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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १८६५ हरखना हर्ष, धानन्द, प्रसन्नता, खुशी । "हरख समय बिसमय करसि कारन मोहिं सुनाव' रामा० । हरखना- - भ० क्रि० दे० (सं० हर्ष हि० दरख ) प्रसन्न होना, हर्षित या मुदित होना, हरपना (दे० ) । " सुनि हरखा रनिवास " - रामा० । 15 हरखाना - अ० क्रि० दे० ( हि० हरखना ) हरखना, प्रसन्न होना, हर्षित होना प्रमुदित, होना । " सुनि दससीस बहुत हरखाना - स्फु० । स० क्रि० (दे०) मुदित या प्रसन्न करना, आदित या हर्षित करना । हरखित - वि० (दे० ) हर्षित, मुदित, प्रसन्न । हरगिज़ - अव्य० ( फ़ा० ) किसी दशा में भी, कभी, कदापि । हरचंद - धन्य० ( फा० ) यद्यपि, अगरचे, कितना ही बहुत या बहुत बार, हर तरह से । " मैंने तो हरचंद समझाया मगर माने न तुम " -- शि० गो० । संज्ञा, पु० यौ० ( हि०) शिव- शोरा पर की चन्द्रकला, राजा हरिचंद, हरिश्चन्द्र । हरचंदन - संज्ञा, पु० यौ० (सं०) श्वेत चदन मलयाचल चन्दन | हरज - ज्ञा ५० दे० ( ० दर्ज) हर्ज, क्षति, हानि, नुकसान, अड़चन, बाधा । हरजा - संज्ञा, पु० दे० ( अ० हर्ज ) हर्जा (दे०), हानि, तति, नुकसान, बाधा, अड़चन । हरजाई - संज्ञा, पु० ( फ़ा० ) हर जगह रहने या घूमने वाला, धावारा, बहल्ला ( प्रान्ती० ) | संज्ञा, स्त्रो० दे० ( फा० हर + जाया-सं० ) कुलटा, स्वैरिणी, व्यभिचारिणी श्री । हरजाना - संज्ञा, १० ( फा० ) क्षति पूर्ति, नुकसान या हानि का बदला । हरट्ट, हरिस्ट - वि० दे० (सं० हृष्ट ) हृष्टपुष्ट, मोटा ताजा, मजबूत, दृढ, हिरिस्ट । भा० श० को० - २३४ हरना हरण - संज्ञा, पु० (सं० ) लूटना या छीनना, हाना, चुराना, मिटाना, नाश या दूर करना, संहार करना, विनाश, वहन, ले जाना, भाग देना, बाँटना, घटाना, हरन (दे० ) । वि० - हरणीय । हरता -- संज्ञा, पु० दे० (सं० हर्तृ ) हर्त्ता, नाशक, लूटने या छीन लेने वाला, हरने वाला, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चुराने वाला | हरता धरता - संज्ञा, पु० दे० यौ० (सं० हर्तृ घर्तृ - वैदिक ) पूर्ण अधिकारी, सब बातों का अधिकार रखने वाला, कर्ता-धर्ता | हरतार हरताल - संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० हरिताल ) पीले रंग का एक खानिज पदार्थ । "गंधक पारा और हरताल । चूरन बनै दाद को काल" - स्फु० । मुहा० - किसी बात पर हरताल लगाना ( फेरना ) - रख या नष्ट करना, मिटा देना । हरद-दी- सज्ञा, स्रो० दे० (सं० हरिद्रा ) हरिद्रा, हलड़ी, हर्दी (दे०) । हरदौर- हरदौल - संज्ञा, पु० दे० ( सं० हरदत्त ) चोरछा के राजा जुझारसिंह ( सन् १६२६ – ३५ ई०) के भ्रातृ-भक्त भनुन, जिन्हें हरदियादेव या हरदेव भी कहाते हैं। हरद्वान - सज्ञा, पु० (दे०) एक पुराना नगर जो तलवार के हेतु विख्यात था। हरद्वार- सज्ञा, ५० दे० ( स० हरिद्वार ) एक प्रसिद्ध तीथ जहाँ गंगा जी पर्वतों से भूमि पर उतरती हैं, हरिद्वार । हरना - स० क्रि० द० सं० हरण) हरण करना, लूटना, छीनना, चुरा लेना, हटाना, उड़ा ले जाना, दूर करना, नाश करना या मिटाना, घटाना, भाग देना। मुहा०चित्त या मन (हिय-हृदय) हरना - मन लुभाना, चित्ताकषित करना, खींचना। प्राण हरना - मार डालना, बहुत दुख देना । * अ० क्रि० दे० ( हि० हारना ) हारना । | संज्ञा, ५० दे० (सं० हरिण ) हरिया, मृग, हरिना, हरना (दे० ) । For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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