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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १३२० भविष्यवाणी भाज भविष्यद्वाणी—संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) प्रथम भसंड-संज्ञा, पु० दे० (सं० भुशुंड) हाथी । हो से कही गई, भागे होने वाली बात। भKडी, भुशंडी-संज्ञा, पु० (दे०) काकभुसुंड भवीला*-वि० दे० (हि. भाव + ईला गणेश। प्रत्य०) भाव पूर्ण या युक्त, तिरछा, बाँका । भसुर-संज्ञा, पु० दे० (हि० ससुर का अनु०) भवेश-संज्ञा, पु. यौ० (सं०) महादेवजी। जेठ, पति का बड़ा भाई। भवैया - संज्ञा, पु. (दे०) कत्थक, नचैया। भत्रा--संज्ञा, स्त्री० (सं०) धौंकनी। भवोदधि- संज्ञा, पु. यौ० (सं०) संसार | भस्म-संज्ञा, पु० (सं० भस्मन् राख, खाक । सागर, भवसागर । वि.--जो जल कर राख हो गया हो, भव्य-वि० (सं०) देखने में सुन्दर या भारी, भस्मसात, भस्मीभत। मंगल और शुभ-सूचक, भविष्य में होने भस्मक-संज्ञा, पु० (सं.) एक रोग जिपमें वाला, सत्य, मनारम । भोजन तरकाल पच जाता है । " रूप असन भव्यता-संज्ञा, स्त्री० (सं०) भव्य का भाव ।। अँखियन को भस्मक शेग"-वर० । भष*-संज्ञा, पु० दे० ( सं० भक्ष्य ) भोजन, भस्मता- संज्ञा, स्त्री० (सं०) भस्म होने का खाना। 'प्रजया-भप अनुहारत नाही' धर्म या भाव। -सूर०। | भस्मसात-वि० (सं०) जलकर भस्म होना। भषना-स० क्रि० दे० (सं० भक्षण) खाना | भस्मासुर - संज्ञा, पु. यौ० (सं.) एक दैत्य (बुरे अर्थ में ), भखना (ग्रा.)। (पुरा०)। भस-सज्ञा, पु० (दे०) भस्म, राख, किसी भम्मीभूत-वि० (सं.) जो जल कर राख पदार्थ की असह्य गध। हो गया हो। " भस्मी भूतस्य देहस्य पुनरा. भसकना- अ० क्रि० (दे०) गिरना, पड़ना, | गमनं कुतः " ना। फाँकना, बुरे रूप से अधिक खाना । भहराना-अ० कि० ( अनु० ) बड़े शब्द के भसना- अ. क्रि० दे० (०) जल पर साथ एका एक गिर पड़ना टूट पडना । तैरना, जल में डूबना। भाँउ-भाउ-सज्ञा, पु. दे. ( सं० भाव ) भसभसा-वि० (दे०) पोला. थलथला । भाय, ( ब्र०) भाव, अभिप्राय, मतलब। भाउर-भाँवरि-संज्ञा, स्त्री० दे० (हि. भसम--संज्ञा, पु० दे० (सं० भस्म ) भस्म, भाँवर) अग्नि-परिक्रमा, भाँवर, भोरी। राख, विभूति । (व्याह.)। " तुलली भाँवरि के परे, ताल भसमा-संज्ञा, पु० दे० (फा० दस्मा का सिरावत मौर"। अनु.) एक तरह का ख़िजाब । भाग- संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० भृग) एक भसर-क्रि० वि० (दे०) भस शब्द से गिरना मादक पत्तियों वाली बूटी, विजा, भंग। या बैठना। वि. भैगेड़ी । "भाँग-भषन तो सरल है।" भसाना-संज्ञा, पु० दे० (बँ भसाना) काली मुहा० - भौगखा जाना या पी जाना= श्रादि की मूर्ति को नदी में प्रवाहित करना, पागलपने या नशे की सी बातें करना । बहा देना। माँग छानना-भंग को पीस कर पीना । भसाना-स० कि० दे० (२०) किसी वस्तु घर में भूजो भाँग न होना-बहुत को पानी में डालना या तैराना। कंगाल होना। भसीडा-संज्ञा, स्त्री० (दे०) कमल की जड़, भाँज संज्ञा, स्त्री० (हि. भांजना ) घुमाने या कमल की नाल, मुरार (प्रान्ती.)। भाँजने का भाव, मरोड़, नोट प्रादि के बदले For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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