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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - जन्मकाल ७११ जबरई जन्मकाल-संज्ञा, पु. यौ० (सं०) उत्पत्ति । जन्यु-संज्ञा, पु० (सं०) ब्रह्मा, अग्नि, प्राणी, का समय। जन्म, सप्त ऋषियों में से एक । जन्मतिथि-- संज्ञा, स्त्री० यौ० (दे०) जन्म का जप-संज्ञा, पु. (सं.) किसी मन्त्र या वाक्य दिन, जयंती। का बार २ धीरे २ पाठ करना, पूजा आदि जन्मदिन---संज्ञा, पु० यौ० (सं०) जन्म-दिक्स, में मन्त्र का संख्या-पूर्वक पाठ । उत्पत्ति का दिन, वर्ष गाँठ। जपतप- संज्ञा, पु. यौ० (हि.) संध्या पूजा, जन्मना-अ. क्रि० दे० (सं० जन्म+ना- जप और पाठ श्रादि, पूजा-पाठ । “ जपतप प्रत्य०) उत्पन्न या पैदा होना, अस्तित्व | कछु न होय यहि काला"- रामा० । में आना। जपना--स० क्रि० दे० (सं० जपन ) किसी जन्मपत्र--संज्ञा, पु० यौ० (सं०) जन्म-पत्री वाक्य या शब्द को धीरे २ देर तक कहना (स्त्री०) जन्म-कुण्डली। या दोहराना, संध्या, यज्ञ या पूजा आदि जन्मभूमि--संज्ञा, स्त्री. यौ० (सं०) वह के समय संख्यानुसार बार २ मंत्रोच्चारण स्थान या देश जहाँ किसी का जन्म हुआ करना, खाजाना, ले लेना। हो । “ जननी-जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि जपनी-संज्ञा, स्त्री० दे० (हि० जपना) माला, गरीयसी" "जन्म भूमि मम पुरी सुहावनि" गोमुखी, गुप्ती। --रामा०। जपनीय-वि० (सं०) जप करने योग्य । जन्मस्थान - संज्ञा, पु. यौ० (सं०) जन्मभूमि, जन्मभूमि, जपमाला-संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) जप करने राम-जन्म-स्थल ( अयो०)। का माला। " जप माला छापा तिलक" जन्मांतर-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) दूसरा जन्म। | -वि०। " जन्मांतरे भवति कुष्टो. "-भावः ।। जपा-संज्ञा, स्त्री. (सं०) जवा, अड़हुल । जन्मांध-वि० यौ० (सं० जन्म + अंध) जन्म | संज्ञा, पु० दे० (सं० जापक ) जपने वाला। से अन्धा, आजन्म नेत्रहीन । जपीतपी-संज्ञा, पु. यौ० (सं०) पूजक, जन्माना- स० क्रि० दे० (हि. जन्मना) अर्चक, जपतप-परायण, तपस्वी। उत्पन्न ( प्रसव ) कराना, जन्म देना। जफा-संज्ञा, स्त्री० (फा०) सख़्ती, जुल्म । जन्माष्मी-- संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) भादों की कृष्णाष्टमी कृष्ण की जन्म तिथि। जफील-संज्ञा, स्त्री० दे० (अ. जफ़ीर ) सीटी का शब्द, सीटी। जन्मेजय-संज्ञा, पु० (सं०) जनमेजय।। जन्मोत्सव-संज्ञा, पु. यौ० (सं०) किसी के । जब-क्रि० वि० दे० (सं० यावत् ) जिस जन्म का उत्सव तथा पूजन । समय, जिस वक्त । मुहा०-जब २जन्य-संज्ञा, पु. (सं०) साधारण मनुष्य, जब कभी, जिस २ समय । जब-तबजनसाधारण, किंवदन्ती, अफ़वाह, राष्ट्र, कभी २ । जब देखो तब-सदा, सर्वदा, । किसी एक देश के वासी, लड़ाई, युद्ध, जबड़ा-संज्ञा, पु० दे० (सं० ज भ ) मुंह पुत्र, बेटा, पिता, जन्म। स्त्री. जन्या। में दोनों ओर ऊपर-नीचे की वे हड़ियाँ वि० जन-सम्बन्धी, किसी जाति, देश, या जिनमें दाढ़ें जमी रहती हैं। राष्ट्र से सम्बन्ध रखने वाला, राष्ट्रीय, | जबर- वि० दे० (फा. जबर ) बलवान, जातीय, जो उत्पन्न हुअा हो, उद्भूत। | मजबूत, दृढ़, अधिक। जन्या- संज्ञा, स्त्री० (सं०) माता की संगिनी, जबरई -- संज्ञा, स्त्री० दे० (हि. जबर ) वधू की सखी। अन्याय-युक्त, अत्याचार, सख्ती, ज़्यादती। For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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