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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रौप्य wom e no nesteporme r aamRONamaARADUROOPINESS १५०८ लंगर रौप्य-संज्ञा, पु. (सं०) चाँदी, रूपा । वि० गैला-संज्ञा, पु० दे. ( सं० रवण) शोरगुल, रूपे या चाँदी से बना हुआ। हल्ला, हुल्लड़, भम्भर, धूम ! रौरव-वि० (सं०) भयंकर, भयानक, गैलिए--संज्ञा, स्त्री. (दे०) चपत, थप्पड़, बुरा । संज्ञा, पु.--एक भयंवर नरक ।। चपेटा, चपेट, धौल। रौरा-रौला-संज्ञा, पु. (हि० रौला) गुल रोशन -वि० दे० ( फा० रोशन ) प्रदीप्त, प्रकाशित, विदित, विख्यात । शोर, हल्ला, धूम, भम्भार । 'रौला है मच गौस - संज्ञा, स्त्री. द. (फा० रविश) चाल, रहा सब तरफ रौलट बिल का"--मैश० । गति, रंग-ढङ्ग, तौर-तरीका, चालढाल, सर्व० (ब्र० रावर ) श्रापका । स्त्री० रौरी बाग में क्यारियों के बीच का मार्ग । रौराना-स० क्रि० दे० (हि० रोरा) बकना, बहाल--संज्ञा, स्त्री० (दे०) घोड़ा की एक क्रंदन या प्रलाप करना । जाति या चाल। रौरे-सर्व दे. ( हि राव रावल ) आप के रोहिगाव - एंज्ञा, पु. ( सं०) बलदेव जी, (संबोधन) श्राप । “ रोरेहि नाई"-रामा०। बलभद्ग, रोहिणी के पुत्र । ल-संस्कृत और हिंदी की वर्णमाला के राक्षसी ( रामा० ) । " नाम लंकिनी एक अन्तस्थों में से तीसरा वर्ण इसका उच्चारण । निशचरी '' -रामा. स्थान दंत है। " लुतुलसान म् दंतः-" लंकेश-लंकेश्वर -- संज्ञा, पु० यौ० (सं०) सि० कौ० । संज्ञा, पु० (स०) भूमि, इंद्र।। रावण, विभीषण। लंक-संज्ञा, स्त्री० (सं०) कटि, कमर, मध्य लंग--संज्ञा, खो० दे० ( हि० लांग ) ताँ देश । " बारन के भार सुकुमार की लचत (दे०) धोती का वह खंड जो पीछे की थोर लंक' -पद। संज्ञा, स्त्री० दे० सं० लंका) खोसा जाता है, काँक। संज्ञा, पु. (फ़ा०) लंका नामक द्वीप ।" मानमयो गढ़ लंक- लँगड़ापन । पती को"-- तुल. लंगड - वि० दे० (हि. लँगड़ा ) वह पुरुष लंकनाथ, लंकनायक-ज्ञा. पु० यौ० जिसका एक पाँव टूटा हो, लँगड़ा । संज्ञा, (हि. लंक- नाथ,नायक) रावण, विभीषण । पु० (दे०) लंगर । लंकपति, लंकपती (दे०)- संज्ञा, पु० (हि. लँगडा ----वि० दे० 'फा, लंग! जिसका एक लंक- पति-सं० ) रावण, विभीषण । | पाँव निकम्मा या टूटा हो । स्त्री० लँगडी। लंकलाट--संज्ञा, पृ० दे० (अं० लाँगकाथ) लँगड़ाना----अ० कि. (हि. लँगड़ा) लंग एक बढ़िया सफेद मोटा सूती वस्त्र: करने करते चलना, लंगड़ा होकर चलना । लंका-संज्ञा, स्त्री. (सं०) सीलोन (अं) लँगडो---संज्ञा, स्त्री० (हि. लंगड़ा) एक छंद भारत के दक्षिण में एक द्वीप जहाँ रावण (पिं०)। वि० स्त्री० टूटे पैर वाली । यौ०-- का राज्य था। " तापर चढ़ि लंका कपि लँगडी भिन्न- एक भिन्न (गणित)। देखी"- रामा०। नंगा --संज्ञा, स्रो० पु० (दे०) ढीठ व्यक्ति या लंकापति, लंकाधिपति--संज्ञा, पु० यौ० स्त्री । “दौरि पुरुष के गल परै, ऐसी सं०) लंकानायक, रावण, विभीषण। लंगर ढीठ।" संज्ञा, पु. (फ़ा० लोहे का एक लंकिनी- संज्ञा, स्त्री० (सं०) लंका की एक बड़ा काँटा जो नावों और जहाजों के ठहराने For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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