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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - मषंगम भविष्यद्वक्ता भषंगम-ज्ञा, पु० दे० सं० भुजंगम) साँप। भवमोचन वि० यौ० (सं.) जन्म मरण भवंत-वि० (सं० भवत्) भवत् का बहुवचन, प्रादि रसार-बंधन से छुड़ाने वाले, भगवान । भाप लोग। "देखेउँ भरि लोचन प्रभु भवमोचन इहइ भवर - संज्ञा, पु. दे. ( सं०. भ्रमर ) भोर ।। लाभ शंकर जाना"-रामा० । भयरो-संज्ञा, स्त्रो० (दे०) भ्रमरी, व्याह में भव-वारिधि--संज्ञा, पु० यो० (सं.) संसारअग्नि प्रदक्षिणा, भौंरो। सागर, भवोदधि । “भववारिधि वोहित सरिस".-रामा० । भव संज्ञा, पु० (सं०) जन्म, उत्पत्ति, संसार, | भवविलास-संज्ञा, पु. यौ० (२०) अज्ञानमेघ, कुशल, शिव, कामदेव, सत्ता, जन्ममरण का दुख, भौ (दे०)। वि०-शुभ, जन्य संसारी सुख, मोह-माया, प्रपंच । उत्पन्न । " भव भव विभव पराभव कारिनि', भवसंम्व वि० यौ० (सं.) साँसारिक । "भवसभव नाना दुख दारन'"- रामा० । -रामा० संज्ञा, पु० (स० भय) भय, डर । भवदीय-सर्व० (सं०) तुम्हारा, अापका । भघाँ-संज्ञा, स्त्री० दे० (हि० भवना) भवासना, भवन-संज्ञा, पु. (सं०) महल, घर, मकान, चक्कर, फेरी । यौ० - वाफेरी। मंदिर छपर का एक भेद (पि.)। भवाँना- स० कि० दे० (सं० भ्रमण ) फिराना, घुमाना। " भवन भरत, रिपु-सूदन नाही"--रामा०।। भवादश - वि० (सं०) श्रापके तुल्य । संज्ञा, पु० दे० ( स० भुवन ) संसार जगत् । भवा-भवानी-संज्ञा, स्त्री. (सं०) पार्वतीजी। भवना, भवना*--अ. क्रि० दे० (सं० 'राम नाम जपि सुनहु भवानी"- रामा०। भ्रमण ) झुम्ना, मुड़ना. चक्कर लगाना चाणव-संज्ञा, पु. यो० (सं०) ससारघूमना, फिरना : स० रूप-भधाना। सागर, भवसागर । भवनी-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० भवन) घरनी, भवान - सर्व० (सं०) श्राप । वि०-भवदीय। भवितव्य - संज्ञा, स्त्री० (सं०) होनहार । भवबंधन - संज्ञा, पु. यौ० (सं०) संपार का भवितव्यता-संज्ञा, पु. (सं०) होनहार, झंझट, जन्म-मरण का दुख. साँसारिक कष्ट । भावी, होतव्यता, भाग्य, हानी । “तुलसी "भव बंधन काहि मुनि ज्ञानी"- रामा० नृपति भवितव्यता बस काम-कौतुक लेखई" भवभंजन-संज्ञा, पु. यौ० (सं०) परमेश्वर। -रामा०।। भवभजन जनरंजन हे प्रभु भंजन पाप . भविष्णु--संज्ञा, पु० (सं०) भावी, होनहार, समूह "- मन्ना। होतव्यता। भवभय, भौ-भै (दे०)- संज्ञा, पु. यौ० भविष्य-वि० (सं० भविष्यत् ) भागे आने (सं०) जग में जन्म-मरण का डर। वाला समय, वर्तमान काल से आगे का भवभामिनी-सज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०)पार्वती काल, भावी। भवभूति-संज्ञा, पु. (सं.) संस्कृत के एक भविष्यगुप्ता, भविन्य-सुरति-संगोपनाप्रमुख कवि । संज्ञा, स्त्रो० यौ० (सं०) संसार संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) एक गुप्ता नायिका जो की विभूति । भागे रति करने वाली हो और प्रथम ही से भवभूप, भवभूपति*-संज्ञा, पु. यौ० उसे छिपाये (साहि० ।। (स.) संसार के राजा, जगत्पति। भविष्यत् संक्षा, पु० (सं०) भावी, भविष्य । भवभूष, भवभूषण -- ज्ञा, पु० यौ० (सं०) भविष्यद्वक्ता- संज्ञा, पु. यौ० (सं.) मागे संसार के गहना, शिवजी का गहना, साँप, होने वाली बात का कहने वाला, ज्योतिषी, भस्म दैवज्ञ, भविष्यद्वाणी करने वाला। For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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