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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वैरोचनः १०२९ वैषम्यमित वैरोचनः (पुं०) विरोचन का पुत्र। वैलक्षण्यं (नपुं०) [विलक्षस्य भावः ष्यब] आश्चर्य विपरीतता, विरोध, ०अन्तर, भेद। वैलक्ष्य (वि०) [विलक्ष+ष्यञ्] उलझन, गड़बड़ी। ___विरूपता, (सुद० ७८) कृत्रिमता, लज्जा। वैलोक्यं (नपुं०) [विलोम+ष्यब] विरोध, व्युत्क्रम, वैपरीत्य। वैवधिकः (पुं०) [विवध+ठक्] फेरी वाला, आवाज लगाकर वस्तु बेचने वाला। वैवयं (नपुं०) [विवर्णस्य भाव-ष्यञ्] निष्प्रभता, विविधता। विभिन्नता, विरूपता। (सुद० ७९) वैवस्वतः (पुं०) [विवस्वतोऽपत्यम्-अण] अन्तक, यमराज। (जयो०७० २/१३४) वैवस्वती (स्त्री०) [वैवस्वत डीप] दक्षिण दिशा। यमुना नदी। वैवाहिक (वि०) विवाह सम्बंधी। वैवाहिकं (नपुं०) परिणय, शादी। वैवाहिकः (पुं०) पुत्रवधु का श्वसुर, दामाद का श्वसुर।। वैशद्यं (नपुं०) [विशद+ष्यञ्] 'वैशा कुद्धेः ज्ञानस्य। विशदता, स्वच्छता, निर्मलता। सफेदी। धवलता। शान्ति, स्थिरता। वैशसं (नपुं०) [विशस्+अण] ० वध, विनाश, हत्या। ०दुःख, सन्ताप, कष्ट, पीड़ा। ०कठिनाई। वैशस्त्रं (नपुं०) [विशस्त्र+अण] ०असुरक्षा, शस्त्रविहीनता, राजकीय शासन। वैशाखः (पुं०) [विशाख+अण] चान्द्रवर्ष का दूसरा माह। वैशाखमास। वैशाख (नपुं०) एक बाण चलाते समय की स्थिति। वैशाखस्थानं (नपुं०) एक आसन विशेष, जिसमें एड़ियों पर जोर दिया जाता है। वैशाखी (स्त्री०) वैशाख मास की पूर्णिमा। वैशिक (वि०) [विशैन जीवति-वेश+ठक्] वैश्याओं की वैशेषिकं (नपुं०) वैशेषिक दर्शन, जिसके प्रणेता कणाद ऋषि माने जाते हैं। वैशेष्यं (नपुं०) [विशेष+ष्यज] विशेषता, श्रेष्ठता, प्रधानता, प्रमुखता। वैश्यः (पुं०) खेतीहर एवं वाणिज्य कर्ता। (हित०) दूसरे के कार्यों में सहयोग करने वाले। वैश्यावाणिज्ययोगतः। (हरि०वृ० ९/३९) ०वणिजोऽर्थार्जनान्यात्। (महा०पु० ३८/४६) प्रयोजनं परेषां तु, सम्पादितुमुद्यतान्। जंघा वलेन तानुक्त्वा, वैश्या इत्येतदाख्यया।। (हित०सं०८) वैश्यकर्मन् (नपुं०) वैश्य का कर्म, व्यवसाय, वाणिज्य करना। वैश्यकुलावतंसः (पुं०) वैश्य कुल का आभूषण। (सुद०२/१) अथोत्तमो वैश्यकुलावतंसः सदेकसंसत्सरसीसुहसः।। (सुद० २/१) वैश्यजाति (स्त्री०) वैश्य सम्प्रदाय। वैश्यत्व (वि०) वणिकपना। सैवाऽऽगतोऽस्ति वणिजामहहाधहस्ते, वैश्यत्ववर्मव हृदयेन सरन्त्यदस्ते। (वीरो० २२/२६) वैश्यवर्गः (पुं०) वैश्य समूह। (वीरो० २२/२६) वैश्यवर्णः (पुं०) वैश्यजाति। (जयो०वृ० १८/५०) वैश्यवृत्तिः (स्त्री०) वैश्य का व्यवसाय, वैश्य की आजीविका। वैश्रवणः (पुं०) [विश्रवणस्यापत्यम्] कुबेर, धनपति। ०रावण। वैश्यागारः (पुं०) आपणक, दुकान। वैश्याधारः (पुं०) वैश्य का आधार। वैश्व (वि०) वार्ताजीवि। (जयो०वृ० २/१११) वैश्वानरः (पुं०) [विश्वानर+अण] अग्नि, आग, बह्नि। (वीरो० १/७) वैश्वासिक (वि०) [विश्वास+ठक] विश्वसनीय, गोपनीय। वैषम्यं (नपुं०) [विषम+ष्यत्र] असमता, कठोरता। अन्याय। विपत्ति। संकट। आपत्ति। ०कठिनाई। वैषम्यमित (वि०) विषमता। (वीरो० ३/१३) ०कठोरता, कठिनाई। आपत्ति, संकट। कालेन वैषम्यमिते नवर्गे क्रौर्य पशूनामुपयाति सर्गे। (वीरो० ११/४) कला। वैशाली (स्त्री०) बिहार प्रान्त में स्थित एक नगर-जिसका शासक राजा चेट कथा। एक गणराज्य का नाम। 'वैशाल्या भूमिपालस्य चेटकस्य समन्वयः' (वीरो० १५/१९) वैशिष्ट्य (वि०) [विशिष्ट+ष्यञ्] ०भेद, अन्तर, विशेषता। विशिष्टिता, प्रधानता, अनुकूलता। (मुनि० १४) ०श्रेष्ठता, अच्छाई। For Private and Personal Use Only
SR No.020131
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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