०) शूद्र स्त्री। का अभाव। शूद्राजीवा (स्त्री०) शूद्र की आजीविका। शून्यगत (वि०) अभाव को प्राप्त हुआ। सर्ववर्णानां शुश्रूषणं सेवनमित्यादि, शून्यगेहं (नपुं०) सूनाघर, एकाकीघर। उजड़ा हुआ घर, शूद्राणामाजीवा जीविका विश्वतः जर्जरगृह। सर्वेषां मुदं हर्ष राति। (जयो०० २/११४) | शून्यघट (वि०) खाली घड़ा, रीता हुआ घट। For Private and Personal Use Only
SR No.020131
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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