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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir . . .) तिखराना ८३४ तित्तरि-तित्तर तिखराना-अ.क्रि० दे० (सं० त्रि+हि०- तितर-बितर-वि० दे० यौ० (हि. तिधर + भाखर ) कोई बात पक्का करने के लिये तीन अनु०) बिखरा हुआ, फैला हुआ, अस्तव्यस्त, बार कहना, कहाना, त्रिवाचा बांधना। तितिर-बितिर (दे०)। तिखटा, तिखटा-वि० दे० यौ० (हि. तीन | तितली- संज्ञा, स्त्री० दे० (हि. तीतर ) एक +खूट) तिकोन, त्रिभुज, तीन कोने का। पखेरू, कीड़ा, एक घास । तिगुन-तिगुना-वि० दे० यौ० (सं० त्रिगुण) तितलौकी-संज्ञा, स्त्री० दे० यो० (हि. तीन गुना, तीगुन (ग्रा०)। तीता--- लौआ ) क दुवी लौकी, कटुतुम्बी। तिग्म-वि० (सं०) तेज़, पैना, तीक्ष्ण । तितारा-संज्ञा, पु० दे० यौ० (सं० त्रि+ तिग्मता-संज्ञा, स्त्री० (सं०) तेज़ी, पैनापन, हि० तार ) तीन तारों का एक बाजा । तीषणता । संज्ञा, स्त्री० तितारी (अल्पा०)। तिग्मरश्मि-संज्ञा, पु. यौ० (सं०) सूर्य, तितिबा-संज्ञा, पु० दे० (अ. तितिम्मः) रवि । " अभि तिग्मरश्मि चिरमा विरमात्" ढकोसला, पुस्तक का परिशिष्ट, उपहार । -माघ । तितिक्ष-वि० सं०) सहने वाला, सहन-शील। तिग्मराशि-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) अग्नि, तितिक्षक संज्ञा, पु० (सं०) सहनशील, सूर्य, गरमी का ढेर या समूह। सहिष्णु, क्षमावान । तिग्मांशु-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) सूर्य । तितिक्षा-संज्ञा, स्त्री० (सं०) क्षमता, सहितिच्छ-तिच्छन --वि० दे० (सं० तीक्ष्ण ) (णुता, सहनशीलता, क्षमा। तेज, तीव्र, प्रखर, प्रचंड, तीखा, पैना, । | तितितु-वि० (सं०) क्षमावान, क्षमी। तिरछा,चरपरा, कर्णकटु, असा,तीछन (दे०)। तितिम्मा-संज्ञा, पु. ( अ०) बचा भाग, "तिच्छ कटाच्छ नराच नवीनो"-राम। परिशिष्ट, उपसंहार। तिजरी-संज्ञा, पु० दे० (हि. तिजार) तीसरे | तितीर्षा-संज्ञा, स्त्री० (सं०) तैरने या तरने या पार होने की इच्छा। दिन जाड़ा लगकर पाने वाला ज्वर, तिजारी। तिजारत-संज्ञा, स्त्री० (अ.) व्योपार, तितीर्घ-संज्ञा, पु० (सं०) तैरने तरने या वाणिज्य, सौदागरी। वि०तिजारती। पार होने की इच्छा वाला। "तितीर्पा, दुस्तरं तिजारो-संज्ञा, स्त्री० (हि० तिजार ) प्रति | मोहाद"-रघु०। तीसरे दिन जाड़ा लगकर पाने वाला ज्वर । तिते-तित्तेछ--वि० ० (सं० तति ) तेते तिजिल-संज्ञा, पु० दे० (तिज-+ दल) चंद्रमा, | (३०), उतने, तितने। (विलो० जिते)। जेते, जिते। राक्षस। तितेक -वि० ० (हि. तितो+एक ) तिजोरी-संज्ञा, स्त्री० (दे०) लोहे की संदूक । उतना, तितना। तिडी-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० ४) तिक्की। तित -क्रि० वि० दे० (हि. तित + ऐ तिडीबिड़ी-वि० यौ० (दे०) इधर-उधर, प्रत्य० ) वहाँ, वहीं, तहाँ, तहीं । " होत तितर-बितर, फैला हुआ, छितराया हुआ। । सबै तब ठाकुर तितै"-राम। तित*-क्रि० वि० दे० (सं० तत्र ) वहाँ, तितो-तित्तो+-वि० कि. व. (सं. तहाँ, उस ओर : " बातन की रचनानि कौं, । तति) उतना, जितना । तेतो (विलो० जितो) तित को कहा अकथ्य"-राम। " जितो कियो पायो तितो, घट बढ़ नहीं तितना-क्रि० वि० दे० (सं० तावत् ) बराट"-स्फु०। उतना, उस प्रमाण या परिमाण का।(विलो० ! तित्तरि-तित्तर-संज्ञा, पु. (सं० ) तीतर जितना)। । पक्षी, तीतुर, तीतुल (दे०)एक मुनि । For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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