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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Teriya १८७७ हस्तमैथुन संज्ञा, पु० यौ० (सं०) हाथ से इंद्रिय संचालन, सरका करना (प्रान्ती० ) । हस्तरेखा संज्ञा स्त्री० यौ० (सं०) हथेली की लकीरें जिनसे शुभाशुभ का विचार | किया जाता है, ( सामु० ) । हस्तलाघव - संज्ञा, पु० यौ० (सं०) हाथ की तेजी या फुरती हाथ की सफाई । राघव-समान हस्तलाघव विलोकि ६६ अव० -- हस्तलिखित वि० यौ० (सं०) हाथ का लिखा 'हुश्रा ( पुस्तकादि ) । हस्तलिपि संज्ञा, स्रो० यौ० (सं०) हाथ की लिखावट या लेख | हनलेख- पंज्ञा, पु० लिखा हुआ । यौ० (सं०) हाथ का हस्ताक्षर संज्ञा, पु० यौ० (सं०) दस्तखत, किसी लेखादि के नीचे अपने हाथ से लिखा गया अपना नाम । हस्तामलक संज्ञा, पु० यौ० (सं०) वह बात या वस्तु जो सब थोर से पूर्ण रूप से स्पष्ट और ज्ञात होकर दिखलाई देती हो, जैसे हाथ पर का आँवला । --- हस्ति - संज्ञा, पु० दे० (सं० हस्तिन् ) हस्ती, हाथी । हस्तिदंत - संज्ञा, पु० यौ० (सं०) हाथी -दाँत । हस्तिदंतक - संज्ञा, पु० यौ० (सं०) मूली । हस्तिनापुर - संज्ञा, पु० (सं०) वर्तमान दिल्ली से कुछ दूर पर कौरवों की राजधानी का एक प्राचीन नगर । -- हस्तिनी संज्ञा स्त्री० सं०) हथिनी मादा हाथी, खियों के ४ भेदों में से एक निकृष्ट भेद ( काम ० ) । हस्तिपक - संज्ञा, पु० (सं०) महावत, हाथीवान, हथवाल, हथवान । हाँक BEST CHOOS हस्ती - संज्ञा, पु० (सं० हस्तिन् ) हाथी | स्त्री० - हस्तिनी | संज्ञा, स्त्री० ( फा० ) अस्तित्व होने का भाव । हस्ते - अव्य० (सं०) मारफ़त हाथ से हत्थे (है०) । 'ताके हस्ते रावनहि, मनहु चुनौती दीन - रामा० । 19 हस - ग्रव्य० (दे०) हसत्र (फा० ) अनुसार । हस्ती - संज्ञा स्त्री० (३०) स्त्रियों के गले का एक गहना, हसली, हँसुनी, हसुली (दे०)। | -- हस्तिकंद – पंज्ञा, पु० यौ० (सं०) एक पौधा जिसका कंद लोग खाते हैं, हाथीकंद (दे०) । हहा -संज्ञा, स्त्री० (अनु० ) उट्ठा, हँसने का शब्द, गिड़गिड़ाने का दीनता, शोकादिसूचक शब्द, हा ! हा !, हाय हाय । मुहा० - हहा ( हाहा ) खाना - बहुत गिड़गिड़ाना, हाहाकार करना | हाँ ग्रव्य दे० (सं० श्रम् ) स्वीकृति, स्वीकार या सम्मति-सूचक शब्द किसी बात के ठीक या उपयुक्त होने का सूचक शब्द ठीक । मुहा० - हाँ करना - राजी होना, स्वीकार करना, सम्मत होना। हाँ जी हाँ जी करना - खुशामद करना, यहाँ । “साँकरी गली मैं प्यारी हाँ करी न नाकरी " 1 हाँक - संज्ञा, स्त्री० दे० ( सं० हुँकार ) किसी के बुलाने या डाँट बताने को जोर से बोला Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir EET - संज्ञा, स्त्री० ( हि० हहरना ) कंपकंपी, भर, डर, थर्राहट | संज्ञा, पु० (दे० ) वायु या जल के वेग का शब्द | हहरना - अ० क्रि० (अनु०) काँपना, थर्राना, डर से काँप उठना, थरथराना, दंग रह जाना, दहलना, चकित या स्तंभित होना, सिहाना या डाह करना, अधिकता देख चकपकाना ! हहाना - ग्र० क्रि० ( अनु० ) काँपना, थरथराना भयभीत होना या डरना, हरहराना (दे० ) | स० क्रि० - दहलाना, डराना, भयभीत करना | " रँगराती हरी हहराती लता कि जाती समीर के फोंकनि सों - स्फु० । --- For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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