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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शाठ्यकर्म १०६० शाद्वलावलि शाठ्यकर्म (वि०) छलकर्म वाला। शाठ्यगत (वि०) कपट को प्राप्त हुआ। शाठ्यभावः (पुं०) धूर्तता का भाव। शाड्वलः (पुं०) हरित घास, दुर्वांकुर। (जयो० ३/४७) शाढक (वि०) सम्यङ् निगूढ, अच्छी तरह से आच्छादित। (जयो० १७/१७) शाण (वि०) [शणेन निर्वृत्तम्+अण] सन से निर्मित, पटसन से बना हुआ। शाणः (पुं०) कसौटी, सोने परखने का पत्थर। (जयो० १०/२८) (सुद० १०२) ०आरा। •तोल। ०शस्त्रोत्तजन पाषाण। (जयो० २/४१) शाणं (नपुं०) मोटा कपड़ा। द्योतन (वीरो० २१/१४) छुरी। (समु० १/१) शाणाजीवः (पुं०) वस्त्रनिर्माता, सिकलीगर। शाणिः (स्त्री०) [शण+इण] सन का पादप, पटुआ। शाणित (भू०क०कृ०) [शण+णिच्+क्त] सान पर रक्खा हुआ, पीसा हुआ। शाणी (स्त्री०) [शण+ङीप] कसौटी, सान। ०आरा। ०सम वस्त्र। चिथड़ा। ०छोटा पर्दा। शाणीरं (नपुं०) [शण+ईरण्] शोण नदी का तट, शोण नदी स्थल। शाणोपलः (नपुं०) उत्तेजक पाषाण। (जयो० २४/१११) घर्षणपाषाण। (जयो० १५/९२) चकमक पत्थर, अग्नि उत्पन्न करने वाला पत्थर। शाण्डिल्यः (पुं०) [शण्डिलायब] विधिशास्त्र निर्माता। * एक ब्राह्मण, शाण्डिल्य ऋषि। बिल्ववृक्ष। शाण्डिल्य-पारा-शरिका द्वयस्य पुत्रोऽभवं स्थावर नामशस्य (वीरो० ११/१०) शाण्डिल्यगोत्रं (नपुं०) शाण्डिल्य ऋषि की परम्परा। शाण्डिल्यजात (वि०) शाण्डिल्य गोत्र में उत्पन्न हुए। शात (भू०क०कृ०) [शो+क्त] तीक्ष्ण किया हुआ, पैना किया ०दुर्बल। सुंदर, रमणीय। प्रसन्न। शातः (पुं०) धतूरे का पौधा। शातं (नपुं०) विनोद, आनन्द, खुशी। (समु० ३/८) शातकर (वि०) प्रसन्नता दायक। (जयो० ४/२) शातकुम्भः (पुं०) [शतकुम्भे पर्वते भवं अण] ०सोना। ०धतूरा। शातकौम्भं (नपुं०) [शतकुम्भ+अण] स्वर्ण, सोना। शातद्युतिः (स्त्री०) विनोद छटा, हर्ष भाव की झलक। हे तात! शातधुतिरेषजातमात्रस्थितिर्वारिनिधेः प्रयातः। (समु०३/८) शातनं (नपुं०) [शो+णिच्+ल+ल्युट] पैना करना, तीक्ष्ण करना, तेज करना। विनाशकर्ता, नाश करने वाला। नष्ट करना। मुझाना। शातपत्रकः (पुं०) [शतपत्र+अण+कन्] चन्द्रप्रभा, चन्द्रकिरण। शातपत्रकी (स्त्री०) चन्द्रप्रभा। शातभीरुः (स्त्री०) [शाता: दुर्बलाः पान्थाः भीरवो यस्या) मल्लिका पुष्प। शातमान (वि०) [शतमानेन क्रीतं अण] सौ में मोल लिया हुआ। शात्रव (वि०) [शत्रु+अण्] शत्रु सम्बंधी, विरोधी, प्रतिपक्षी। शास्त्रवः (पुं०) दुश्मन, शत्रु, बैरी। शास्त्रपूरग (वि०) शत्रु से पूर्ण। (समु० ७/२७) शानवीय (वि०) [शत्रु+छ] विरोधी, वैरी, शत्रुतापूर्ण, शत्रुसम्बंधी। शादः (पुं०) [शद्+घञ्] छोटी घास। ०कर्दम, कीचड़। शादहरितः (पुं०) हरित स्थल। शाद्वल (वि०) [शादाः सन्त्यत्र वलच्] दुर्वाङ्कर (जयो० १३/५६) पुलिन-द्वितयाग्रवर्तिनी स्फुटशाटीसमयानुवर्तिनी। सरितः परितोष संस्कृतिः समभाच्छाद्वल सार-सन्ततिः।। (जयो० १३/५४) शाद्वलानां दुर्वाङ्कुराणां सारभूता या सन्ततिः। (जयो०वृ० १३/५६) ०हरा भरा, हरित घास युक्त, चरगाह स्थल। शाद्वलः (पुं०) हरियाली, चरगाह स्थान। शाद्वलं (नपुं०) हरियाली, चरगाह प्रान्त। शाद्वलावलि (स्त्री०) बाल तृण, हरी हरी घास। हरिताङ्कर। (जयो० ३/४७) हुआ। पतला, कृश। For Private and Personal Use Only
SR No.020131
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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