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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तिल तिरमिराना ८३७ तिरमिगना-अ० कि० दे० (हि. तिरमिरा) में तैरता हुआ पीपा जो चट्टानों आदि चौंधियाना, तिलमिलाना। के प्रगट करने के लिये छोड़ा जाता है। तिरशूल, तिरसूल-संज्ञा, पु० दे० (सं० तिरोधान—संज्ञा, पु. ( सं० ) अंतर्धान, त्रिशूल । तीन फल का भाला। "वाको है | छिपना। तिरसूल''- कवी । तिरोधायक संज्ञा, पु० (सं०) श्राड़ करने तिरस-वि० दे० (सं० तिरस ) टेढ़ापन से ।। । वाला, छिपाने वाला। तिरसठ-वि० (दे०) साठ और तीन । वि० तिरोभाव--संज्ञा, पु० (सं०) अंतर्धान, तिरसठवां । छिपाना, गोपना। तिरस्कार--संज्ञा, पु. ( सं०) अपमान, तिरोभूत-तिरोहित-वि० (सं०) छिपा अनादर, फटकार । वि० तिरस्कृत । हुआ, अंतहित। तिरस्कृत -- वि० (सं०) अनाहत, अपमानित, तिरौंछा-वि० दे० हि० तिरछा) तिरछा । परदे की अोट में। तिर्यक -- वि० (सं०) तिरछा, टेढा । संज्ञा, पु. तिरस्क्रिया--संज्ञा, स्त्री. ( सं० ) अनादर, पशु, पक्षी, सर्पादि। आच्छादन, अपमान । तिर्यक्ता -- संज्ञा, स्त्री० (सं.) तिरछापन । तिरहुत--संज्ञा, पु० दे० (सं० तीरभुक्ति ) तिर्यगति--संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) टेढ़ी या मिथिला प्रदेश । "जिन तिरहुत तेहि काल तिरछी चाल, पशु-योनि की प्राप्ति । निहारा"-रामा० । तिर्यग्यानि--- संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) पशु,पक्षी तिरहुतिया-वि० दे० ( हि तिरहुत ) तिर- आदि जीव । हुत का । संज्ञा, पु० तिरहुत-वासी, तिरहुत तिलंगा--- संज्ञा, पु. ( सं० तैलंग ) अँग्रेज़ी की भाषा। | सेना का देशी सिपाही. कनकौवा, तैलंगतिगना-स० क्रि० दे० (हि० तिरना) तैरना, वासी। पार उतारना, उबारना। तिलंगाना--संज्ञा, पु० दे० ( सं० तैलंग ) तिराहा-संज्ञा, पु० दे० यौ० ( हि तीन + तैलंग देश । फ़ा० राह ) तिरमुहानी, जहाँ से तीन मार्ग तिलंगी---वि० दे० पु० (सं० तैलंग) तिलंगाने तीन दिशाओं को गए हों। ___ का निवासी। संज्ञा, स्त्री० दे० (हि. तीन-+तिरिया-त्रिया-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० स्त्री) लंग ) एक तरह का पीतल । औरत, स्त्री। “तिरिया तेल हमीर हठ | | तिल--- संज्ञा, पु० दे० (सं०) तेल वाला एक चढ़े न दूजी बार".-हमीर हठ० । यौ०- पौधा या बीज, तिल दो प्रकार के हैं, काले तिरिया-चरित्तर-स्त्रियों की चालाकी और सफेद । मुहा०—तिलकी अोट या धूर्तता "तिरिया चरित न जानै कोय' पहाड़--किसी ज़रा सी बात का बड़ा -लो। मतलब । तिलका ताड़ करना-छोटी तिरीका-वि० दे० (हिं० तिरछा) तिरछा, सी बात को बहुत बढ़ा देना । तिल तिलटेढ़ा। स्त्री० तिरछी।। थोड़ा थोड़ा। तिल धरने की जगह न तिरी बरी-अव्य० (दे०) तितर-बितर, | होना---तनिक सा भी स्थान न होना। तिडीबिड़ी (दे०)। तिल भर--थोड़ा सा । " तिल भर भूमि तिरंदा-संज्ञा, पु० दे० (सं० तरंड ) मछली न सक्यो छुड़ाई"-रामा० । देह पर काले मारने की वंशी में एक छोटी लकड़ी जो रंग का छोटा सा चिह्न । ' कमरे ना जुके काँटे से थोड़ी दूर पर बँधी रहती है, समुद्र | जाना पै कहीं तिल होगा"। काले विन्दु For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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