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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विधेयं ९७९ विनयकर्मन् गया। * आज्ञाकारी. शासनीय, अनुवर्ती। * कर्ता के सम्बन्ध में कही जाने वाली बात। विधेयं (नपुं०) किये जाने योग्य, कर्तव्य। * प्रतिज्ञा। (सुद०९५) विधेयज्ञ (वि०) कर्त्तव्य जानने वाला। विधेयपदं (नपुं०) उद्देश्यपद। विधेयभावः (पुं०) आधीनता का भाव। विधेयवादः (पू.) कर्तव्य निर्वाह। (सुद० ४/२५) 'यत्सूक्तिपूर्वकमुपारत्तविधेयवाद: व्यत्येति जीवनमथ स्म लसत्प्रसादः' (सुद० ४/२५) विध्वंसः (पुं०) [वि+ध्वंस्+घञ्] * विनाश, नाश, क्षति, हानि, घात। * अपमान, अपराध। विध्वंसकारिन् (वि०) नाशित, हानिकारक। (जयो० ९/६) * मारना, हनन करना। (दयो० ५२) विध्वंसिन् (वि०) [विध्वंस्+णिनि] नष्ट करने वाले। सर्वे सन्तु निरामयाः सुखयुजः सर्वेऽघविध्वंसिनः; विद्वान्सोऽप्य खिला भवन्तु सुतरामन्योऽन्यमाशंसिनः।। (मुनि० १६) विध्वस्त (वि०) [वि+ध्वंस्+क्त] * विनष्ट, समाप्त, क्षीण। * गिरा हुआ, पतित। * बिखरा हुआ, छितराया हुआ। विनत (भू०क०कृ०) [विनम्+क्त] * नम्र, नमनशील। * झुका हुआ. नतमस्तक! * डूबा हुआ, अवसन्ना * कुटिल, वक्र। * विनीत, शिष्ट। * नमितागत। (जयो० १२/१४) * क्षमाप्रार्थी। विनतोऽस्मि पुरापयुक्तये ह्यनुमन्यध्वमबन्धयुक्तये (जयो० २६/३३) विनतोऽस्मि क्षमाप्रार्थी भवामि। (जयो० २६/३३) विनता (स्त्री०) [विनत+टाप्] नम्रता, ०क्षान्तता विनयशीलता। गरुड़। (सुद० ३/२८) विनताङ्गजः (पुं०) विनता सुत, वैनतेय, गरुड़। (सुद० ३/२८) 'विनताङ्गजवर्धमानता वदनेऽमुष्य सुधानिधानता। (सुद० ३/२८) विनतिः (स्त्री०) [वि+नम्+क्तिन] * प्रार्थना, स्तुति, अर्चना, भक्तिभाव। (जयो० १८/१५) 'शृणु विनतिं मम दु:खिन: श्री जिनकृपानिधान। (सुद० ७३) * प्रणाम, नमन। विनतिरस्ति समागमनाय. मे समुपामुपयामि तव क्रमे। (जयो० ९/४६) * नम्रता, विनय, विनयभाव, आदरभाव, प्रणामाञ्जलि। विनमनं (नपुं०) [वि+नम् ल्युट्] झुकना, नमना, नतमस्तक होना। विनमि (पुं०) विद्याधर पुत्र। (जयो० ६२६) विनम्र (वि०) [वि+नम्+र] विनम्र। * नम्र, झुका हुआ, नमनशील। * नतमस्तक, विनीत, प्रणमगत। * अवसन्न, डूबा हुआ। विनम्रानन (वि०) नतमुख, झुके हुए मुख वाला। (जयो० १७/७३) विनय (वि०) [वि+नी+अक] अशिष्टाचारी, डाला हुआ, फेंका हुआ, गुप्ता विनयः (पुं०) श्रद्धा, आस्था। * नम्रता, विनीतभाव, नतभाव। * सदाचरण, शिष्टाचार। * नमस्कारादिगुण (जयो० ५/६) * मान-सम्मान। दानमानविनयैर्यथोचितंतोषयन्निह सधर्मिसंहतिम्' (जयो० २/७२) * कषाय और इन्द्रिय का दमन। * पूज्यों पर आदर। * मर्यादा, उपासना। * गौरव, श्रद्धा, भक्ति, प्रार्थना। 'विनीयते क्षिप्यतेऽष्टप्रकार कर्मानेनेति विनयः' * गुरुशुश्रूषा, वैय्यावृत्य भाव। * स्वाध्याय का एक भेद। प्रायश्चित्तं चकारैष विनयेन समन्वितम्। स्वाध्यायसहितं धीर: परिणामानुयोगवान्।। (जयो० २८/९) स्वाध्यायसहितं विनयेन नम्रताभावेन समन्वितम्। (जयो० २८/९) * जितेन्द्रिय, इन्द्रिय निग्रही। * निर्देश, अनुशासन, अनुदेश। विनयकरण (वि०) विनयशील। (जयो०वृ० १/३) विनयकर्मन् (नपुं०) विनयभाव। * संसार से मुक्त कराने वाला कर्म। For Private and Personal Use Only
SR No.020131
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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