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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra विलखना अनूठा, असाधारण अपूर्व, अद्भुत चिन (दे० ) | संज्ञा, स्त्री० विलक्षणता । "नवगुण कविता माहिं एक तें एक विलक्षण" - दीन० । विलखना- श्र० क्रि० दे० (सं० विलाप ) रोना विलाप करना, दुखी होना, विलपना | लिखि को मुनि-नाथ 4 रामा० । * - अ० क्रि० सं० लक्ष ) ताड़ना, पता लगाना, समझना । विलग - वि० (हि० उप० + लगना ) अलग, पृथक, भिन्न, माख या बुरा मानना, बिलग विलग जनि k. www.kobatirth.org (दे०) । हूजत है रसराय, याको माना - गो० क० । विलगना- -प्र० क्रि० दे० ( हि० श्लिग | ना प्रत्य० ) विभक्त या अलग होना, पृथक् या भिन्न होना, जुदा होना । सो विलगाय विहाय समाजा - रामा० । बिलगाना, विलगावना -- स० क्रि० दे० ( हि० विलग अलग या पृथक करना, भिन्न या जुदा करना । 66 "" Lim १६०० "" "> विलकुल वि० दे० (सं० विलक्षण ) विचित्र, अनोखा, श्रद्भुत, अनूठा । चिलना* - अ० क्रि० दे० ( सं० विलाप ) रोना, विलपना (दे० ) | स० रूप- बिलवाना, प्रे० रूप - विलपवाना " यहि विधि विलपत भाभिनसारा " - रामा० । विलम-संज्ञा, पु० दे० (सं० विलंब ) बिब (दे०) देर, बेर, अबेर ! बिलमना* -- 1 :- प्र० क्रि० दे० ( हि० विलम --- ना प्रत्य० ) देरी करना ठहर जाना । स० रूप -- बिलगाना, विरमाना । विलय - संज्ञा, पु० (सं०) प्रलय, नाश | विलसन संज्ञा, पु० (सं०) प्रमोद, खेल, क्रीड़ा, चमकना । विलसनाछ- ३- अ० क्रि० दे० ( सं० बिलस ) आनंद मनाना या भोगना, विलास करना शोभा पाना । स० रूप- बिलसाना, | प्रे० रूप--- - विलसवाना । " नित्त कमावै कष्ट करि, विलसै रहि कोय ० । विलीन विलाप - संज्ञा, पु० (सं०) क्रंदन, रोना, प्रलाप, रो रो कर दुख कहना, रुदन, रोदन । " करत विलाप जाति नभ सीता" - रामा० । विलापना अ० क्रि० दे० (सं० विलख ) रोना-चिल्लाना, शोक या क्रंदन करना, बिलापना (दे० ) । विलायत संज्ञा, पु० (अ० ) कोई थन्य देश जहाँ एक ही जाति के लोग रहते हों, दूसरों या दूर का देश | विलायती - वि० ( ० ) विलायत का, विदेशी दूसरे देश का बना हुआ । विलास-संज्ञा, पु० (सं०) विषय-भोग, आमोद प्रमोद, श्रानंद हर्ष मनोविनोद, मनोरंजन पुरुषों को लुभाने वाली स्त्रियों की प्रेम-सूचक क्रियायें, प्रसन्नकारी क्रिया, नाज-नखरा, हाव-भाव, किसी वस्तु का हिलना, किसी अंग की मनहरण चेष्टा, श्रतिसुख भोग, करादि अंगों का रुचिर संचालन | " हास- विलास लेत मन मोला" - रामा० । यौ० भोग-विलास । विलासिका संज्ञा, स्रो० (सं०) एक श्रंक का रूपक (नाट्य० ) । विलासिनी -संज्ञा, त्रो० (सं०) कामिनी सुन्दर स्त्री, वेश्या । ज. र. ज ( गण ) और दो गुरु वर्णों का एक वर्णिक छंद (पिं० ) । विलासिनी बाहुलता वनालयो, विलेपना मोद हताः सिषोविरं " – किरात० । विलासी संज्ञा, ५० (सं० विलासिन् ) भोग-विलास में धनुरक्त या लीन, भोगी या कामी व्यक्ति कामुक, कौतुकी, हँसोड़ा, क्रीड़ा करने वाला, श्राराम चाहने वाला, आराम-तलब । स्त्रो० विलासिनी । " वित्रस्त मंसादपरो विलासी विलोक* - वि० पु० दे० ( सं० अनुपयुक्त, धनुश्चित, बेठीक । तुम्हार न होहिं विलीका रामा० । विलीन - वि० (सं०) छिपा हुधा, लुप्त, लय, जो दूसरे में लीन या मिल गया हो, नाश, दृश्य, निमग्न, लोप | संज्ञा, स्त्रो०- विलीनता । (( -- रघु० । व्यलीक ) 66 वचन " For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ..
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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