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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रोशनाई १५०७ रौनी रोशनाई-संज्ञा, स्त्री० (फ़ा०) मसि, लिखने । रात--संज्ञा, स्त्रो० दे० (सं० रोहिष) एक की स्याही, प्रकाश, रोशनी, तेल, घी, प्रकार की बड़ी मछली । चिकनाई। रौंद--संज्ञा, स्त्री० दे० (हि० रौंदना) रौंदने की रोशनी --- संज्ञा, स्त्री. ( फा० ) प्रकाश, क्रिया या भाव । संज्ञा, स्त्री० दे० ( अं० उजाला, दीपक, ज्ञान-प्रकाश दीप-राशि का राउंड ) चक्कर, गश्त, घूमना । प्रकाश। रोदना-स० कि० दे० ( सं० मर्दन ) पाँवों रोष-संज्ञा, पु० (सं०) कुढ़न, कोप, क्रोध से कुचलना या मर्दित करना । स० रूप - चिढ़, विरोध, बैर, पाबंश, जोश, युद्धोमंग, रोंदाना, प्रे० रूप-रौंदावना, रोंदवाना। " गुनहु लखन कर हम पर रोपू".---शमा०। रौ-संज्ञा, स्त्री० [फा०) चाल, वेग, झोंक, रोषी--- वि० ( सं० रोयिन ) क्रोधी। गति, पानी का बहाव या तोड़, चाल, रोस--संज्ञा, पु. द. ( सं० रोप ) कोप, प्रवाह, किसी बात की धुनि, झोंक, ढंग । क्रोध, रिस, रोष। *t- संज्ञा, ४० दे० (सं० रख) शब्द । रोह--- संज्ञा, पु० (दे०) बनरोज, रोझ, नील रोगन-संज्ञा, पु० दे० ( फा० रोगन ) तेल, चिकनाई, पालिश, वारनिश , गाय । संज्ञा, पु० (सं०) बढ़ना, उगना, रौजा -- संज्ञा, पु. (अ.) समाधि, कब, ऊपर चढ़ना। समाधि का स्थान। रोहज-संज्ञा, पु० (दे०) नेत्र, आँख । रौताइन-संज्ञा, स्त्री० दे० (हि० रावत ) रोहण --संज्ञा, पु. (सं०) प्रारोहण, चढ़ना, रावत या राव की स्त्री, ठकुराइन । चढ़ाई, ऊपर बदना, पौधा का उगना और रौताई- संज्ञा, स्त्री० दे० (हि. रावत --- बढ़ना, सवार होना। वि० राहगीय रोहित।। आई - प्रत्य० ) रावत या राव का भाव, रोहना* -- अ. क्रि० दे० ( सं० हगण ) ! सरदारी, ठकुई, रोतई (दे०) चढ़ना, सवार होना, ऊपर को जाना । स० सैद- वि० सं० ) रुद्र-संबंधी, भयंकर, क्रि०-चढ़ाना, धारण या सवार पराना, डरावना, क्रोध-भरा, प्रचंड । संज्ञा, पु. ऊपर करना। काव्य के नौ रलों में से एक रस जिसमें रोहिणी--- संज्ञा, स्त्री० (सं०) बिजली गाय, क्रोध-सूचक शब्दों से भावनाओं और वसुदेव की पत्नी और बलराम जी की माता, चेयाओं के वर्णन हों, ११ मात्राओं के चौथा नक्षत्र, ६ वर्ष की कन्या ( स्मृति ). मात्रिक छंद ( पिं० ) एक अस्त्र (प्राचीन)। रोहिनी (दे०)। " पोछति बदन रोहिणी रोडार्क- संज्ञा, पु. ( सं०) २३ मात्राओं ठाढ़ी लिये लगाय अंकोरे।" सूर० । " पंच के मात्रिक छंद । पि0) वर्षा भवेत्कन्यानववषां च रोहिणी'। रोध- संज्ञा, पु० (दे०) चाँदी, धातु विशेष । रोहित-वि० (सं०) रक्त वर्ण का. लोहित । रौन--संज्ञा, पु० दे० (सं० रमण) स्वामी, संज्ञा, पु० -रोहू मछली, लाल रंग, एक पति। संज्ञा, पु० वि० (दे०) रमणीय । “गौन प्रकार का हरिण, कुंकुम, इन्द्र-धनुष, केसर, रौन रेती सोंदापि करते नहीं" अश। रक्त, लोहू । वि० (सं० रोहण) चढ़ा हुआ। रौनक - संज्ञा, स्त्री० (अ०) प्रफुल्लता, श्राकृति रोहिताश्व--संज्ञा, पु० (सं० ) अग्नि, राजा और वर्ण, दीप्ति, काँति, विकास, सुषमा, हरिश्चन्द्र का पुत्र। “हाय बम हा शोभा, छटा, रूप, मनोहरता । रोहितास्व कहि रोक्न लागे"-हरि० । रोना-संज्ञा, पु० दे० ( हि० रोना ) रोना । रोही-वि० (सं० रोहिन् ) चढ़ने वाला। संज्ञा, रोनी* - संज्ञा स्त्री० दे० (सं० रमणी) रमणी, पु० (दे०) एक हथियार । स्त्री. रोहिणी।। सुन्दरी, स्त्री, नवनी (दे०)। For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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