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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - १७६५ सुरझाना, सुरझावना का, साफ़, निर्मल, स्वच्छ, लाल । संज्ञा, पु० रक्षित । । अरक्षितम् रक्षति दैव-रक्षितम् -~- नारंगी, शिगरफ़. रंग के अनुसार घोड़े सुरक्षितम् देव-हतं विनश्यति"-नीतिः । का एक भेद । संज्ञा, स्त्री. द. (सं० सुरंगा) सुरख-सुरखा-~-वि० दे० (फा० सुर्ख) बारूद से उड़ाकर पहाड़ या भूमि के तले सुर्ख, लाल, सुरुख (दे०)। बनाई हुई राह, किले की दीवाल के नीचे सुरवाब-हसंज्ञा, पु० (फ़ा०) चकया । मुहा० वह छेद जिसमें बारूद भर कर उसे उड़ाते -सुरखाव का पर लगना-कुछ हैं, शत्रओं के जहाजो के नष्ट करने का एक विशेषता या विचित्रता होना। यंत्र ( श्राधु०), संध, संधि । सुरखी-संज्ञा, स्त्री० दे० (फा० सुखर्जी ) सुर---संज्ञा, पु० (सं०) बित्रुध, देवता, सूय्यं, लालरंग, सुर्थी, ईटों का महीन चूर्ण जो ऋषि, मुनि, विद्वान्, पंडित । संज्ञा, पु० दे० इमारत बनाने के काम आता है, लाली, (गं० स्वा) धनि, स्वर । मुहा०-सुर अरुणता, शेर्षक। में सुर मिलाना --- हाँ में हाँ मिलाना, सुरखरू, सुर्खरू-वि. देव्यौ० (फा० सुर्खरू) चापलूसी करना । प्रतिष्ठित, यशस्वी या कीर्तिवान, प्रतापी, सुरकंत:--संज्ञा, पु० दे० यौ० (सं० सुरवात) तेजस्वो । संज्ञा, पु. (दे०) सुर्खरुई । इन्द, विष्णु । " प्रगट भये सुरकता"-- सुरग -संज्ञा, पु० दे० (सं० स्वर्ग) स्वर्ग, रामा देवलोक, सुरलोक, बैकुंठ, सरग (दे०)। सुरक-संज्ञा, पु० दे० (सं० सुर ) नाक सुरगाय, सुभगो-संज्ञा, स्त्री० यौ० (हि०) पर भाल के श्राकार का एक तिलक । सुरधेनु, कामधेनु सुरागाय, एक जंगली सुरकना--स० कि० । अनु० ) वायु-वेग से गाय । व वस्तु को धीरे धीरे ऊपर को खींचना, सुगगिरि-रज्ञा, पु. यो० (सं०) सुमेरु, नाक से पीना, बुड़कना (दे०)। देवाद्रि. सुगाद्रि, सुराचल । सुरकरी-संज्ञा, पु० पौ० ( सं० सुरकरिन् ) सुरगुरु- संज्ञा, पु. यौ० (सं०) वृहस्पति, ऐरावत, सुर राज, देवतों का हाथी, दिग्गज, जीव । " तब सुरगुरु इन्द्रहि समुझावा" दिग्गज, इन्द, सुरराज । -~~-रामा०। सुरकांता - संज्ञा, स्त्री. यो. (सं०) देव. सुरगया-- संज्ञा, स्त्री० दे० ( सं० सुर+गो) बधूटी. देवी। । कामधेनु, सुरागाय । सुरकानन-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) देव-वन, सुस्चाप-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) इन्द्रनंदन विपिन या इंद्र का बाग, देवाराम, धनुष, सुर-धनु । सुरोपवन। सुरज*---संज्ञा, पु० दे० (सं० सूर्य ) सूर्य, सुरकुदाँव * -- संज्ञा, पु० दे० यौ० (सं० स - सूरज, सुरिज (दे०)। कु–दाँव --- धोखा-हि० धोखा देने को स्वर सुर-जन--संज्ञा, पु० (सं०) देव समूह या बदल कर बोलना। । सूर-द । वि० (दे०) सुजन, सज्जन, चतुर । सुरकेतु---संज्ञा, पु. यौ० (सं०) इंद्र, इंद्र या मुरझना-अ. कि० दे० ( हि० सुलझना) देवताओं का झंडा. देव-ध्वजा । सुलझना, हल होना । विलो०-उरझना। सरतण----संज्ञा, 'पु० (सं०) सुरक्षा, रखवाली। | सुरझाना, मुरझावना-म० कि० दे० भली भाँति रक्षा करना । वि०-सरक्षणीय। । (हि० मुलझाना ) सुलझाना, हल कराना, सालित-वि० (सं.) जिसकी रक्षा हल करना, खोलना । विलो. उरझाना। अच्छी तरह से या भली भाँति की गयी हो, प्रे० रूप--मुरझवाना। For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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