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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - - पीजांकुर ( न्याय १६०६ वीरभूमि वीजांकुर ( न्याय) संज्ञा, पु. यौ० (सं.) वीर-संज्ञा, पु. (सं०)शूर, साहसी, बलवान, कार्य-कारण का ऐसा संयोग (सम्बन्ध) कि पराक्रमी, सैनिक, योद्धा, जो औरों से किसी उनकी पूर्वापर सत्ता निश्चित न हो सके, . कार्य में बढ़कर हो, लड़का, भाई, पति, अन्योन्याश्रय सम्बन्ध । सखी-सहेजी ( स्त्री०), काव्य में एक रस घीगणा--संज्ञा, सी० (सं०) सितार और एक | जिसमें उत्साह और वीरता की पुष्टि होती प्राचीन बाजा, बीना, बीना (दे०) । “वीणा- है (सा०, तंत्र में साधना के ३ भावों में से वेणु-संख-धुनि द्वारे"-रामा० । एक (तंत्र) । "बहुत चलै सो वीर न होई" वीणापाणि- संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) गिरा, --- रामाः । “ ऐरी मेरी वीर जैसे तैसे इन सरस्वती । संज्ञा, पु.-नारद जी। आँखिनि सों"-पद्मा। वीणावनी, वीणावति-संज्ञा, स्त्री० (स०) वीरकेशरी-संज्ञा, पु. यौ० (सं० वीर केशसरस्वती। रिन् ) वीरों में सिंह सा श्रेष्ठ, वीरकेहरी वीत-वि० (सं०) व्यतीत, गत, समात, जो । छूट या छोड़ दिया गया हो, मुक्त, निवृत्त वारगति--संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) रण-भूमि हुआ. बीता हुआ। में मरने से वीरों को प्राप्त श्रेष्ठ गति । वानराग---- संज्ञा, पु. यौ० (सं०) जिपने __वीर-गति अभिमन्यु पाई शोक उसका रागानुराग या प्रामक्ति श्रादि को त्याग दिया व्यर्थ है '-कुं० वि० । हो, त्यागी, वैरागी, बुद्ध जी का एक नाम । वीरता---संज्ञा, स्त्री० (सं०) बहादुरी, शूरता। 'भित्तुः शेते नृपइवासदावीतरागो जितात्मा"। वीरप्रसू, धीरप्रसवा-संज्ञा, स्त्री० यौ० धोतहव्य - संज्ञा, पु. यौ० (सं०) अग्नि, (सं०) शूर वीर पुत्र उत्पन्न करने वाली माता, हैहयराज का प्रधान । वीर माता। वोतहोत्र--संज्ञा, पु. (सं०) अग्नि, सूर्य, | वीरवधू-संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) वीर पुरुष राजा प्रियव्रत के एक पुत्र का नाम। की वीर स्त्री। वीथि---संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० वीथी ) गली, वीरव्रती-वि० संज्ञा, पु० यौ० (सं०) वीरता मार्ग, प्रतोली, रास्ता, बीथी (दे०)। | का व्रत' वाला । “वीर व्रती तुम धीर वीथिका--संज्ञा, बी० (सं०) गली, मार्ग। अछोभा-रामा० । वीथी .. संज्ञा, स्त्री. (सं०) रास्ता, राह, मार्ग, वीरवन्ति-संज्ञा, पु० यौ० (सं० वीरवृतिन् ) गली, कूचा, सड़क, नभ में रवि-मार्ग, व्योम शूरों की सी वृत्ति या स्वभाव (प्रवृत्ति)। में नक्षत्रों के स्थानों के कुछ विशेष भाग, , वि०-वीरवृत्ती। " वीरवृती तुम धीर रूपक या दृश्य काव्य का एक भेद जो एक अछोभा"-रामा० । नायक युक्त और एक ही अंक का होता है। वीरभद्र--- संज्ञा, पु० (सं०) शिव जी के एक "वीथी सब असवारनि भरी"- राम । गण जो उनके अवतार और पुत्र माने गये वीभ्यंग--संज्ञा, पु. यौ० (सं०) रूपक में हैं ( पुरा० ), अश्वमेध यज्ञ का घोड़ा, वीथी के १३ अंग (नाट्य०)। खस (उशीर)। वीप्सा-संज्ञा, स्त्री. (सं०) अधिकता, । वीरभाव--संज्ञा, पु० यौ० (सं०) शूरता, व्यापकता । " नित्य वीप्सयोः "-कौ० । वीरता का भाव। व्या० । एक शब्दालंकार जिसमें अर्थ या | वीरभूमि --- संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) वीरों की भाव पर बल देने के लिये शब्दावृत्ति होती जन्म-भूमि, युद्ध-क्षेत्र, रण-स्थल, वह पृथ्वी है (५० पी०)। जहाँ वीर ही उत्पन्न होते हों, बंगाल का वीय-वि० (दे०) विय (दे०), दो, युगुल । । एक नगर । For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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