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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भव्यजनकण्ठाभरणम *************************** ९ अन्त देख आया । तब महादेव ने अपनी भृकुटीसे भैरवको उत्पन्न किया और उसे आदेश दिया कि ब्रह्माजी को तलवार से पूजा कर । भैरवने हाथ से ब्रह्माके केश पकड कर उनके असत्य भाषण करनेवाले पञ्चम मस्तकको काट डाला ॥ २० ॥ रोषादुनः कलुषः स शापानुग्रो ददात्युग्रतरान्परेभ्यः । क्रीडन्सुकेश्या लपनेऽपि रेतोऽक्षिपत्तदायातकृपीटयोंनेः ॥ २१ ॥ अर्थ-- रोषमें आकर शिवजी किसीको भयानक शाप देते हैं तो दूसरेको उससे भी भयानक शाप दे डालते हैं। एक बार पार्वतीके साथ सम्भोग करते हुए शिवने उसी समय आये हुवे अग्निदेवके मुखमें वीर्यपात कर दिया था। भावार्थ- शिवपुराण में लिखा है कि जब शिवजीको पार्वतीके साथ भोग करते हुए हजार वर्ष बीत गये, और कोई सन्तान नहीं हुई तब सब देवता घबराये हुए कैलास पर्वतपर पहुंचे और शिवकी स्तुति करने लगे । शिवजी ने बाहर आकर कहा कि मेरे स्खलित हुए वीर्यको कौन धारण करेगा? जो ग्रहण करना चाहे वह ग्रहण करो' ऐसा कह कर उन्होंने अपने वीर्य को पृथ्वीपर गिरा दिया । तब सब देवताओंकी प्रेरणासे अग्निने कबूतरका रूप धारण करके अपनी चोंचसे उस वीर्यको पीलिया ॥ २१ ॥ पुरारिरासीत्रिपुराणि पूर्णन्यगण्यसत्त्वैरदयो विदाह्य । स कृत्तिवासाःसमभूत्सकोपः शिवः समुत्पाट्य गजाजिनं च ॥२२॥ अर्थ-दैत्योंके तीन नगरों को, जो असंख्य प्राणियोंसे भरे हुए थे, निर्दयतापूर्वक जलाकर शिव 'पुरारि' कहलाये । और क्रुद्ध होकर गजासुरको मारकर उसका चमडा लेकर 'कृत्तिवास' कहलाये।। For Private And Personal Use Only
SR No.020127
Book TitleBhavyajan Kanthabharanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArhaddas, Kailaschandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1954
Total Pages104
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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