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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विकसना विध के पुत्र तथा सम्राट अशोक के पिता विकराल-वि० (सं०) घोर, भयंकर, भीषण, (इति०)। बिकराला (दे०)। " नाक-कान बिन भइ विंध-संज्ञा, पु० दे० (सं० विध्य ) विंध्य, विकराला"--रामा० । पहाड़, बिंध (दे०)। "विध के बसी उदासी विकर्षण --संज्ञा, पु. (सं०) आकर्षण, तपो-व्रतधारी महा बिनु नारि दुखारे"- आकर्षित करने की विद्या या एक शास्त्र, __ कवि०। संकर्षण । वि. विकर्षणीय, विकर्पित। विंध्य-संज्ञा, पु. यौ० (सं०) विंध्याचल । विकल-वि० (सं०) बेवैन, व्याकुल, बेहोश, विध्यकट - संज्ञा, पु० यौ० (सं०) विध्याचल । विह्वल, अपूर्ण, कलाहोन, संडित, बिकल विंध्यवासिनी-संज्ञा, स्त्री. (सं०) देवी की (दे०)। संज्ञा, स्त्री० विकलता। " खरभर एक मूर्ति जो विध्याचल (मिज पुर जिले)। देखि विकल नर-नारी"-रामा० । विकलांग-वि० यौ० (सं०) अंग-हीन, विंध्याचल-संज्ञा, पु. (सं०) भारत के न्यूनांग, जिसका कोई अंग टूट या बिगड़ मध्य में पूर्व से पश्चिम तक फैली हुई एक गया हो। पर्वत-श्रेणी, विध्यगिरि, विध्यादि। विकला---संज्ञा, स्त्री० (सं०) समय का एक विंशोत्तरी-संज्ञा, पु. (सं०) मनुष्य के अति अल्प भाग, एक कला का साठवाँ भाग, शुभाशुभ के विचार को एक रीति या ग्रह क्षण, नष्ट, विकला (दे०) । " चारू चातुर्य दशा (ज्यो० फ०)। ही नस्य सकला विकला कला"-स्फु० । वि-उप० (सं०) यह शब्दों के पहले प्राकर, | वि० स्त्री० ---विकल। विशेष ( जैसे-विवाद, वैरूप्य' ( जैसे --- विकलाना-अ० क्रि. दे० (सं० विकल ) विविध), निषेध (जैसे-विक्रय) बिना आदि बेचैन या व्याकुल होना, घबराना, विकका अर्थ देता है। लाना (दे०)। विकंकत--संज्ञा, पु० (सं०) एक धन-वृक्ष जो | कंटाई, किंकिणी या बंज कहाता है। विकल्प संज्ञा, पु. (सं०) भ्रम, धोखा, विकंपित--वि० (सं०) खूब काँपता हुआ। भ्रांति, एक बात ठहराकर फिर उसके संज्ञा, पु०-विकंपन।। विपरीत सोच-विचार, जो केवल शब्द मात्र विकच-वि० (सं०) खिला या फूला का बोधक हो कोई वस्तु न हो, अवांतर हुआ । “विकच तामरसप्रतिमम् भवेत" कल्प, चित्त की पंचविधि वृत्तियों में से एक, लो०रा०। समाधि का एक प्रकार, किसी विषय मे विकट-वि० (सं०) भीषण, भयानक, । कई विधियों का मिलाना, एक अर्थालंकार भयंकर, विशाल, टेढ़ा, कठिन, दुर्गम, वक्र, जिसमें दो विरुद्ध बातों के लिये यह कहा दुस्साध्य । “भकुटी विकट मनोहर नासा" जाय कि या तो यह या वह होगा ( अ० ----रामा। ५०) । " शब्द-ज्ञानानुपाती वस्तु शून्यो विकर--संज्ञा, पु. (सं०) रोग, बीमारी. विकल्पः"। यो० द० । व्याकरण में एक ही व्याधि, तलवार के ३२ हाथों में से एक हाथ। विषय के दो या कई पत्तों या नियमों में से विकरार, बिकरारा*--वि० दे० (सं० एक का इच्छानुसार ग्रहण करना। विकराल ) विकराल, भयंकर, भीषण, विकसन-संज्ञा, पु० (सं०) फूलना, खिलना, डरावना । " नाक-कान बिनु भइ विकरारा" फूटना. प्रस्फुटन, विकचन । वि. विकसित । --रामा० । वि० दे० ( १० फ० बेकरार ) विकसना-अ.क्रि. ३० (सं०) फूलना, व्याकुल, बेचैन, विकल। । खिलना, प्रफुल्लित होना, फूटना, बिगसना For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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