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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org बरेठा बरेठा - संज्ञा, पु० (दे०) धोबी, रजक । स्त्री० बरेठिन | बरेरा -- संज्ञा, त्रो० (दे० ) पान का खेत, बिरनी, हाड़ा । बरै - संज्ञा, पु० (दे०) बरई तमोली । बरैन – संज्ञा, स्त्री० (दे०) बरइनि, तमोलिन । बरोक - संज्ञा, पु० दे० ( हि० बर + रोक ) बरेच्छा, फलदान, व्याह पक्का करने को कन्या-पक्ष द्वारा वर पक्ष को दिया गया द्रव्य । * संज्ञा, पु० दे० ( सं० बलौक ) सेना । क्रि० वि० दे० ( सं० बलौकः ) जवरदस्ती | बरोठा, बरौठा --- संज्ञा, पु० दे० (सं० द्वार + कोष्ट, हि० बार + कोठा ) पौरी, बैठक, ड्योदी, दीवानखाना, द्वार के निकट की दालान । मुहा० - बरोठे का चार -द्वारपूजा, द्वाराचार (सं० ) । बरोरु* – वि० दे० यौ० (सं० बरोरु) अच्छी जाँघों वाला या वाली । १२४० बरोह - संज्ञा, स्त्री० दे० ( सं० वट + रोह - उगना ) बरगद की जटा, वट-शाखाओं से नीचे लटकी जड़ों जैसी शाखायें जो पृथ्वी पर जम कर जड़ें हो जाती हैं । बरोठा - संज्ञा, पु० दे० (हि० बरोठा, बरेठा ) बरोठा, बरेठा, धोबी 1 बरौनी-संज्ञा, स्त्री० दे० यौ० (सं० वरलोभिका) बरोनी, पलकों के बाल, बरुनी । बरौरी - संज्ञा, त्रो० दे० ( हि० बड़ी, बरी ) बरी या बड़ा नाम का पकवान । बर्क – संज्ञा, स्त्री० (अ०) विद्युत्, बिजली । वि०-चालाक, तेज । बर्ज - वि० दे० (सं० व ) श्रेष्ठ । बर्जना- - स० क्रि० दे० (हि० वरजना) रोकना । वर्णन, बर्नन - संज्ञा, पु० दे० (स० वरून ) बयान, कथन, वर्णन, बरनन । स० क्रि० (दे०) बर्णना । बर्तन - संज्ञा, पु० (दे०) बरतन ( हि० ) । बर्त्तना - स० क्रि० दे० (हि० वरतना) व्यवहार करना, बरतना । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बल बर्न -संज्ञा, पु० (दे० ) वर्ण (सं०) अत्तर, रंग, जाति बरन । " तुलसी रघुबर नाम के बर्न बिराजत दोय " रामा० । बर्फ़ - संज्ञा, खो० ( फा० ) शीत से नम कर गिरने वाली वायु में की पानी की भाफ, हिम, बरफ, अति ठंढक से जम कर ठोस और पारदर्शक हुआ पानी, कृत्रिम उपायों या मशीन से जमाया जल, दूध या फलों का रस | वि० बर्फीला, त्रो० बर्फीली । बर्फ़िस्तान - संज्ञा, पु० ( फ़ा० ) हिम-स्थल, हिम का देश | बर्फ़ी - संज्ञा, स्त्री० दे० ( फा० वर्फ ) बरफ़ी नाम की मिठाई । बर्बर - संज्ञा, पु० (सं०) वर्णाश्रम - रहित, असभ्य मनुष्य, अस्त्रों की झनकार घुंघराले बाल । वि० - जंगली. उद्दंड, असभ्य | संज्ञा, to बर्बरता, बर्बरी । बबरी - संज्ञा, स्त्री० (सं०) पीला चंदन, वन -तुलसी, ईंगुर । बरक़ - वि० ( प्र०) तेज़ जगमगाता हुआ, चमकीला, तीव्र, चतुर, सफेद | बराना - अ० क्रि० दे० (अनु० वर वर ) व्यर्थ बकना या बोलना, नींद या अचेत होने पर बकना, बड़बड़ाना, बरराना, ऐंठ जाना । बरै, बर्र - संज्ञा, पु० ( सं० बरवट ) ततैया, भिड़, बरैया (ग्रा० ) । " बरै बालक एक सुभाऊ - रामा० । बलद, बुलंद - दे० वि० ( फा० ) ऊँचा । संज्ञा, स्त्री० बलंदो, बुलंदी | बलंद - अकबाल - वि० यौ० ( फा० + अ० ) उच्च भाग्य, भाग्यवान, तक़दीर वाला । बल - संज्ञा, पु० (सं०) शक्ति, जोर, ताकत, सामर्थ्य, बूता, बिर्ता (दे०) भरोसा, आश्रय, सेना, पार्श्व, सँभार, सहारा | संज्ञा, ५० दे० (सं० वलि) मरोड़, ऐंठन, लपेट, मोड़, लहरदार, घुमाव, फेरा शिकन | मुद्दा० - वल्ल खाना - टेढ़ा होना, घाटा या हानि सहना, कुकना, लचकना, चूकना । टेढ़ापन, लचक, For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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