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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विशुद्धाहारः १००३ विशोधनं विशुद्धाहारः (पुं०) सात्त्विक आहार, पवित्र भोजन। । विशेषणं (नपुं०) [विशिष् ल्युट्] विवेचन, विभेदन, प्रभेदन, विशुद्धि (स्त्री०) [वि.शुध्+क्तिन्] * पवित्रता, निर्मलता, निरूपण। निर्दोषता। * अन्तर, विशेषता। * विमलता, सात्त्विकता। * चिह्न, लक्षण। * पवित्रीकरण, निर्मलीकरण। * जाति, प्रकार। * परिष्कार। भैक्ष्ययापि विशद्धये प्रतिवहेद् बुद्धिं भवादुन्मनाः' * गुणवाचक शब्द-जो वस्तु की विशेषता को प्रकट (मुनि० ३) करता है। विशुद्धिगतं (वि०) पवित्रता को प्राप्त हुआ। विशेषज्ञ (वि०) जानकार, विज्ञ। विशुद्धि देवी (स्त्री०) नाम विशेष (वीरो० १४/४) विशेषतम् (अव्य०) [विशेष तस] विशेष रूप से-प्रकृष्टरूपेण। विशुद्धिधर (वि०) निर्दोषता को धारण करने वाला। विशेषदर्शनं (नपुं०) सांख्य, वैशेषिकदर्शन। (जयो०६/२०) विशुद्धिभावः (पुं०) निर्मलता से परिपूर्ण भाव। (जयो०वृ० २/२३) विशद्धिलब्धिः (स्त्री०) वैचारिक कोमलता, कर्मचेष्टा से | विशेषय (सक०) कहना, विवेचन करना। 'केचित्परे तु यतयेऽपि विमुक्ति की उपलब्धि। 'चित्तेऽस्य विशुद्धिलब्धिः' विशेषयन्ति' (वीरो० २२/२२) विशुद्धिविधिः (स्त्री०) क्षमापन। (जयो० १/९२) (सम्य० विशेषरसः (पुं०) श्रृंगार रस। (जयो० १/७४) ४५) * निर्दोषता युक्त विधि। विशेषाद्वनी (वि०) विशेष रूप से निर्मित। (जयो० २४/११८) विशूल (वि०) [विगत शूलं यस्य] त्रिशूल रहित, बी रहित, विशेषित (भू०क०कृ०) [वि+शिष्+णिच्+क्त] विलक्षण, भाला विहीन। परिभाषित। विशृंखल (वि०) [विगता श्रृंखला यस्य] अनियंत्रित, अप्रतिबद्ध, । विशेषोऽलंकारः (०) विशेष अलंकार, विशेषताओं को निरंकुश। विवेचित करने वाला अलंकार* बंधनों से मुक्त। मतङ्गजानां गुरुगर्जितेन जातं प्रहृत्यष्यद्धयगर्जितेन। * लम्पट। अथो रथानामपि चीत्कृतेन छन्नः प्रणादः पटहस्य केन।। विशेष (वि०) [विगत शेषो यस्मात्] * विशिष्ट, अच्छा, उचित। (जयो० ८/२३) विशेषः (पुं०) * प्रभेद, भेद, अन्तर, प्रकार। विशेष्य (वि०) [वि+शिष्+ण्यत्] * विलक्षण होने योग्य, * जैन दर्शन में वस्तु विवेचन की एक पद्धति, जिसमें मुख्य, प्रमुख। विशेष-भेद की प्रमुखता होती है। पर्याय विशेष। * उत्तम, श्रेष्ठ। * विविध उद्देश्य, नानाविध वस्तु। विशेष्यं (नपुं०) वह शब्द जिससे विशेषण द्वारा सीमित कर * उत्तमता, श्रेष्ठता, प्रमुखता। (सुद० १/४२) दिया गया हो। * उत्तम, पूज्य, प्रमुख, उत्कृष्ट। * वह पदार्थ जो किसी दूसरे शब्द द्वारा परिभाषित कर * विशिष्ट चिह्न, पहचान। विशिष्यते विशिष्टिा विशेषः दिया गया हो। 'विशेष्यं नाभिषा गच्छेत्क्षीणशक्तिर्विशेषणे' (त०वा० ६/८) (काव्य० २) * विवेचन, भेदीकरण। विशोक (वि०) [विगतः शोको यस्य] शोक से रहित, हर्ष विशेषक (वि०) [वि+शिष्+ण्वुल्] प्रभेदक, नाना विध, वस्तु युक्त, प्रसन्न। (जयो० ५/६७) विवेचक। विशोकः (पुं०) अशोक तरु। विशेषकं (नपुं०) तिलक, मस्तिष्क पर टीका, रेखांकन। विशोधनं (नपुं०) [वि+शुध ल्युट] * शुद्ध करना, प्रक्षालन, (जयो० २२/८०) प्रमार्जन। (जयो० १७/३९) विशेषाकायानुमतः (पुं०) तिलक के लिए स्वीकृत। 'विशेषकाय * दोष रहित, पवित्र। तिलकाय नामानुमतं मानितम्' (जयो० २२/८०) * अन्वेषण। (जयो० २/४५) * विशिष्ट शरीर सहित। (जयो०वृ० २२/८०) * प्रायश्चित्त, परिशोधन। For Private and Personal Use Only
SR No.020131
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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