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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १३१५ भयान भद्राक्ष-संज्ञा, पु० (सं०) बनावटी या कृत्रिम भभकी- संज्ञा, स्त्री० (हि. भभक ) घुड़की, धमकी, भबकी (दे०)। यौ०-गीदड़ भभकी। भद्रिका-संज्ञा, स्त्री० (सं०) एक वर्णिक छंद भन्भड़-भम्भड़-संज्ञा, स्त्री० दे० (हि. (पि.) भीड़) भीड़-भाड़, अव्यस्थित जन-समुदाय, भद्री-वि० ( सं० भदिन् ) सौभाग्यशाली। भरभर (दे०)। भनई-स० कि० ( हि० भनना ) कहता है। भभरना-भभगना -अ.क्रि० दे० (सं० "सुकवि भरत मन की गति भनई"-रामा० ।। भय ) डरना, भयभीत होना, घबरा जाना, भनक-संज्ञा, स्त्री० दे० ( सं० भणन ) ध्वनि, । भ्रम में पड़ जाना, सूजना। धामा प्रावाज, उड़ती खबर । “परी भनक । भमूका-सज्ञा, पु० ० ( ह. भभक ) ज्वाला, मम कान"-सरस। लपट । भनकना*-स० कि० दे० (सं० भणन ) भभूत-भभूति -- संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० विभूति) धन, ऐश्वर्य, संपति, लचमी, सपदा, राख, कहना। भनना-१० क्रि० दे० (सं० भणन) कहना। भस्म, बभूत (दे०)। भभोरना-स० क्रि० दे० (हि.) फाड़खाना। भनभनाना-अ० कि० ( अनु० ) गुंजारना, ! भयंकर -- वि० (स०) जिसे देखने से डर लगे, भुनभुनाना, भन भन शब्द करना, मक्खियों) क्रोध से बड़बड़ाना। " भनभनाई वह बहुत भीपण, भयानक, डरावना । " रूप भयंकर प्रगटत भई"-रामा०। हो बेकरार"-हाली भयंकरता--संज्ञा, स्त्री. (सं०) भीषणता। भनभनाहट-संज्ञा, स्त्री० (हि० भनभनाना भय-संज्ञा, पु० (सं०) घोर विपत्ति या शंका, +पाहट-प्रत्य) गुंजार, भनभनाने का भीषण वस्तु के देखने से उत्पन्न एक मनोविकार डर। मुहा०-भय खानाभनाना-६० क्रि० (दे०) भुनाना, बड़े सिक्के के बदले छोटे सिक्के लेना, भुनाना, भजाना। डरना, भय दिखाना-डराना। *अ० कि० हुआ, भै ( ब्र.) भया। भयप्रद-वि० (स.) भयद, भयानक, भीषण, भन्ना-संज्ञा, पु० (दे०) भाँज, बड़े सिक्के भय कारक, भयकारी। के बदले छोटे सिक्के, नामा (प्रान्ती०)। भयभीत-वि० यो० (सं०) डरा हुश्रा सभीत। भन्नाना-अ.क्रि० ( अनु० ) भनभनाना, भयवाद - संज्ञा, पु० दे० (हि. भाई+पादकुपित या क्रोधित होना. बड़बड़ाना, पीड़ा, प्रत्य०) एक ही गोत्र या वंश के लोग, भाईबार करना (सिर श्रादि)। संज्ञा, पु. स्त्री. बंध, बंधु-बांधव। भयहारी--वि० (सं० भयहागिन् ) डर छुड़ाने भनित - वि० दे० (सं० भणित ) कहा या दूर करने वाला । 'वानि तुम्हारि प्रणतहुधा । "भाषा भनित मोरि मति भोरी'--. भयहारी"--रामा० । रामा०। | भया - वि० दे० (हि. हुआ ) हुश्रा, भबका-भपका-संज्ञा, पु० दे० (हि. भाप) भयो, भो ( ब्र०)। अ उतारने का यंत्र, भभका (दे०)। भयातर-वि० यौ०(सं०) भयविह्वल, भयभीत भमकना-अ० क्रि० दे० ( अनु० ) उबलना, डरा हुआ, डरपोंक। भड़कना, गरमी पाकर ऊपर उमड़ना, जोर भयान*-- वि० दे० (सं० भयानक ) से बलना। स० रूप भभकाना। डरावना, भीषगा। (३०) भन्नाहट। For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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