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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हमजोली १८६३ हमेशा संज्ञा, पु०- अहंकार, घमंड, हम का भाव । बरी. तुल्यता । “किसी की मजाल है जो अव्य.- फा०) संग, साथ, तुल्य, समान, करे उसकी हमसरी।" बराबर । 'जो हम निदरहिं विप्र वदि, यत्स, हम हमाव संज्ञा, पु. यौ० (दे०) यह सुनहु भृगुनाथ'-रामा० । हमारा है, यह पराया है इसका भाव, हमजोली - सज्ञा, पु० दे० यौ० (फा० हम+ अपना-पराया। जोड़ो हि० ) सगी साथी, मित्र, सखा सह- हमहमी-संज्ञा, पु० दे० (हि. हम, सं० योगी, सम वयस्य । अहम् । स्वार्थ परता, अहंकार. अपने अपने हमता*-सज्ञा, स्त्री० दे० हि० हम+ता लाभ का उतावली से उपाय । प्रत्य० ) अहं कार, घमंड, अहंभाव, हमत्व । हमाम--संज्ञा, पु० दे० (अ. हम्माम ) स्नानागार। हमदद-सज्ञा, पु. यो. (फा०) दुख में सहानुभूति रखने वाला । “कोई हमदर्द हमार-हारा-सर्व० दे० (हि. हम - श्रा. नहीं, यार नहीं, दोस्त नहीं -स्फु.। पारा प्रत्य० । हम का संबंध कारक में रूप, हमदर्दी-सज्ञा, स्त्री० (फा० ) समवेदना, हमारो (ब्र०), हमरा (ग्रा.)। "बचन सहानुभूति । हमार मानि गृह रहऊ'... रामा० । '' कहि प्रताप वल-रोष हमारा"-रामा०। स्त्री०हमरा-सर्व दे० (हि. हमारा ) हमारा, हमरा ( ब्र.)। स्त्री हमारी। हमारि, हमारी, हमरी ग्रा०)। हमाल--संज्ञा, पु० दे० (अ. हम्माल) बोझा हमराह-अव्य० (फा०) कहीं जाने में किसी उठाने या वहन करने वाला, मजदूर, के संग या माथ में जाना, माथ सग। कुली, रक्षक। "आप के हमराह काये जायेंगे ज़्यारत को हमा-हमी-संज्ञा, स्त्री० दे० (हि. हम ) हम''- स्फु०। स्वार्थ-परता, अहकार, घमंड, निज स्वार्थ हमगहा- सज्ञा, पु० वि० (फा० हमराह + ई या लाभ का प्रातुर प्रयत्न । -प्रत्य.)माथी संगी। हमीर -- संज्ञा, पु० दे० (सं० हम्मीर ) एक हमल- संज्ञा, पु० (१०) गर्भ. स्त्री के पेट मिश्रित राग ( संगी०), रणथंभौर के का बच्चा, स्त्री के पेट में बच्चे का होना। राजा हम्मीर देव ( इति०) । “तिरिया. " रिज़क देता है हमन में वह बड़ा रज्जाक तेल, हमीर-हठ, चढ़े न दुजी बार"। है"- स्फु०। हमें-सर्व दे० (हि. हम ) हमका कर्म और हमला - संज्ञा, पु. (अ.) धावा, चदाई, | संप्रदान कारक में रूप, हमको. हमारे हेतु युद्ध-यात्रा प्रहार, आक्रमण, युद्धार्थ चढ़ या लिये, हम हि ( श्रव०), हमें (दे०)। दौड़ना, विराध में कही गई बात, मारने हमेल -सज्ञा, स्त्री० दे० (अ० हमायल) चाँदी को झपटना, वार । सोने के सिक्कों या मोहरों का हार जिसे हपवार -वि० (फ़ा०) सपाट, समतल, बरा- गले में पहनते हैं, हुमेल । बर सतह वाला, समधरातल । हमेव*----सज्ञा, पु० दे० ( सं० अहम् + हमसर --सज्ञा, पु० वि० (फा० सदृश, समान एव ) हमी अहंकार, घमंड, अहमेव, अहंबल, पद, गुणादि में सम व्यक्ति तुल्य । • कोई हम पर है नहीं उसका बताऊँ क्या | हमेशा-भव्य० (फ़ा०) संतत, सदा, सर्वदा, तुझे"-स्फु० । सज्ञा, स्त्री० हि०) हमपरी। निरंतर, सदेव, सब दिन या सब काल, हमसरी-सज्ञा, स्रो० (फा०) समता, बरा- सतत, हमेसा, हमेस (दे०)। For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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