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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तारट्रटना ६३० तारा तारट्रस्ना-अ. क्रि० यौ० दे० (हि.) समाचारों के जाने पाने का स्थान । कारबार नष्ट हो जाना, टिक्का उड़ाना, प्रवेश तारघाट-संज्ञा, पु० यौ० ( हि० ) कार्यबंद होना, सिलसिला बिगड़ना, वशीभूतका सिद्धि का सुभीता, व्यवस्था । छड़क जाना । मुहा०-तार तार करना-- | तारण-संज्ञा, पु० (सं.)तारन (दे०) नदी सूत सूत अलग अलग कर देना । लगातार, श्रादि से पार उतारने का कार्य, उद्धार, परंपरा, सिलसिला, क्रम । मुहा० -तार | निर्वाह, निस्तार, तारने या मुक्ति देने वाला, बँधना-बाँधना-किसी काम का लगातार | भगवान, विष्णु, शिव । "जगतारण कारण चला जाना, सिलसिला जारी रहना । ब्योंत, भव भंजन धरणी-भार" --रामा० । ढङ्ग, व्यवस्था। मुहा०—तार जमना, बैठना, तारणतरण- संज्ञा, पु० (सं०) नाव से उतारने बँधना-ब्योंत बनना, कार्य-सिद्धि का | वाला । मुक्ति या मोक्ष देने वाला, विष्णु, ढङ्ग या सुभीता होना । युक्ति, ढङ्ग, एक | शिव, तारने वालों का तारनेवाला। वर्ण वृत्त । मुहा०—तार ढीले पड़ना तारतम्य-संज्ञा, पु० (सं० ) कमी-वेशी, कम-ज्यादा, न्यूनाधिक्य, न्यूनाधिक्यानुसार शिथिलता पाना । संज्ञा, पु० दे० (सं० ताल) क्रम, गुणादि का आपस में मुकाबिला, गुप्त. गाने की ताल, ताड़ पेड़ । संज्ञा, पु० दे० (सं० भेद का रहस्य । वि० तारतिक। तल) तल,सतह । (संज्ञा, पु० दे० (हि० ताड़) तारतोड़- संज्ञा, पु० (दे० ) कारचोबी करनफूल, तरौना। वि० दे० (सं.) का काम। साफ़, स्वच्छ । तारक-संज्ञा, पु० (सं०) तारा, आँख, | तारन-संज्ञा, पु० दे० (सं० तारण ) पार आँख की पुतली, तारकासुर । “ों रामाय उतारना, उद्धार, निस्तार, निर्वाह । नमः " यह मंत्र । नदी श्रादि या संसार- तारनतरन-संज्ञा, पु० दे० (सं० तारणतरण) सागर से पार उतारनेवाला, एक वर्ण तारनेवालों का तारनेवाला, मुक्तिदाताओं वृत्त । "गिरि वेध खड़मुख जीति तारक | का मुक्तिदाता । "सकृत उर मानत जिन्हें _ नर होत तारन-तरन "- कं० वि०। यौ० तारक-मंडल-तारा-मंडल | तारना-सं० क्रि० दे० ( स० तारण ) पार तारकश-संज्ञा, पु० यौ० (हि. तार+ | __ लगाना, मुक्ति देना। कशा फा० ) धातु का तार बनाने वाला। तारपतार-वि० (दे० ) तितर-बितर, छिन्न-भिन्न । संज्ञा, स्त्री. तारकशी। तारका-संज्ञा, स्त्री० (सं०) तारा गण, तारपीन-संज्ञा, पु० दे० ( अं० टारपेंटाइन) चीड़ का तेल । आँख की पुत्तली, अंगद की माँ, तारा । तारबी संज्ञा, स्त्री० (सं० ताड़का) ताड़का । "तुलयति -संज्ञा. पु० यौ० (हि. तार+का. वर्क) बिजली का तार । स्म विलोचन तारका"-माघ० । तारल्य-- संज्ञा, पु० (सं०) द्रवत्व, तरलता तार-कण-संज्ञा, पु० (सं) षडानन, शिव । चंचलता। तारकात--संज्ञा, पु० यो० (सं० ) तारका- तारा-संज्ञा, पु० (सं० ) सितारा, आँख की सुर का पुत्र । पुतली, अंगद की माँ। "तारा बिकल देखि तारकासुर-संज्ञा, पु. यो० (सं०) एक दैत्य रघुराया"-रामा० । मुहा० तारे गिननाजिसे षडानन ने मारा था। चिंता या दुख से रात बिताना । तारा तारकेश्वर-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) शिवजी । टूटना-उल्कापात होना । तारा डूबनातार-घर-संज्ञा, पु. यो० (हि.) वार से शुक्रास्त होना। For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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