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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुरनायक. सुरनाथ १७६७ सुरमचू Womope सुरनायकसुरनाथ----संज्ञा, पु० यौ० (सं०) भय या प्रेमानंद से स्वर के रूपांतर या इंद्र. देवनाथ, देवराज. सुरपति । विपर्यास. (माविक भाव)।। सुरनारी-संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) देवताओं सुर-भवन - संज्ञा, पु० यौ० (सं०) देव-मंदिर, की स्त्री, देव-वधू , श्रमर-बधूटी। देवालय, देव स्थान, देव लोक, सुरपुरी, अमसुरनाह- संज्ञा, पु० दे० यौ० (सं० सुरनाथ रावती, सुर-भौन (दे०)। सुरनाथ, देवनाथ, इना. देवराज । सुरभान-सज्ञा, पु० दे० यौ० (सं० सुर--- सर-नकेन, सर-निकेतन · संज्ञा, खी० पु. भानु) सूर्य, इन्द्र। यौ० (सं०) स्वर्ग, वैकठ, अमरावती, देवालय, सुरभि-संज्ञा, पु० (सं०) बसंत ऋतु, मधु, देव स्थान, सुर-लदन। चैत्रमास, स्वर्ण, कंचन, सोना । संज्ञा, स्त्री० सुर-निलय--संज्ञा, ५० यौ० (सं०) सुमेरु गौ, पृथ्वी, गायों की अधिष्ठात्री, और श्रादि पहाड़। जननी, कामधेनु, मदिरा, सुरा. सौरभ सुगंधि, सुरप*-संज्ञा, पु० दे० (सं० सुरपति) इन्द्र। तुलसी : वि. --सुवासित. सुगंधित, मनोज्ञ, सुर-पति-संज्ञा, पु०यौ० (सं०) सुराधिपति, मनोहर, सुन्दर, उत्तम, श्रेष्ठ । “ताम् सौरसुरेश, इन्द्र, विष्णु | 'सुरपति रहै सदा भेयीम् सुरभिः यशोभिः”-रघु० । 'सुरभिः रुख ताके''-रामा० । “ सुरपति सुत धरि स्थानमनोज्ञे पि'-अमर० । बायस-भेखा'-मा०। सुरभित-ज्ञा, वि० (सं०) सुवासित, सुगं चित, सौरभित । सुर-एथ-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) नभ, श्राकाश, व्योम, गगन । सुरभी - संज्ञा, स्त्री० (सं०) सुवास, सुगंधि, सुरपाल - संज्ञा, पु० दे० यौ० (सं० सुरपालक । खुशबू . सौरभ, अच्छी महक. चंदन, गाय, इंद्र, देव-राज । कामधेनु, सुरागाय । सुर-पालक --संज्ञा, पुरु यौ० (सं०) इंद्र। सुरभी-पुर--संज्ञा, पु० यो० (सं०) गोलोक। सुर-पुर-संज्ञा, पु. यौ० (सं०) स्वर्ग, देव | सरमीला--- वि० ( हि० सुरभि + ईला-प्रत्य०) लोक, वैकुंठ । "पितु (पुरपुर सिय राम वन सुगंधि देने वाला। करन कही मोहिं राज''-रामा० । सुरभूप-संहा, पु० यौ० (सं०) विम्णु, इन्द्र ! सुर-बहार --संज्ञा, पु० दे० यौ० (हि सुर -- बहार-फ़ा०) सितार जैसा एक बाजा सुरभोग--संज्ञा, पु० यौ० (सं०) अमृत, विशेष । सुर-मौन*~-संज्ञा, पु० दे० यौ० (सं० सुरसुर-बाला-संज्ञा, वी० यौ० (सं०) देव । भवन ) सुर भवन, स्वर्गलोक, देव-सदन, बधटी. देवांगना, सुर वधू , अमर-बधू ।। देवालय । सुर-वधू.सुर-वधूटी--संज्ञा स्त्री० यो० (सं०) सर-मंडल--संज्ञा, पु० यौ० (सं०) देवताओं देवांगना, देव-वधूटी। का मंडल, एक तरह का बाजा । लो०-सुरसुरतृच्छ-संज्ञा, पु० दे० यौ० (सं० सुर वृक्ष) मंडली। सुर-तरु, कल्पवृक्ष, देववृत्त, सुर-बिग्छि सरमई-सरमयी-वि० (फा०) सुरमे के रंग का, हलका नीला, सुरमें से युक्त । संज्ञा, पु. सर-बेल, सुर बेलि, सर-बेली-संज्ञा, एक तरह का हलका नीला रंग, इस रंग का स्रो० दे० ( सं० सुरवल्ली ) कल्पलता, कल्प. एक कपड़ा : वि.-सुरों से युक्त ।। वल्ली , अमर-बेल। सुरमन्चू-संज्ञा, पु. (फा०), सुरमा लगाने की सर भंग- संज्ञा, पु० द० यौ० (सं० स्वरभंग) | सलाई। पीयूष । For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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