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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org वदतोव्याघात 66 वदतोव्याघात - पंज्ञा, पु० (सं०) कही हुई बात के विरुद्ध बात कहने का एक तर्कदोष ( न्याय० ) " वदन -संज्ञा, पु० (०) मुँह, मुख, श्रमि भाग, कथन, वचन । दश बदन-भुजानाम कुंठिता यत्र शक्तिः "१-६० ना० । बदरीनाथ - संज्ञा, ५० (सं०) एक तीर्थ, एक धाम, बदरिकाश्रम, बद्रीनाथ (दे० ) । वदान्य - वि० (सं०) उदार, बड़ा दानी, प्रतिदाता, मधुरभाषी । त्रो० वदान्या । " त्रिभुवन जननी विश्वमान्या वदान्या " - स्कु० । “ गतो वदान्यान्तरमित्यपं मे - रघु० । " दी, वदि- संज्ञा, पु० दे० (सं० प्रवदिन ) कृष्ण-पत्र, नदी (दे० ) | वदुसाना - स० क्रि० दे० (सं० विदूषण ) दोष देना, कलंक लगाना, भला-बुरा कहना, बहुसावना | वध - संज्ञा, पु० (सं०) मार डालना, हत्या या घात करना, प्राण-हिंसा | वि० वध्य | वधक सज्ञा, पु० (सं०) हिंसक, व्याध, घातक, वधिक (३०), मृत्यु, मौत । ' वधक धर्म जाने नहीं, स्वास्थ-रत मतिहीन " वासु० । "" वधजीवी - संज्ञा, पु० (सं०) व्याधा, कसाई । वधत्र - संज्ञा, पु० (सं०) हथियार । वधन - संज्ञा, पु० (सं०) बधन (दे०), हत्या, हिंसा, घात । वि० वचनीय, वध्य । वधना बधना - स० क्रि० (दे०) हिंसा या १५५६ घात करना मार डालना, हत्या करना । arभूमि- संज्ञा, स्त्रो० यौ० (सं०) फाँसी 93 वनरुह स्त्री, दुलहिन, पतोहू, पत्नी, भार्या, बधूटी (दे० ) । “मंगल गावहिं देव वधूटी " । वधूत संज्ञा, पु० दे० ( सं० श्रवधूत ) योगी, संन्यासी, यती, साधु स्त्री० वधूर्तिन | " शंकर वधूत होय गोकुल में श्राये हैं "" मन्ना० । वध्य - वि० (सं०) वध या हत्या करने या मार डालने योग्य | "स मे वध्यः भविष्यति” - वाल्मी० । वन - संज्ञा, पु० (सं०) जंगल. बाग, वन (दे०), वाटिका, जल, पानी, घर, भवन । " काननं जान कहेउ " भुवनं वनं " - इति श्रमरः । वन केहि अपराधा --- रामा० । शंकरा चार्य के अनुयायी संन्यासियों की उपाधि | वनचर, वनेचर - वि० (सं०) वन में रहने वाला, वनवासी, वन में चलने वाला, aar (दे० ) | युधिष्ठरं द्वैप वने वनेचरः " -किरा० । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 33 -रामा० । वनज - पंज्ञा, पु० (सं०) कमल, वन ( जंगल, पानी ) में उत्पन्न । " जै रघुवंस वनज-वनभानू वनदेव - संज्ञा, पु० यौ० (सं०) वन या जंगल का देवता । स्त्री० वनदेवी । " वनदेवी, वन- देव उदारा " - रामा० । वनपशुली - संज्ञा, पु० यौ० (सं०) व्याधा, बहेलिया । वनप्रिय संज्ञा, पु० यौ० कोकिला, एक हिरन । तेरी, क्यों न आती मुझे है - कुं०वि० । वनमाला - संज्ञा स्त्री० यौ० (सं०) वन - फूलों की माला, श्रीराम या कृष्ण जी की माला | भूषन वन-माला नयन विशाला (सं०) कोयल, " वन-प्रिय ध्वनि 27 16 *" घर, कसाई खाना | वधू - संज्ञा, स्त्री० (सं०) दुलहिन, पत्नी नयी व्याही स्त्री, भार्या, नव विवाहिता स्त्री, पतोहू, पुत्र-वधू । है दुकूल वासाः स वधू 66 55 समीपं रघु० । वनराज - संज्ञा, पु० यौ० (सं०) सिंह | वधूटी - - संज्ञा, त्रो० (सं०) नवीन विवाहिता । वनरुह - संज्ञा, ३० (सं०) कमल, जलज । रामा० । वनमाली - संज्ञा, पु० यौ० (सं०) श्री कृष्ण जी । " वाली वनमाली आय बहियाँ गहतु - पद्मा० । For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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