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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वीरविभुः १०१५ वृक्षचरः - वीरविभुः (पुं०) वीरप्रभु। (सुद० १/४) वीर्यानुप्रवादः (पुं०) एक पूर्वग्रंथा वीरवीरः (पुं०) वीरता में अग्रणी। (वीरो० १६/३०) वीर्यानुवादः देखों ऊपर। बीरवक्षः (पुं०) अर्जुनवृक्षा (वीरो० १५/२१, १५/५३-५५) वीर्यान्तरायः (पुं०) शक्ति में अन्तराय। वीर्य बलं औरमी (स्त्री०) बललक्ष्मी, शौर्यश्री। (जयो० ८/२४) शुक्रमित्येकोऽर्थः' 'अन्तरमेति गच्छतीत्यन्तरायः' वीर्यस्य रदिशः वीर प्रभु की देशना। * (वीरो० १४/१) विघ्नकृदन्तरायः वीर्यान्तरायः' (जैन ल० १०२२) औरसैन्य (नपं०) लहसन। वीवधः (पुं०) बहंगी, बोझ वाहन। बीरस्कन्धः (पुं०) भैंसा। ___* अनाज संचयन, * मार्ग, पथ। वीर (पुं०) विष्णु। वृची (स्त्री०) भयसूचक शब्द। (जयो० २/६५) वीरा (स्त्री०) वीराङ्गना, * पत्नी, भार्या। वृण (सक०) छांटना, चुनना, चयन करना, पसंद करना। __ * जननी, गृहिणी। * गद्य! * अगरलकड़ी। * घेरना, लपेटना। वीरधिन् (नपुं०) वीर प्रभु के चरण। (वीरो० १५/२२) वृंहण/वृहिण (नपुं०) दावानल दववतेविषेषणं स्यात। (जयो० बीरवर्मन् (नपुं०) वीरप्रभु का मार्ग। (वीरो० १५/५९) १३/५०) वीरासन (नपुं०) एक आसन विशेष, दोनों जंघाओं के ऊपर रोहित (वि०) गर्जित, चिंघाड़। (जयो० १३/३५) दोनों पांवों को रखना। वृक् (सक०) पकड़ना, लेना, ग्रहण करना। वीरुध् (स्त्री०) शाखा, अंकुर, * बेंत, लता, झाड़ी। वृकः (पुं०) भेडिया, लकड़बग्घा। (वीरो०१४/५९) वीरोक्त (वि०) वीर द्वारा कथित। (सुद० १३७) * गीदड़। वीरोदयः (नपुं०) वीरोदय नामक महाकाव्य, (वीरो०१४/४९) * काका आचार्य ज्ञानसागर द्वारा संस्कृत का एक महाकाव्य। * उल्लू। वीरोदयं यं विदधातुमेव न, * लुटेरा। शक्तिमान् श्रीगणराजदेवः। * क्षत्रिया दधाम्यहं तम्प्रति बालसत्त्वं * एक राक्षस। वहन्निदानीं जलगेन्दुतत्त्वम्। (वीरो० १/७) वृकदंशः (पुं०) कुत्ता, श्वान। वीरोदयोदार विचारचिह्न वृकधूपः (पुं०) तारपीन, मिश्रगन्ध। सतां गलालङ्करणाय किन्न।। (वीरो० १/१०) वृकधूर्तः (पुं०) गीदड़ा वीरोदित (वि०) वीर द्वारा कथित। वीरस्य श्रीवर्धमान वृकारातिः (पुं०) कुत्ता। तीर्थकर्तुरुदिते संवदिते। (जयो० १८/४५) वृकारिः (पुं०) श्वान, कुत्ता। बीर्य (नपुं०) [वीर+यत्] शक्ति, बल, पराक्रमा (सम्य०९२) वृक्कः (पुं०) हृदय, गुर्दा * पुंस्त्व, * ऊर्जा, * द्रव्य की स्वशक्ति विशेष। * दृढ़ता, वृक्ण (भू०क०कृ०) [वृश्च्+क्त] कटा हुआ, बांटा हुआ, * साहस क्षमता। फाड़ा हुआ। * शुक्र, वीर्य, * गौरव, महिमा। वृक्त (भू०क०कृ०) [वृज्+क्त] स्वच्छ किया गया, साफ वीर्यप्रवादः (पुं०) एक विवेचन युक्त पूर्वग्रंथ, जिसमें आत्म किया गया, निर्मल किया गया। विवेचन हो। (जयो०) | वृक्ष (सक०) स्वीकार करना, चयन करना, अंगीकार करना। वीर्यवत् (वि०) [वीर्य+मतुप्] दृढ़, शक्तिशाली, शक्ति से * ढकना। सम्पन्न। वृक्षः (पुं०) पेड़, तरु, पादप, रुख। वीर्यसंज्ञितः (पुं०) अनन्तवीर्य। राजा जयकुमार का पुत्र। * अनोहकट। (वीरो०२/१९, जयो०१४/६) 'वीर्यपदं तेन संज्ञितोऽनन्तवीर्यनामा' (जयो० २६/२) वृक्षकुक्कुटः (पुं०) जंगली मुर्गा। वीर्याचारः (पुं०) स्वशक्ति निगूहन वृत्ति। वृक्षखण्डः (पुं०) निकुंज, वृक्ष समूह। * स्वसामर्थ्यनिगूहन वृत्ति वृक्षचरः (पुं०) वानर, बंदर। For Private and Personal Use Only
SR No.020131
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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