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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विह्वल १०१३ वीतिः * पीसना, रगड़ना, मसलना। * कष्ट देना, पीड़ा, दु:ख। विह्वल (वि०) [वि+ह्वल्+अच्] विक्षुब्ध, अशान्त, व्याकुल, घबराया हुआ। * डरा हुआ, विक्लव। (जयो०वृ० १३/६९) * कष्टग्रस्त, दुःखी। * विषादपूर्ण। * पिघला हुआ। वी (सक०) जाना, पहुंचना। * लाना। * उपभोग करना, प्राप्त करना। * जन्म लेनाः वी (पुं०) पक्षी, विहग। (वीरो० २/१४) (जयो० ३/११३) वीकः (पुं०) पक्षी, विहग। * वायु, पवन। * मना वीकासजुष (वि०) विकासोन्मुखी। (वीरो० ९/४२) वीक्षं (नपुं०) [वि+ईश्+अच्] आश्चर्य, अचम्भा, अद्भुत। वीक्षणं (नपुं०) [वि+ईक्ष ल्युट्] अवलोकन। (जयो० ९/६८) देखना, निहारना, दृष्टि डालना। वीक्षमाण (वि०) दर्शक, देखने वाला। (जयो० ३/५५) वीक्षा (स्त्री०) दृष्टि, दर्शन, देखना। वीक्षाकारिणी (स्त्री०) प्रतिष्ठादायिनी (जयो०७० २३/४) वीक्षितं (नपुं०) [वी+ईक्ष् क्त] दृष्टि, झलक। अवलोकित। (जयो० ९/६९) वीक्ष्य (वि०) [वि+ईश्+ण्यत्] देखे जाने योग्य, दृश्य। * दृष्टिगोचर। वीक्ष्यः (पुं०) अभिनेता, नायक, नर्तक। * पात्र, नट। वीक्ष्यं (नपुं०) दृश्यमान पदार्थ। * आश्चर्य, अचम्भा। वीला (स्त्री०) [वि+इस+अ+टाप्] * प्रगति, गति, गमन। वीचारः (पुं०) अर्थ, व्यञ्जन और योग परिवर्तन। वीचिः (स्त्री०) [व+ईचि] तरंग, लहर। * सुख, अवकाश-अवकाश सुखे वीचिः इति वि। (जयोवृ० १५/६) * असंगति, विचारशून्यता, आनंद, प्रसन्नता। * विश्राम, अवकाश। * प्रकाश किरण। वीचिचक्र (नपुं०) तरंग घेरा। (जयो० १६/२१) वीजन (नपुं०) [वीज+ल्युट्] गुल्ली, गिल्ली। बीज, पंखा, तालवृन्त, वायुसम्पतकर (जयो० २२/४९) एकान्विता वीजनमेवकर्तुम् (वीरो० ५/३९) वीजय (सक०) हिलाना। (जयो० ७/१०७) वीटिः (स्त्री०) पान की बेल, पान लगाना। * बंधन, गांठ, ग्रन्थि। वीटिका (स्त्री०) नाश। (जयो० २०/४०) वीणा (स्त्री०) [वेति वृद्धिमात्रामपगच्छति] विपञ्ची (जयो०वृ० ६/७) सारंगी, वीणा, एक वाद्य विशेष। वीणादण्डः (पुं०) वीणा की गर्दन। (जयो० १२/७७) कोलम्ब। वीणादण्डस्तु कोलम्बः इत्यमरः (जयो० १२/७७) (जयो० १०/२०) वीणावादकः (पुं०) वीणा बजाने वाला। वीणावती (स्त्री०) एक अप्सरा। (जयो० २२/६७) वीत (भू०ककृ०) [वि+इ+क्त] बीत गया, चला गया। * अन्तर्हित, तिरोहित। * अतीत, पूर्वगत, तिरोहित। * उन्मुक्त, छोड़ा गया। वीतभय (वि०) शोक रहित। (मुनि० ३४) वीतराग (वि०) राग रहित, * अनुराग विहीन। (सम्य० १४०) वीतरागकथा (स्त्री०) वस्तु स्वरूप की कथा। * वीतराग प्रभु के गुणों का कथन। वीतरागचरितं (नपुं०) वीतरागी का कथानक। वीतरागवृत्तिः (स्त्री०) वीतराग की प्रवृत्ति * पक्षियों का कलरव-विभि, पक्षिभिरितस्य सम्प्राप्तस्य रागस्य सुस्वरोच्चारणस्य वृत्ति सुस्वरोच्चारः। (जयो०७० १८/५३) वीतरागस्तवं (नपुं०) वीत राग प्रभु का गुणगान। (भक्ति०२५) वीतमय (वि०) निभ्रय। (वीरो० १८/६) वीतंसः (पुं०) [विशेषेण बहिरेव तस्यते भूष्यते-वि+तंस्+घञ्] * पीजरा, जाल, कटघरा। * चिड़ियाघर। वीतहेतु (स्त्री०) विधिमुख से जो साध्य को सिद्ध किया जाना वह सांख्यमानुसार वीतहेतु है। वीतिः (स्त्री०) गति, चाल, गमन। * उपज, पैदावार। * प्रकाश, कान्ति। For Private and Personal Use Only
SR No.020131
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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