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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वियोगिवर्गः ९९२ विरसः वियोगिवर्गः (पुं०) साधक समूह। (वीरो० ६/२३) विरञ्चिभू (पुं०) विधाता, ब्रह्मा। (जयो० ) वियोजित (भूक०कृ०) [वि+युज+णिच+क्त] परित्यक्त, विरटः (पुं०) अगुरु, कृष्णचंदन। छोड़ा गया। विरणं (नपुं०) [विशिष्टो रणो मूलं यस्य] सुगन्धित घास। * वञ्चित। विरत (वि०) [वि+रम+क्त] * रहित, विहीन। (मुनि० २५) वियोनिः (स्त्री०) [विविधा विरुद्धा वा योनि] नाना जन्म, भो! भोगाद् विरतो रतो भगवतः संचेतने धीश्वर! विविध पर्याय, अलग-अलग जन्म। * विश्रान्त, थका हुआ, क्लान्त। * कुयोनि, कुजन्म। * उपसंहत, समाप्त। विरक्त (भू०क०कृ०) [वि+रंज्+क्त) * लालसा विहीन, | विरतिः (स्त्री०) [वि+रम्+क्तिन्] * बंद करना. रोकना, इच्छा रहित। ठहरना। * विराग युक्त, राग रहित, वीतरागता पूर्ण। (जयो० * विश्राम, अवसान, यति। १७/८२) विरुद्धाचरण (जयो० ६/९२) * विराग, संयम में प्रवृत्ति। * संन्यासी। (जयो० ६/२३, * रक्तरहित (जयो० १६/९३) विरदावली (स्त्री०) वंशावली। * वंशपट्टावली। (वीरो० विरक्त (स्त्री०) [वि+रञ्ज+क्तिन] * चित्तवृत्ति में परिवर्तन, ९/२६, दयो० ५२) असंतोष। विरम् [वि+रम्] * छोड़ना, त्यागना। (सुद० ८७) विरम विरम * उदासीनता, विलगाव, बिछोह, वियोग। भो स्वामिमि त्वम्। * आसक्ति मुक्त, विराग, वीतरागभाव। * विराम करना, चिरस्थिर करना। परहिताय जयेज्जनता विरचनं (नपुं०) [वि+र+ल्युट] * संरचना, काव्यप्रणयन। नवं विरम भो विरमेति सुमानव।। (जयो० ९/७०) 'विरम * निर्माण करना, सृजन करना। विरम चिरं स्थिरो भवेत्यर्थः' (जयो० २९/७०) * संकलन करना, संग्रह करना। विरम् (अक०) विरत होना, चुप होना। (जयो० २५/६) दूर विरचित (भू०क०कृ०) [वि+र+क्त] *निर्मित, * बनाया, होना। (जयो० ३/९२) गया प्रणयन किया गया। विरमः (पुं०) रोक, विश्राम, विराम। * संरचित, प्ररूपित, निरूपित। * छिपना, अदृश होना। * सृर्जित, गठित। विरल (वि०) [वि+रा+कलन] अन्तराल युक्त, कोई कोई। * परिष्कृत किया गया, तैयार किया गया। (जयो० ९/८६) * धारण किया गया, पहनाया गया। * पतला, कोमल, मृदु। * जड़ा गया, बैठाया गया। * ढीला, विस्तृत। विरज् (सक०) अनुराग करना, प्रेम करना, प्रसन्न करना। * निराला, दुर्लभ, अनूठा। खुश करना। (सुद०४/१०) रज्यमानोऽत इत्यत्र परस्मात्तु * थोड़ा, कम। विरज्यते। (सुद०४/८) * दूरवर्ती, लम्बा। * विरक्त रहना। (सुद० १३२) विरलं (नपुं०) दही, जमाया हुआ दूध। विरज (वि०) [विगतं रजो यस्मात्] * रज विहीन, धूल विरलं (अव्य०) * कठिनाई से, कभी कभी, * नहीं के बराबर रहित। (जयो० ९/८६) विरजस् (वि०) [विगतं रजं यस्मात् यस्य] * राग रहित, विरलभावः (पुं०) मृदुभाव। अनुराग विहीन। * आसक्ति रहित। विरव (वि०) विशिष्ट शब्द। (जयो०८/२०, १३/३) * धूल रहित। * कर्म परमाणुओं से विगत। विरस (वि०) [विगताः रसो यस्य] * नीरस, स्वाद रहित। विरञ्चः (पुं०) [वि+रच्+अच्] ब्रह्मा। (जयो० २४/१०) __ * अप्रिय, अरुचिकर। विरचि (पुं०) ब्रह्मा। ___ * क्रूर, निर्दय। विरञ्चिपुत्रः (पुं०) नारद। (जयो० २४/१०) | विरसः (पुं०) पीड़ा, कष्ट, दु:ख। For Private and Personal Use Only
SR No.020131
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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