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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org अंकुश ३ अंकुश - संज्ञा, पु० (सं०) हाथी के हाँकने का छोटा भाला, प्रांकुस ( ग्रा० प०) प्रतिबंध, दबाव, रोक । मु० - अंकुस न मानना, न होना, ढीठ, अवज्ञाकारी, न डरना, बेअंकुस - निरंकुश । + धारीमहावत, हाथी चलाने वाला, हस्तिपक । -+ ग्रह - संज्ञा, पु० (सं०) फीलवान, निषाद, हथवान | मु० अंकुश रखना - दबाव रखना । कुशादन्ता -- वि० ( सं० अंकुशदंत या दंती ) वह हाथी जिसका एक दाँत सीधा और दूसरा नीचे को झुका हो । गुंडा, अंकुशदाता - रोकने वाला । अँकुसी - संज्ञा स्त्री० (सं० अंकुशी ) टेढ़ी कील, कटिया, हुक । अंकोट - संज्ञा पु० — देखो - अंकोल, एक पहाड़ी पेड़ । अँकोर - संज्ञा पु० (सं० अंकाल - अंकपालि ) अंक, गोद, अँकवार, भेंट, नज़र, घूस, रिशवत, कलेवा, खेतिहारों का प्रातः भोजन, छाक, कोर, दुपहरी - अँकोरे, (दे० ) 'लै बैठे फुसलाय अँकोरे " -- अँकोरना क्रि० प्र० - भेंटना, गरम करना, घूस लेना । 66 " श्रंकोट अंकोरी -- संज्ञा, खी० ( अंकोर + ई ) गोद, लिंगन | अंकोल - देखो पेड़ | अंक्य - वि० (सं० ) चिन्ह करने के योग्य, अंक लगाने के योग्य, दागने के योग्य, अपराधी, मृदंग, पखावज, तबला, आदि जो गोद में रखकर बजाये जाते हैं । खड़ी - संज्ञा स्त्री० (प्रान्तीय ) - श्राँख, 'मुँद गई जब अँखड़ियाँ तब सोज़ सब आनन्द हैं ।" अँखमीचनी (सं० श्रक्षिनिमीलन, (दे०) आंख मिहीचनी ) - संज्ञा, स्त्री०, आँख मिचौनी या मिचौली का खेल, "खेलन श्राँ मिहीचनी आजु गई हुती पाहिले द्यौस की नाई । मतिराम " 64 "" | एक पहाड़ी अंगजा मीनी साथ तिहारे न खेलि पद्माकर । अँखिया - संज्ञा, स्त्री० (हि० श्राँख) आँख, (बहु० अँखियाँ " अँखियाँ भरियाई " ) नक्काशी करने की क़लम, ठप्पा । अँप्रा - संज्ञा, पु० (सं० - अंकुर ) अंकुर, बीज से उगी हुई पौदे की नोक, कनखा, कल्ला, अँखुआना, ( क्रि० प्र० ) अंकुर छोड़ना उगना, जमना । अंग-संज्ञा, पु० (सं० ) शरीर, बदन, देह, तन, गात्र, जिस्म, श्रवयव, भाग, अंश, खंड, हिस्सा, टुकड़ा, भेद, भाँति, उपाय, पक्ष, तरफ़, अनुकूल पढ़ें, सहायक, तरफ़दार, मित्र, प्रकृति, प्रत्यययुक्त शब्द का प्रत्यय - रहित भाग, जन्मलग्न, कार्य करने का साधन, एक देश, भागलपुर ( बंगाल ) के चारों ओर के प्रदेश का प्राचीन नाम, जिसकी राजधानी चंपापुरी - चंपारन थी । एक सम्बोधन, प्रिय, प्रियवर, छः की संख्या, पार्श्व, बग़ल, नाटक का अप्रधान रस, तथा नायक का कार्य साधक । सेना के ४ भाग- हाथी, घोड़े, रथ, पैदल, योग के ८ विधान ( — योग शास्त्र - - अष्टांग योग), राजनीति के ७ अंग- स्वामी, अमात्य, सुहृद, कोप, राष्ट्र, दुर्ग, सेना । शास्त्र विशेष, वेद के छः अंग -- शिक्षा, कल्प, न्याय, ज्योतिष, मीमांसा, व्याकरण या निरुक्त, राजा बलि का क्षेत्रज पुत्र, इसी से इसके देश को भी, जो गंगा और सरयू के सङ्गम में है— अंग कहते हैं । अंगज -- संज्ञा, पु० (सं० ) ( स्त्री० - अंगजा ) शरीर से उत्पन्न -- पुत्र, लड़का, बेटा, पसीना, बाल, रोम, काम क्रोधादि विकार, साहित्य में कायिक अनुभव, कामदेव, मद, रोग । अंगजा -- संज्ञा, स्त्री० (सं० ) पुत्री, अंगजाई, (दे०) संज्ञा, स्त्री०, अंगजन्मा । + राज -- कर्ण । + ग्रह - संज्ञा, पु० (सं० ) बात रोग । " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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