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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दुग्धिका ११० दुक्का-वि० दे० (सं० द्विक् ) जोड़ा, एक ) “फिरहिं ते काहे न होहिं दुखारी"साथ दो। स्त्री. दुक्की। यौ०-इक्का- रामा। दुक्कार ( इक्के-दुक्के )- अकेला-दुकेला । दो दुखित-वि० दे० (सं० दुःखित ) क्लेशित, बूटियों का ताश । पीड़ित, शोकित । दुक्की-संज्ञा, स्त्री० दे० (हि• दुक्का) दो बूटियों दुखिया- वि० दे० ( हि० दुख+इया-प्रत्य०) वाला ताश का पत्ता। दुखी, क्लेशयुक्त, पीड़ित। " इन दुखिया दुखंडा-वि० दे० यौ० (हि. दो+खंड) अँखियान को"--वि०। दो मंजिला, दो खण्डों या भागों का दुखियारा--वि० दे० (हि. दुख+इया+ दुखत* - संज्ञा, पु० दे० (सं० दुष्यन्त) मारा-प्रत्य० ) दुखिया, दुखी, रोगी। (स्त्री० राजा दुष्यन्त। दुखियारी)। दुख-संज्ञा, पु० दे० (सं० दुःख) कष्ट, पीड़ा, । दुखी-वि० दे० (सं० दुःखित, दुःखी ) दुखरंज, शोक । युक्त, शोकाकुल, पीड़ित, बीमार । "परम दुखड़ा-दुखरा-संज्ञा, पु० दे० ( हिन्दुख + दुखी भा पवन-सुत, देखि जानकी दीन ।" ड़ा - प्रत्य०) कष्ट, विपत्ति, कष्ट या शोक दुखीला-वि० दे० (हि. दुख + ईला. का वृत्तांत या कथन । " दुखड़ा कासों कहौं प्रत्य०) दुखपूर्ण, दुखी। मोरी सजनी"- स्फु० । मुहा०-(अपना दुखौहाँ*-वि० दे० (हि० दुख + नौहादुख) दुखड़ा रोना-अपने दुख का प्रत्य० ) दुखद, दुखदायी। स्त्री० दुखौहीं। वृत्तांत कहना। दुगई-संज्ञा, स्त्री० (दे०) बरामदा, चौपार, दुखद-दुखप्रद-वि० (सं० दुःख + द दुख (प्रान्ती.)। देने वाला, दुखदायक। दुगदुगी-संज्ञा, स्त्री० दे० (अनु० धुक-धुक ) दुखदाई-दुखदानि -वि० दे० ( सं० दुःख | धुकधुकी, गले का एक गहना।। दातृ ) दुखदायी दुख देने वाला। दुगड़ा-संज्ञा, पु० दे० (हि. दो+ गाड़ = दुखदुंद-संज्ञा, पु० यौ० दे० (सं० दुःख- गढ़ा ) दुनाली बंदूक दोहरी गोली। द्वंद्व ) दो प्रकार के दुख, दुख और विपत्ति । दुगासरा-संज्ञा, पु. यौ० दे० (सं० दुर्ग+ दुखना-अ० कि० दे० (सं० दुःख ) दर्द । प्राश्रय ) किसी किले या दुर्ग के पास या करना, पीड़ित होना। चारों भोर बसा गाँव।। दुखवना-स० कि० दे० (हि. दुखाना ) | दुगुन-दुगुना, ( दुगना )-वि० दे० यौ० दुखाना। (सं० द्विगुण ) दूना, दोगुना, दुगुणा। दुखहाया-वि० दे० (सं० दुःखित ) दुखित, दगुनाना-स० कि. (दे०) दो परत या तह शोकित । करना, दुगना करना। दुखाना-स० क्रि० दे० (सं० दुःख ) कष्ट | दुग्ग-संज्ञा, पु० दे० (सं० दुर्ग) किला, या पीड़ा देना, दुखी करना, व्यथित करना। कोट । “दक्खिन के सब दुग्ग जित"- भू०। मुहा०—( दिल) जी दुखाना -- मन दुग्ध-वि० (सं०) दुहा हुश्रा। संज्ञा, पु. दुखी करना । पके घाव को छूकर पीड़ा (स.) दूध, दृधू (ग्रा.)। पैदा करना। दुग्धवती-संज्ञा, स्त्री० (सं०) दूध देने वाली दुखारा-दुखारी-वि० दे० (हि० दुख+ गाय। आर-प्रत्य०) दुखारो --दुखी, पीड़ित, | दुग्धिका- संज्ञा, स्त्री० (सं०) दुधिया, दुद्धी शोकाकुल । “सो सुनि रावन भयो दुखारा।" घास । For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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