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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org विस्फार (सं०) फैलाया हुआ, विस्कार -- संज्ञा, पु० (सं०) फैलाव, विकास, तेजी का शब्द, चिल्ला, प्रत्यंचा । विस्फारित - वि० तीव्र, फाड़ा या खोला हुआ (नेत्र) । विस्फोट - संज्ञा, पु० (सं०) गरमी आदि से किसी पदार्थ का उबल पड़ना या फूट जाना, विषैला और कठिन फोड़ा, ज्वालामुखी का फूटना । विस्फोटक संज्ञा, पु० (सं०) विषाक्त फोड़ा, गरमी या आघात से भभक कर फूट उठने वाला, शीतला रोग, चेचक | विस्मय - संज्ञा, पु० (सं०) या चर्य, श्रचरज, विसमय (दे०), अद्भुत रस का स्थायी भाव ( काव्य ० ) । समय विस्मय करसि' रामा० । विस्मरण - संज्ञा, पु० (सं०) भूल जाना | वि०विस्मरणीय, विस्मरित । (विलो० 66 "" १६०८ स्मरण) । विस्मित- वि० (सं०) चकित, श्रचंभित, विस्मय-युक्त | विस्मृत - वि० (सं०) जो याद न हो, भूला हुआ, विस्मारित। विस्मृति - संज्ञा, खो० (सं०) विस्मरण | विश्राम - संज्ञा, पु० दे० ( पं० विश्राम ) श्राराम, बिसराम (दे० ) | विहंग, विहंगम - संज्ञा, पु० (सं०) खग, द्विज, पत्नी, चिड़िया, मेघ, बादल, बाण, वायु, वायुयान, विमान, सूर्य, चंद्रमा, तारागण, देवता । विहग - संज्ञा, पु० (सं०) पक्षी विमान, बाण, देवता, सूर्य, चन्द्रमा, मेघ, तारागण, वायु, वायुयान | विहरना - अ० क्रि० (सं०) खेल करना, क्रीड़ा करना, भोग करना, आनंद करना : विहसित -- संज्ञा, पु० (सं०) नाति उच्च नाति मृदुहास, मध्यम हास्य | वि० उपहसित | विहायस - संज्ञा, पु० (सं०) आकाश, पक्षी । विहार - संज्ञा, पु० (सं०) घूमन, टहलना, | वीजपूर भ्रमण करना, फिरना, केलि-क्रीड़ा, संभोग, रति-क्रीड़ा, बौद्ध साधुधों ( श्रमणों ) ) के रहने का घर, संघाराम | विहारी - संज्ञा, पु० (सं० विहारिन् ) विहार करने वाला, श्रीकृष्ण जी, बिहारी (दे० ) । स्त्री० - विहारिनी । 'करत विहार विहारी मधुबन विहित- वि० सं०) जिसका विधान किया गया हो। "वेद-विहित थरु कुल श्राचरू" Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir में स्फु - रामा० । विहीन वि० (सं०) बिना, रहित, बग़ैर, हीन | संज्ञा, स्री० - विहीनता । विह्वल - वि० (सं०) व्याकुल, विकल, घबराया बेल ! संजा, स्त्री० -- विहलता | वीक्षण- संज्ञा, पु० (सं०) देखना | वि०वीक्षणीय वीक्षित, वीक्षक । वीक्षित - वि० (सं०) दृष्ट, विलोकित, देखा ६० । हु वीचि संज्ञा, स्रो० (सं०) तरंग लहरी, लहर | " वारि-वीचि जिमि गावहिं वेदा " " - रामा० । वीचिमाली - संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) ऊर्मिमाली, समुद्र, सागर । बीची संज्ञा, स्त्री० (सं०) लहरी, तरंग, लहर, बीची (दे०) | वीज - संज्ञा, पु० (सं०) मुख्य या मूल कारण, वीर्य, शुक्र, तेज, प्रन्नादि का बीजा, वीज (दे०), बीमा (ग्रा), अंकुर, सार, तत्व, एक प्रकार के मंत्र, एक वर्ण -गणित, वीजगणित | तुम कहँ विपति-बीन विधि L For Private and Personal Use Only बयऊ रामा० । वीजगणित - संज्ञा, ० यौ० (सं०) गणना का एक प्रकार, गणित का वह भेद जिसमें ज्ञात राशियों की सहायता से अज्ञात राशियों के स्थान पर कुछ सांकेतिक वर्णों st Tear रख कर थज्ञात राशियों का मान ज्ञात किया जाता है । वीजपूर - संज्ञा, पु० (सं० ) बिजौरा नीबू |
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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