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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पाकक्षार ११०६ पागना O - पाकक्षार-संज्ञा, पु० (सं०) जवाखार। पाकागार-संज्ञा, पु. यौ० (सं०) रसोई-घर । पाकगृह-संज्ञा, पु० यो० (सं०) रसोई-घर । । पाकूका-संज्ञा, पु० (दे०) पाककर्ता । पाकठ-वि० दे० (हि. पकना) पका पाकूया-संज्ञा, पु० (दे०) सजी खार । हुआ, अनुभवी, तजरबेकार, मज़बूत, दृढ़। पाक्य - वि० (सं०) पचने या पकने योग्य । पाकड़-सज्ञा, पु० दे० ( हि० पाकर) पाकर पाक्षिक-वि० (सं०) पक्ष या पखवारासंबंधी, पेड़। पक्षवाही, दो मात्राओं का एक छंद (पिं०)। पाकदामन-वि० यौ० (फा०) निर्दोष । पाखंड-संज्ञा, पु० दे० ( सं० पाषड ) ढोंग, संज्ञा, स्त्री० पास दामनी सती, पतिव्रता। ढकोसला. आडंबर, धोखा, छल, नीचता, पाकना-अ. क्रि० दे० (हि० पकना ) | दिखावा, वेद विरुद्ध आचार. वि० खंडी, पकना, पक जाना, परिपक होना। पाखंडी (ग्रा० ) । “जिमि पाखंड-विवाद पाकपत्र-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) रसोई के | तें गुप्त होंहि सदग्रंथ "--रामा । मुहा० बरतन, थाली, हाँडी आदि। -पखंड फैलाना-किसी के ठगने का पाकपटो - संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) चूल्हा, ढोंग फैलाना, मकर रचना । पाखंड रचना भट्टी, आँवा । -दिखावा या धोखे की बात बनाना । पाकयज्ञ-संज्ञा, पु. यौ० (सं०) गृह-प्रतिष्ठा । पाखंड करना-ढोंग करना। के समय खीर का हवन पंच महायज्ञों में | पाग्ब-पाग्वा -- संज्ञा, पु० दे० (सं० पक्ष ) से ब्रह्मयज्ञ को छोड़कर शेष ४ यज्ञ, वलि, एक पक्ष या १५ दिन, पखवारा ( ग्रा० ), वैश्व-देव, श्राद्ध, अतिथि-भोजन । वि० | त्रिकोणाकार बड़ेर रखने की चौड़ाई की पाकयाक्षिक। दीवार, पर, पंख, पखना। पाकर-पाकरी-संज्ञा, पु० दे० (सं० पर्कटी) पाखर-पाखरी-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० पक्षर) पकरिया. पलखन नामक पेड़ । " पाकर बैलगाड़ी में अनाज आदि भरने को टाट जंतु रसाल, तमाला"--रामा०। की एक बड़ी गोन, हाथी की लोहे की पाकरिपु-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) इन्द्र ।। झूल । संज्ञा० पु. ( दे० ) पाकर वृक्ष । पाखा-संज्ञा-पु० दे० (संपक्ष) छोर, कोना, पाख । पाकशाला-संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) रसोई. पाखान -संज्ञा, पु० दे० (सं० पाषाण ) घर, पाकालय, पाकगृह । पाषाण. पत्थर पखान (ग्रा.)। " तुलली पाकशासन-संज्ञा, पु० (सं०) इन्द्र, पाक राम-प्रताप तें, सिंधु तरे पाखान"-रामा० । नामक दैत्य के मारने वाले, (दे०) पाक पाखाना-- संज्ञा, पु० (फ़ा०) पुरीष, टट्टी, मैला, सासन । 'बैठे पाकसासन लौं सासन कियो गृह मल-त्याग-स्थान। करें"-रसाल। पाग--संज्ञा, स्त्री० दे० ( हि० पग ) पगड़ी, पाक संडसी– संज्ञा, स्त्री० (दे०) गरम बट- | पगिया । संज्ञा, पु० दे० पाक (सं०), चाशनी लोई उठाने का हथियार, संगसी। में पगी औषधि के लड्डू, शीरे में पके फल, पाकस्थली-सज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) पक्वा- | मिठाई का शीरा। शय, रसोईवर । पु. पाकस्थल । पागना-स. क्रि० दे० (सं० पाक) पाका-वि० दे० ( सं० पक्व ) पका हुआ, मीठी चीनी में सानना या लपेटना । अ० पक्का। संज्ञा० पु० (दे०) फोड़ा, व्रण। क्रि०(वृ०) अति अनुरक्त होना "राम-सनेहपाकारि-पाकारी - सज्ञा, पु० यौ० (सं० वा सुधा जनु पागे "-रामा० । क्रि० दे०, पाक दैत्य के शत्रु, इन्द्र। प्रे० रूप-पगाना, पगवाना )। . For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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