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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra वज्रपात www.kobatirth.org ए PANTS, INTEREST वज्रपात - संज्ञा, पु० यौ० (सं०) बिजली गिरना, कठिन श्रापत्ति श्राना । वज्रपाणि- संज्ञा, पु० यौ० (सं०) इन्द्र | वज्रलेप -- संज्ञा, पु० यौ० (सं०) एक प्रकार के मसाले का लेप जिसके लगाने से मूर्ति, दीवाल आदि हद हो जाती हैं । वज्रसार - संज्ञा, पु० यौ० (सं०) हीरा । वज्रहस्त -- संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) इन्द्र वज्रांग - संज्ञा, पु० यौ० (सं०) दुर्योधन, महावीर, सुहद शरीर वाले । वज्रांगी - संज्ञा, पु० यौ० (सं०) हनुमान जी, १५५८ बजरंगी (दे०) वज्राघात - संज्ञा, पु० यौ० (सं०) वज्रपात, वज्र से मारना, कठिन चोट । वज्रापात -संज्ञा, पु० यौ० (सं०) वज्र से मारना, वज्राघात । वज्रावर्त्त --- संज्ञा, पु० (सं०) एक मेव | वज्रासन - संज्ञा, पु० यौ० (सं०) इठ योग का एक शासन । वज्रायुध संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) इन्द्र | वज्री - संज्ञा, पु० (सं० वज्रिन ) इन्द्र । वज्रोली- संज्ञा, स्रो० (सं०) हठ योग की एक मुद्रा । वट - संज्ञा, पु० (सं०) बरगद का पेड़, बट (दे० ) ! " तिन तरु- वरनि मध्य वट सोहा 17 --- रामा० । वटक - संज्ञा, पु० (सं०) गोला, बट्टा, बड़ी गोली या बटिका, बड़ा, पकौड़ा | वटर -- संज्ञा, पु० (सं०) मुर्ग, मुर्गा, चोर, पहाड़, शासन, चटाई | वटसावित्री-संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) वटपूजन के साथ एक व्रत जो स्त्रियाँ किया करती हैं, बरगदाही (दे०) । टिका-वटी -संज्ञा, खो० (सं०) गोली, टिकिया, बटी, बटिया (दे० ) । बटु-संज्ञा, पु० (सं०) माणवक, ब्रह्मचारी, विद्यार्थी, ब्राह्मण कुमार, बालक 1. पद जनु वटु-समुदाई --रामा० । " 19 'वेद वदंती वटुक संज्ञा, पु० (सं०) ब्रह्मचारी बालक, एक भैरव । 206 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वड़, वर- संज्ञा, पु० (दे०) बरगद का पेड़ । वडवानल, वाडवानल - संज्ञा, पु० यौ० (सं०) समुद्र की अनि, बड़वाग्नि, बड़वागी, वाडव बडवानल (दे०) । प्रभु प्रताप वडवानल भारी " रामा० । 66 " वडिश - संज्ञा, पु० (सं०) मछली पकड़ने का लोहे का काँटा । " मीन वड़िश जाने नहीं, लोभ छाँव कीन वासु० । " सर्वेन्द्रियार्थ वडिशांघखोपमस्य - शंक० । वणिक - संज्ञा, पु० (सं०) वैश्य, बनियाँ, बानी, व्यापारी, वनिक (दे० ) । 16 साकafe मणिगण- गुण जैसे " रामा० । वतंस - संज्ञा, पु० (सं०) कर - विभूषण, शिरोभूषण, शिरोमणि, श्रेष्ठ पुरुष, श्रवतंस | वतन - संज्ञा, पु० (अ०) घर, देश, जन्मभूमि । मुहब्बत नहीं जिसको अपने वतन की " - स्फुट० । ( वत -- संज्ञा, पु० (सं०) समान तुल्य । वत्स - संज्ञा, पु० (सं० ) गाय का बछवा, वच्छ (दे०) बेटा, पुत्र । यौ० वत्सासुर gar | वत्सनाभ - संज्ञा, पु० (सं०) एक पौधे की विषैली जड़, वच्छलाग, बचनाग ( ग्रा० ), मीठा विष । वत्सर - संज्ञा, पु० (सं०) साल, वर्ष | "चप्सराः वासरीयान्ति वासरीयांति वत्सरः ।" वत्सरीय - वि० (सं०) वार्षिक, वर्ष-संबंधी । वत्सल - वि० (सं०) प्रेमी, दयालु, बच्चे के प्रेम से पूर्ण, बच्चे या छोटे के प्रति दयालु या स्नेहवान, माता-पिता का संतति के प्रति प्रेम-सूचक काव्य में १०वाँ रस ( मत-भेद ) । स्त्री० वत्सला, संज्ञा, स्त्री० वत्सलता । वत्सासुर - संज्ञा, पु० यौ० (सं०) एक देस्य । वदंती - संज्ञा, त्रो० (सं०) कथा । यौ० किम्बदंती | For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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