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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तिमिर ८३६ तिरमिरा तिमिर-संज्ञा, पु. ( सं० ) अँधेरा, अंधकार, तिरछाई।-संज्ञा, स्त्री० दे० (हि. तिरछा ) धुन्धी रोग। " तहाँ तिमिर नहिं होय" | तिरछापन । -वृन्द। तिराना-अ० क्रि० दे० (हि० तिरछा ) तिमिरारि-तिमिरारी-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) तिरछा होना । स० कि० (दे०) टेढ़ा करना । सूर्य, अंधकार का शत्रु ।। तिरछापन-संज्ञा, पु० दे० (हि. तिरछा + तिमिरहर-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) सूर्य । पन ) तिरछा होने का भाव । तिमिराली-तिमिरावलि-संज्ञा, स्त्री० यौ० तिरछी-वि० स्त्री० (दे०) टेढ़ी। संज्ञा, स्त्री. (सं०) अंधकार का समूह ।। (दे०) छानी-छप्पर। तिमुहानी-संज्ञा, स्त्री० यौ० दे० ( हि. तीन तिरौहां-वि० दे० (हि. तिरछा+ौहां +मुहाना फ़ा० ) जहाँ से तीन ओर को प्रत्य० ) कुछ तिरछापन लिए । स्त्री० रास्ते गये हो, त्रिमार्गी त्रिपथ । तिरकोंहीं। तिय*-संज्ञा, स्त्री० दे० ( सं० स्त्री० ) औरत, तिरको हैं-क्रि० वि० दे० (हि. तिरछौहाँ ) स्त्री। “तिय बिसेसि पुनि चेरि कहि "- | तिरछेपन के साथ। " औचकि दीठि परी रामा०। तियला-संज्ञा, पु० दे० (हि० तिय + ला) एक तिरछौ "- कवि०। गहना। तिरना-अ० कि० दे० (मं० तरगा) उतराना, तिया-संज्ञा, पु० दे० ( सं० तृ ) तिक्की, तैरना, पैरना, पार होना, मुक्ति पाना। तिड़ी। संज्ञा, स्त्री० (सं० स्त्री) औरत, स्त्री। तिरनी - संज्ञा, स्त्री. (दे०) नीबी, तिन्नी, तियाग-संज्ञा, पु० दे० ( सं० त्याग ) त्याग, घाँघरे या धोती का नाभी के ठीक ठीक उत्सर्ग। नीचे का भाग। तिरकुटा-संज्ञा, पु० दे० (सं० विकटु) तिरप-संज्ञा, स्त्री० (दे०) नाच में एक ताल। लोंठ, मिर्च, पीपल । तिरपटा--वि० (दे०) कठिन, टेढ़ा । तिरकोना-संज्ञा, पु० दे० (सं० त्रिकोण ) तिरपटा-वि० (दे०) ऐंचा-ताना, भींगा, तीन कोने का, त्रिकोण, तिकोना । भंगा, भिंगा। तिरखा*-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० तृष्णा) तिरपाई -संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० त्रिपाद ) प्यास, पिपासा (दे०)। तिपाई स्टूल. (अं०)। तीन पाँव की चौकी । तिरखित*- वि० दे० (सं० तृषित) प्यासा।। तिरपाल-संज्ञा, पु० दे० (सं० तृण + हिं. तिरखूटा-वि० दे० यौ० (सं० त्रि+ हि.. पातना == बिछाना ) सरकंडे के पूले । संज्ञा, खूट) तिकोना, त्रिकोण । वि० स्त्री० | पु० दे० (अं० टारपालिन) रोगन चढ़ा टाट । तिरतूंटी, तिखंटी। तिरपित-- वि० दे० (सं० तृप्त ) संतुष्ट । तिरछई।-संज्ञा, स्त्री० दे० (हि. तिरछा) | तिरपोलिया-संज्ञा, पु० दे० यौ० (सं० वि+ तिरछापन। पोल हिं० ) हाथी श्रादि के निकलने योग्य तिरछा-वि० दे० ( सं० तिरश्चनि ) जो सीधा तीन फाटकों वाला स्थान । न होकर इधर-उधर मुड़ा हो, टेढ़ा स्त्री० तिरफला-संज्ञा, पु० दे० (सं० त्रिफला) प्रौरा, तिरछी। यौ०-बांका तिरछा-छबीला, हर, बहेरा । वि०-तीन फल वाला सुन्दर । मुहा०-तिरछी चितवन या तिरबेनी-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० त्रिवेणी) नज़र-बगल भर देखना, टेढ़ी या वक्र त्रिवेणी। दृष्टि । तिरछी बात या पचन--कटु | तिरमिरा- संज्ञा, पु० दे० (सं० तिमिर ) वाणी, अप्रिय वचन। रेशमी वस्त्र । । चकाचौंध, तिलमिलाइट । For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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