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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विनयगत ९८० विनिपातः विनयगत (वि०) श्रद्धागत, विनयशील। विनामक (वि०) वर्ण सहित। (जयो०वृ० ११/७०) विनयग्राह्नि (वि०) * आज्ञाकारी, * अनुवर्ती, * शासन विनामवाक् (वि०) काम का नहीं, पुरुषार्थहीन, नपुंसक। योग्य। * नम्रता को अंगीकार करने वाला। (सुद० ९९) विनयता (वि०) नम्रता (जयो० २/११९) विनायकः (पुं०) विशिष्टो नायकः। विनयनं (नपुं०) [वि+नी+ल्युट] हटना, दूर होना। * गणपति, अर्हत्। (जयो० ८८६) (जयो० १३/३९) * शिक्षा होना। * गरुड़। * शिक्षा, सीख। * बुद्धधर्म का. देव। विनयपदं (नपुं०) श्रद्धापद, भक्तिपद, प्रार्थना के पुञ्ज। * रुकावट, बाधा। विनयपदावली (स्त्री०) भक्ति पदावली। * श्रद्धागीत। विनारि (पुं०) आजतशत्रु। * विना अभावं गता अरयो यस्य विनयपत्रिका (स्त्री०) संत तुलसीकृत काव्य। विनयभावः (पुं०) नम्रभाव। * उपासना युक्त भाव। स विनारि। (जयो० १८/८१) विनयभृत (वि०) विनयवान्, नीतिजन्य। विनयभृदुन्नतवंशः विनाशः (पुं०) [वि+श्+घञ्]* नांश, घात, क्षति, हानि। सुलक्षणोऽसौ विलक्षणोक्तनुः' (जयो० ६/५४) 'विगतः (सुद०७२) प्रणष्टो नयो नीतिमार्ग:' 'विनयं नम्रत्वं बिभवर्तीति * विध्वंस, समाप्ति, इतिश्री। विनयभूदिति' * विनश्वर। (सुद० १२१) विनयशील (वि.) उन्नतशील, ऊपर उठा हुआ। विनाशनं (नपुं०) [वि+नश् णिच्+ल्युट्] * विनाश, क्षति, (जयो०वृ० १/५) हानि। (समु० ९/८) विनयशुद्धि (स्त्री०) विनय पूर्वक भक्ति। (जयो०१०६/५४) * उन्मूलन। विनयसम्पन्नता (स्त्री०) गुरु आदि का सत्कार करना, सच्चे | विनाशिन् (वि०) नष्ट करने वाला, क्षय करने वाला। (सुद० गुरु/वीतरागमार्ग प्रवर्तक गुरु आदि का आदर-सत्कार १८) विनश्वर। (भक्ति० २६) करना। 'ज्ञानादिषु तद्वत्सु चादरः कषायनिवृत्तिर्वा । | विनाहः (पुं०) [वि+नह+घञ्] कुएं को ढंकना। विनयसम्पन्नता। विनिक्षेपः (पुं०) [वि+नि+क्षिप्+घञ्] फेंक देना, भेज देना। * तीर्थकर नामकर्म की प्रकृति। (तसू०प० ९३) विनिग्रहः (पुं०) [वि+नि+ग्रह+अप] * वश में करना, दमन विनयसम्बिधानी (वि०) विनय का ध्यान रखने वाला। करना, नियन्त्रित करना। (मुनि० ३०) (दयो०९८) * निरोध, निग्रह, दमन, शमन। वि-नयाचारः (पुं०) शुद्ध परिणामों का आचरण। (भक्ति०८) विनिद्र (वि०) [विगता निद्रा यस्य] * जागृत, सुमुप्ति रहित, विनयाधिगत (वि०) नयों से रहित। (जयो०२८/४१) निद्रा विहीन। विनयान्वित (वि०) विनय युक्त, आदरशालिनी। (जयो०वृ०३/५) * मुकुलित, खुला हुआ, पुष्पित। विनयाश्रित (वि०) नम्रताश्रित, विनयशील। देवतापि नुमया खल बुद्धिर्मस्तकेन विनयाश्रितशुद्धिः। (जयो० ५/३८) विनिद्रनेत्र (वि०) हर्षित नयन, खुले हुए नेत्र। विनशनं (नपुं०) [वि+नश् ल्युट] * नाश, हानि, विनाश, विनिन्दिनं (नपुं०) निन्दा। (दयो० २१) * श्रद्धा रहित। विनिपत (सक०) आना, निकलना। (जयो० ९/४९) (जयो० लोप। विनष्ट (भू०क०कृ०) [वि+नश्+क्त] * उच्छिन्न, ध्वस्त। १८/९२) * ओझल, लुप्त। (जयोवृ० १/२१) विनिपातः (०) [वि+नि+पत्+घञ्] अधोगमन। (जयो०७० * बिगड़ा हुआ, भ्रष्ट। १८/३२) अध: पतन। . विनस (वि०) [विगता नासिका यस्य] नासिका रहित, नाकरहित। * संकट, हानि, क्षति, विनाश। विना (अव्य०) बिना, सिवाय, इसके अतिरिक्त। धर्म एवाद्य * क्षय, मृत्यु, अवपात। आख्यातस्तं विनाऽन्ये न जातुचित्। (सुद० ४/४०) * घटना, घटित होना। * अभाव, समाप्ति। (जयो ८/८१) * पीड़ा। For Private and Personal Use Only
SR No.020131
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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