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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org सारावती १७५० जहाँ एक वस्तु दूसरी से उत्तम कही जाय । + संज्ञा, पु० दे० (सं० श्यला ) साला | संज्ञा, स्त्रो० (दे०) सारी । वि० (३०) संपूर्ण, समस्त, पूरा, सब का सब । स्रो० - सारी । संज्ञा, पु० (दे०) सार - तख । सारावती -संज्ञा, त्रो० (सं०) छंद, सारावली (पिं० ) । सारि - संज्ञा, पु० (सं०) चौपड़ या पाँसा खेलने वाला, जुश्रारी, जूधा खेलने का पाँ सालंक :6 25 सारो - संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० सारिका ) सारिका, मैना पक्षी | 'हवगर हिय सुक सों कह सारो - गीता० । वि० ( ब्र० हि० सारा ) सारा, सब | संज्ञा, पु० ( ० ) साला | सारोवा - संज्ञा, स्रो० (सं०) एक लक्षणा जिससे एक पदार्थ में दूसरे का धारोप होने पर कोई विशेष अर्थ प्राप्त होता है ( काव्य० ) । सारौं - संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० सारिका ) सारिका मैना, पक्षी । सार्थ - वि० (सं०) सोद्देश्य अर्थ सहित चरि तार्थ, सफल, सारथ (दे० ) । सार्थक - वि० (सं०) श्रर्थवान्, पहित सफल, पूर्ण- मनोरथ पूर्णकाम, गुणकारी, उपयोगी, उपकारी, हितकर, प्रयोजनीय, सोद्देश्य, चरितार्थ सारथक (दे० ) | संज्ञा, खो० - सार्थकता । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 66 सारिक - संज्ञा, पु० (सं०) मैना पक्षी । सारिका - संज्ञा, स्रो० (सं०) मैना पक्षी । 'शुकसारिका पदावहिं बालक :- रामा० । सारिख, सारिखा - वि० दे० ( हि० सरीखा ) समान, सदृश, तुल्य, बराबर, सरीखा | संज्ञा, स्त्री० (दे०) सारिख । सारिणी-संज्ञा, त्रो० (सं०) सहदेई, नागवला, गंधप्रसारिणी, कषाय, रक्त, पुनर्नवा ( औौष ० ) । सार्दूल - संज्ञा, पु० दे० (सं० शार्दूल ) सिंह | सारिवा - संज्ञा, स्त्री० (सं०) सरिवा (दे० ) अनंत मूल । | सार्द्ध - वि० (सं०) पूरा और थाधा मिला, श्रर्द्धयुक्त, घाधे के साथ पूरा, डेढ़ । सार्व वि० (सं०) सब से संबंध रखने वाला | संज्ञा, पु० (सं०) सर्व का भाव । सार्वकालिक - वि० यौ० (सं० ) सब समयों का. जो सब समयों में होता हो । सार्वजनिक, सार्वजनीन -- वि० यौ० (सं०) सब लोगों या सर्वसाधारण से संबंध रखने सारी - संज्ञा, स्त्री० (सं०) सारिका, मैना पक्षी, गोटी, जुए या चौपड़ का पाँसा, थूहर वृक्ष | सारी चरंत सखि मारयैतामित्यक्षदाये कथिते कयापि " - नैष० । संज्ञा, खो० दे० (सं० शाटिका ) रंगीन धोती, साड़ी | संज्ञा, पु० (सं० सारिन् ) अनुकरण या नकल करने वाला । वि० खो० (दे० ) सम्पूर्ण, पूरी, सब, समूची, समस्त । सारु#+ - संज्ञा, पु० दे० (सं० सर ) सार, 16 --- तत्व, मूल, सारांश, निचोड़, अर्क, रस । सारूप्य - संज्ञा, पु० (सं०) चार प्रकार की मुक्ति में से एक जिसमें उपासक अपने इष्टदेव के रूप को पा जाता है, रूप-साम्य का भाव, एकरूपता, सरूपता । संक्षा, स्त्री० सारूप्यता । सारूप्यता -- संज्ञा, स्त्री० (सं०) सारूप्य का धर्म या भाव । वाला । सार्वत्रिक - वि० (सं०) सर्वत्र सम्बन्धी, सर्वत्र व्यापक, सर्वव्यापी । सार्वदेशिक - वि० यौ० (सं०) सारे देश का, सपूर्ण देश -संबंधी । सार्वभौम-संज्ञा, प० चौ० (सं०) चक्रवर्ती राजा हाथी । वि० -- सब पृथ्वी-संबंधी । संज्ञा, स्त्रो० -- सार्वभौमता । सार्वराष्ट्रीय - वि० यौ० (सं०) जिसका संबंध कई राष्ट्रों से हो, सर्वराष्ट्र-सम्बन्धी । सालंक-संज्ञा, पु० (सं०) वह शुद्ध राग For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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