SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 325
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org उतारु उतारु - वि० ( हि० उतारना) उद्यत, तत्पर, तैय्यार । उताल - क्रि० वि० दे० (सं० उद् + त्वर ) जल्दी, शीघ्र, " निज निज देसन चले उताला - रघु० । संज्ञा स्त्री० शीघ्रता, जल्दी, ढीठ, ऊंचा । 39 उताली * - संज्ञा स्त्री० ( हि० उताल ) शीघ्रता, जल्दी, उतावली, श्रातुरता । क्रि० वि० शीघ्रतापूर्वक, जल्दी से, फुर्ती से । उतावल - क्रि० वि० (सं० उद् + त्वर ) जल्दी-जल्दी, शीघ्रता से . कोउ 66 "" उतावल धावत - सूर० । उतावला – वि० दे० (सं० उद् + त्वर) जल्दी मचाने वाला, जल्दबाज़, व्यग्र, चतुर, चंचल, धीर । उतावली -संज्ञा स्त्री० दे० (सं० उद् + त्वर ) जल्दी, शीघ्रता, अधीरता, चंचलता, व्यग्रता, जल्दबाज़ी, आतुरता, वि० स्त्री०जो शीघ्रता में हो, धतुरा । उताहल - उताहिल - क्रि० वि० ( दे० ) शीघ्रता से । उतृण - वि० दे० (सं० उद् + ऋण ) ॠणमुक्त, उऋण, उपकार का जिसने बदला चुका दिया हो । उतै – क्रि० वि० ( दे० ) वहाँ, उधर, उस श्रोर । उतैला - वि० (दे० ) उतावला, आतुर । उत्कंठा - संज्ञा, स्त्री० (सं०) लालसा, प्रबल इच्छा, तीव्र अभिलाषा, एक प्रकार का संचारी भाव, बिना विलंब के किसी कार्य के करने की अभिलाषा, उत्सुकता, श्रौत्सुक्य । उत्कंठित - वि० (सं० ) उत्कंठायुक्त, चाव से भरा हुआ । उत्कंठिता - वि० स्त्री० (सं० ) संकेत स्थान में प्रिय के न आने पर तर्क-वितर्क करने वाली नायिका, उत्सुका, उत्का । उत्कट - वि० (सं० ) तीव्र, विकट, ऊग्र । उत्कलिका -संज्ञा, स्त्री० (सं० ) उत्कंठा, ३१४ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उत्त तरंग, फूल की कली, बड़े बड़े समास वाली गद्य - शैली । उत्कर्ष - संज्ञा, पु० (सं० ) बड़ाई, प्रशंसा, श्रेष्ठता, उत्तमता समृद्धि । उत्कृष्ट - वि० (सं० ) श्रेष्ठ, सर्वोत्तम । उत्कर्षता - संज्ञा स्त्री० (सं० ) श्रेष्ठता, " बड़ाई, उत्तमता, अधिकता, प्रचुरता, समृद्धि । उत्कल - संज्ञा, पु० (सं०) उड़ीसा देश, वहाँ का प्रधान नगर, या पुरी जगन्नाथ । उत्का - वि० स्त्री० (सं०) उत्कंठिता नायिका, संकेत-स्थान में नायक के न थाने पर धनुतप्ता । उत्कीर्ण - वि० (सं० ) लिखा हुआ, खुदा हुआ, छिदा हुआ, उत्क्षिप्त, क्षत । उत्कुण - संज्ञा, पु० (सं० ) मत्कुण, खटमल, बालों का कीड़ा, जूं, जुयाँ । उत्कृति - संज्ञा, स्त्री० (सं० ) २६ वर्णों के वृत्तों का नाम, छब्बीस की संख्या । उत्कृष्ट - वि० (सं०) उत्तम, श्रेष्ठ, अच्छा । उत्कृष्टता — संज्ञा, स्त्री० ( सं० ) श्रेष्ठता, बड़प्पन | उत्कोच -संज्ञा पु० (सं० ) घूँस, रिश्वत । उत्कोश - संज्ञा, पु० (सं० ) पक्षी विशेष, कुररी, टिट्टिभ, राजपक्षी । अ० क्रि० उत्काशना-चिल्लाना । उत्क्रांति -संज्ञा, स्त्री० (सं०) क्रमशः उत्तमता और पूर्णता की ओर प्रवृत्ति । मृत्यु, मरण | वि० उत्क्रान्त (सं० उत् + क्रम + क्त) निर्गत, ऊपर गया हुआ, उल्लंघित । उत्खात - वि० (सं० उत् + त् + क्त ) उन्मूलित, उत्पादित, विदारित, उखाड़ा हुआ । उतंग - वि० दे० (सं० उत्तुंग ) ऊँचा, उतंग (दे० ) । उत्तंस - संज्ञा पु० (सं० ) कर्णपूर, कर्णाभरण, शेखर, करनफूल, शिरोभूषण, मुकुट । वि० पु० अवतंस, श्रेष्ठ । उत्त* -- संज्ञा, पु० (सं० उत्) आश्चर्य, संदेह | क्रि० वि० (दे० ) उत, उधर, उस ओर । For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy