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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - हरनाकुस, हरिनाकुस हरसना हरनाकुस, हरिनाकुस -संज्ञा, पु० दे० (फा० हरामजादः ) नटखटी, बदमाशी, (सं० हिरण्यकशिपु) दैत्य-राज, हिरण्यकशिपु, शठता, दुष्टता, शरारत । वि०-हरामजादा । प्रहलाद का पिता। हरमुष्ठा- संज्ञा, पु० (दे०) हृष्ट-पुष्ट, हट्टा-कट्टा, हरनाच्छ-हरिनाच्छा*-संज्ञा, पु. दे. मोटा-ताजा, बलवान । ( सं० हिरण्याक्ष ) हिरण्याक्ष नामक दैत्य, हरये*-अव्य० दे० ( हि० हरुवा ) धीरे हिरण्यकशिपु का छोटा भाई। धीरे, रसे रसे, हौले-हौले, हरएँ । हरनी-संज्ञा, स्त्री० दे० ( हि. हिरन ) मृगी, हरवल*--संज्ञा, पु० दे० ( तु. हरावल ) छिगारी, हिरन की मादा, हरिनी, हिरनी। सेना का अग्रभाग, वे सिपाही जो सेना में | सब से भागे रहते हैं। हरनोटा-संज्ञा, पु० दे० (हि. हिरन ) हिरन हरवली-संज्ञा, स्त्री० ( तु० हरावल ) फौज का बच्चा. हिरनौटा, हरिनौटा। की अफसरी या सरदारी, सेना की अध्यक्षता। हरफ़-संज्ञा, पु० (अ०) वर्ण, अक्षर, हर्फ, हरवा-संज्ञा, पु० दे० (सं० हार ) माला, हरूक (दे०) । मुहा०-किसी पर हरफ़ हार । वि. हरुवा, हलका। आना-दोष या अपराध लगना, कलंक हरवाना-प्र. क्रि० दे० (हि. हड़बड़ ) लगना । हरफ़ उठाना- वर्ण या अक्षर शीघ्रता, या जल्दी करना, उतावली या पहिचान कर पढ़ लेना। आतुरता करना । स० कि० दे० (हि. हारना) हरफा-रेवड़ी-संज्ञा, स्त्री० दे० ( सं० हरि- हारना का प्रे० रूप । पर्वरी ) कमरख की जाति का एक पेड़ और हरवाह-हरवाहा-संज्ञा, पु० दे० (सं० उसके फल । हलवाह ) हल चलाने या जोतने वाला । हरबर-क्रि० वि० दे० (सं० शीव हि० हड़बड़) स्त्री-हरवाहिन । संज्ञा, न्त्री०-दरवाही। हड़बड़, शीघ्रता, शीघ्र, घबराहट के साथ। हरष*-संज्ञा, पु० दे० ( सं० हर्ष ) पानंद राम-काज को काज जानि तह मुनिवर प्रमोद, खुशी, सुख, मोद, प्रसन्नता, हरख हरबर प्रायो"-रा. घु० । संज्ञा, स्त्री. (दे०)। " सिय-हिय हरष न जाय कहि" (दे०) हरबरी-शीघ्रता, श्रातुरता -रामा०। संज्ञा, पु० (दे०) हरषन, हर्षण हरबराना -अ.क्रि० दे०(हि. हड़बड़ाना) हड़बड़ाना, शीघ्रता करना, शीता के हरपना*---अ० क्रि० दे० (सं० हर्ष+नाकारण घबरा जाना। प्रत्य० ) प्रसन्न या हर्षित होना, मुदित हरबा-संज्ञा, पु० दे० (अ० हरबः ) औज़ार, होना, प्रानंदित होना, हरखना (दे०)। अस्त्र, हथियार। " हरषि सुरन दु'दुभी बजाई "-रामा० । हरबोंग-वि० दे० यौ० (हि० हल -- बोंग ) हराना* - अ० क्रि० दे० (हि० हरष - लहम र, गँवार, देहाती. अक्खड़, मूर्ख, भाना-प्रत्य० ) प्रसन्न या हर्षित होना, जड़ । संज्ञा, पु० अत्याचार, अंधेर, उपदव, खुश होना, हरखाना (दे०) । स० कि. हर्षित या प्रसन्न करना। कुशासन । हरषित-वि० दे० (सं० हर्षित ) हर्षित, हरम-संज्ञा, पु० (अ०) जनानखाना, अंत: प्रसन्न, मुदित । " हरषित भई सभा सुनि पुर । संज्ञा, स्त्रो०-रखेली स्त्री, मुताही दासी, __ बानी"--स्फु०। पत्नी । यो०-हरमसरा-अंतःपुर, रसना-अ० कि० दे० (हि. हरषना) जनानखाना । प्रसन्न या हर्षित होना मुदित होना । स० हरमजदगी, हरामजदगी-संज्ञा, स्रो० रूप-हरसाना, हरसावना । For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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