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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बिरुझना १२७८ बिलबिलाना मुँह देने "-बि० । “खाये पान-बीरी सी सब का सब, पूरा पूरा, सारा, सब, निपट, बिलोचन बिराज भाज'- पद्मा। निरा, श्रादि से अन्त तक। बिरुभना-अ० क्रि० दे० (सं० विरुद्ध ) बिलखना-अ० क्रि० दे० (सं० विकल ) झगड़ना, मचलना । "लागी भूख चंद मैं फूट फूट कर ज़ोर से रोना, विलाप करना, खैहौं देह देह रिस करि विरुझावत' सूत्रे। दुखी होना, संकुचित होना, बिलगना। स० रूप-विरुझाना, प्रे० रूप-बिरुकवाना । स० रूप-बिलखाना, विलखावना। बिरुद-संज्ञा, पु० दे० ( सं० विरद ) प्रशंसा. बिलग--वि. (हि० बि- लगना-प्रत्य०) यश-कीर्तन । “बिरुद, बड़ाई पाय गुननि | पृथक, अलग | संज्ञा, पु. ( हि०) पार्थक्य, बिनु बड़े न हूजै"--मन्ना० । द्वेष, बुरा भाव, दुख, रंज । मुहा०बिरुदैत-वि० दे० (हि. बिरद । ऐत-प्रत्य०) बिलग मानना---बुरा या माख मानना । विख्यात, प्रसिद्ध । संज्ञा, पु० दे० (हि. "तजिहाँ जो हरखि तौ बिलग न मानै विरदैत ) प्रतिज्ञावाला, नामी वीर । कहूँ"..-श्रमी० । "विरुझ बिरुदत जे खेत परे, न टरे हठि बिलगाना-अ० क्रि० दे० (हि.) पृथक या बैर बढ़ावन के" ---कविता । अलग होना, दूर होना । स० क्रि० (दे०) विरुधाई-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० वृद्धता ) पृथक या अलग करना, दूर करना, चुनना, बुढ़ापा, बुढ़ाई, बिरधापन । छाँटना । “सो बिलगाय बिहाय समाजा" बिरूप - वि० दे० (सं० विरूप ) कुरूप, -रामा। बदला रूप, बिलकुल भिन्न । संज्ञा, स्त्री० बिलच्छन-वि० (दे०) अनोखा, अपूर्व, बिरूपता। अद्भुत, विलक्षण (सं.)। बिरोग- संज्ञा, पु० दे० (सं० वियोग) बिलहना-अ० कि० दे० (सं० लक्ष ) बियोग, बिछोह, बिरह । ताड़ना, लक्ष करना। बिरोगिनी-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० वियोगिनी) | बिलटी, बिल्टी-संज्ञा, स्त्री० दे० (अं० बिलेट) विरहिनी, वियोगिनी। रेल से माल भेजने की रसोद । बिरोजा-संज्ञा, पु० (दे०) चीड़ के पेड़ का बिलनी-संज्ञा, स्त्री० दे० (हि. विल) काली गोंद, गंधाबिरोजा। पतली भौंरी जो दीवारों पर बाँबी बनाती बिरोधना-अ० क्रि० दे० (सं० विरोध) है। संज्ञा, स्त्री० (दे०) आँख की पलक पर बैर या विरोध करना, द्वेष करना । " नवहि छोटी फुन्सी, गुहाँजनी (प्रान्ती)। बिरोधे नहिं कल्याना"-रामा०। बिलपना* - अ० क्रि० दे० ( सं० बिलाप ) बिलंद-वि० दे० (फ़ा० बुलंद ) ऊँचा, बड़ा, रोना, चिल्लाना, रोना-पीटना, विलाप बिफलीभूत ( व्यंग्य )। करना । स० रूप-बिलपाना, प्रे० रूप - बिलंबना-अ० कि० दे० (सं० विलंब) बिलपवाना ! “यहि बिधि बिलपत भा देर करना, रुकना, ठहरना, विलाना। भिनसारा"~ रामा० । बिल-संज्ञा, पु० दे० (सं० विल ) बन के बिलफल-क्रि० वि० (अ.) इस वक्त, इस जंतुओं का खोद कर बनाया हुअा गढ़े सा समय । रहने का स्थान, माँद, बिबर, छेद, गुफ़ा, बिलबिलाना-~अ० क्रि० दे० (अनु०) छोटे हिसाब का लेखा (अं०)। छोटे कीड़ों का इधर उधर रेंगना, व्याकुल बिलकुल-क्रि० वि० (अ०) सम्पूर्ण, समस्त, ! होकर बकना, रोना, चिल्लाना, घबराना! For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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