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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org वास्तुविद्या वास्तुविद्या- संज्ञा, त्रो० यौ० (सं० ) इन्जिनियरी, इमारत संबंधी ज्ञान जिस विद्या से होता है, इमारती-इल्म, गृह निर्माण शास्त्र | बिंदुसार वाह्य - क्रि० वि० (सं०) बाहर, अलग, जुदा, भिन्न, पृथक | वाह्यांतर, वाह्याभ्यंतर - वि० यौ० (सं० ) भीतर और बाहर का, भीतर-बाहिरी । विद्या, वास्तु-विज्ञान | वास्ते - अव्य० ( अ० ) हेतु, निमित्त, लिये काज ( ० ) " कौन मरता है किसी के वास्ते " स्फुट० । वास्तुशास्त्र - संज्ञा, पु० यौ० (सं०) वास्तु- वाह्यद्रिय -- संज्ञा, त्रो० यौ० (सं०) बाहिरी विषयों को ग्रहण करने वाली पाँचों बाहर की ज्ञानेंद्रियाँ, नाक, कान, आँख, जीभ, त्वचा । "वाह्यद्रिय वश भये भूलि कै, सारी ज्ञान - कहानी" -- वासु० 1 वाल्हीक- संज्ञा, पु० (सं०) कंधार (गांधारप्राधीन) के समीप का एक प्राचीन प्रदेश, वहाँ का घोड़ा | -14 वास्प - संज्ञा, त्रो० दे० (सं० वाष्प ) भाफ़, भा, सू विजन - संज्ञा, पु० दे० (सं० त्र्यंजन ) व्यंजन, भोजन, वे अक्षर जो स्वरों के योग से बोले जाते हैं, बिजन (दे० ) । विंद - संज्ञा, पु० दे० (सं० वृन्द, बिंदु ) समूह. कुंड, पानी की बूँद, शून्य, तुकता, सिफ़र, विंद (दे० ) | संज्ञा, स्त्री० विन्दुता । विंदक - संज्ञा, पु० (सं०) ज्ञाता, प्राप्त करने या जानने वाला | १४७७ वाह- अव्य० ( फा० ) धन्य, प्रशंसा या आश्चर्य द्योतक शब्द, घृणा सूचक शब्द । संज्ञा, पु० (सं०) बोझा ले जाने वाला, ( यौगिक में ) । (1 यत्तान्प्रयातु मनसोऽपि विमान वाह : " नेप० । वाहक- संज्ञा, पु० (सं०) बोझा ले जाने या ढोने वाला, गाड़ी आदि का खींचने वाला, पालकी, पीनस यादि का उठाने वाला, सारथी । वाहन - संज्ञा, पु० (सं०) सवारी, वाहन (दे०) । “ देवी को वाहन जानि के प्राये पै देख्यौ सिंहासन सीतला वाहन ।" वाहवाही - संज्ञा स्त्री० ( फा० ) प्रशंसा, साधुवाद, स्तुति, तारीफ़ वाहिनी -- संज्ञा, खो० (सं०) सैन्य, सेना, सेना का एक भेद जिसमें ८१ रथ और ८१ हाथी, २४३ घोड़े और ४०५ पैदल रहते हैं । " बहुत वाहिनी संग " - राम० । वाहियात - वि० ( ० वादी + यात - फा० ) फ़जूल, नाहक, व्यर्थ, बुरा, ख़राब । वाही - वि० ( ० ) थावारा, मूर्ख, सुस्त, निकम्मा, ढीला, बुरा, दुष्ट । वाही तबाही - वि० यौ० ( ० ) श्रावारा, बेहूदा, बुरा, ख़राब, अंडबंड, बेसिर-पैर का | संज्ञा, स्त्री० - अंडबंड बातें, गालीगलौज | भा० श० को ० - १३८ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विन्दा - संग, स्त्री० (दे०) वृन्दा, एक स्त्री जो कृष्ण की दासी थी । विन्दावन -संज्ञा, पु० यौ० (दे०) वृन्दावन (सं० ) | बिन्दी - संज्ञ, स्त्री० (दे०) विन्दु, शून्य, बुंदकी, टिकुली । 66 बिंदु - संज्ञा, पु० (सं० बिंदु ) वारि-कण, अनुस्वार, पानी की बूँद, शून्य, विन्दी, सिफ़र, ज़ीरो (अं० ) । बुंदकी, अनुस्वार । मैं एक अचम्भा सुना किविदुमसिंधु समाय " -- कबी० । वह जिसका स्थान हो पर परिमाण कुछ न हो ( रेखा० ), परमाणु, र, कण, बिन्दु (दे०) । विदुमाधव - संज्ञा, पु० (सं० ) एक विख्यात विष्णु - मूर्ति (काशी) । विंदुर-संज्ञा, पु० दे० (सं० बिंदु ) बूँद, बुंदकी । विदुसार - संज्ञा, पु० (सं०) महाराज चंद्रगुप्त For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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