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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir DIRE पांवड़, पांघड़ा ११०८ पाक पाँव (पैर ) श्राना-धीरे धीरे धाना। पांसुरी -संज्ञा, स्त्री० दे० (हि. पसलो) (किसी के ) पांव न होना-स्थिर न रहने पसली। “पाँसुरी उमाहि कबौं बाँसुरी का साहस या बल न होना, दृढ़ता न होना, बनावें हैं "-ऊ० श०। चल न सकना । धरतो (जमीन) पर पाँव | पाही-81-क्रि० वि० दे० (हि. पंत) (पैन धरना ) रखना--अति अभिमान | समीप, निकट, पास, से (करण-विभक्ति)। करना। " मुखि-छवि कहि न जाय मोहिं पार्टी ।" पांवड़, पांवड़ा-संज्ञा, पु० (दे०) पाँवरा | पाइ8- संज्ञा, पु० दे० ( सं० पायिक ) पाँव, (७० ) बड़ों की राह में बिछाने का वस्त्रा, पाद पू० का० स० क्रि० (हि० पाना) पाकर । पायन्दाज़, गाँवर (ग्र०) । स्त्री० पाँवड़ी। पाइक -संज्ञा, पु० दे० (सं० पाद) पाँवर * -वि० दे० ( सं० पामर ) नीच, धावन, दूत, दास, सेवक । पामर, पापी, दुष्ट, मूर्ख, पोच, तुच्छ । पाइतरी -संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० पादपांघरी, पावडी-संज्ञा, स्त्री० दे० ( हि० पाँव स्थली) पायताना, पॉयता। +री प्रत्य० ) पाँव, जूता, खड़ाऊँ, सीढ़ी सोपान । संज्ञा, स्त्री० दे० (हि. पोग) | पाइल* -- संज्ञा, स्त्री० दे० (हि. पायल ) पौरी, ड्योढ़ी, दालान, बैठक। पायल, पाजेब, छागल (प्रान्ती० )। पाँशु-संज्ञा, पु. (सं०) रज, धूलि, दोष, | पाई-संज्ञा, स्त्री० दे० ( सं० पाद = चरण ) बालु, खाद पाँस (दे०)। "तस्याः खुरन्यास किसी वस्तु का चौथाई भाग, दीर्घ आकार पवित्र पाँशुम'-रघु०। की मात्रा, पूर्ण विराम का चिन्ह, एक पांशुका-संज्ञा, स्त्री. (सं०) धूलि, रज, ताँबे का सिक्का जो एक पैसे में ३ मिलता हैं धुन एक कीड़ा (गेहूँ या धान का) एकाई रजस्वला। का चौथाई सूचक संख्या के प्रागे लगाने पाँशुल्त-वि. पु. (सं०) दापी, मलिन, | लंपट, व्यभिचारी। (स्त्री० पशुला) की छोटी खड़ी लकीर, मंडल में नाचने पांशुला--संज्ञा, स्त्री० (सं०) दोपिणी, मलिना, की क्रिया । सा० भू० स० क्रि० स्त्री० पाया । व्यभिचारिणी । " अपांशुलानाँ धुरि कीर्ति- पाँउ -संज्ञा, पु० दे० ( स० पाद ) नीया"-रघु०। पाँव, पैर। " श्राज संसार तो पाँउ मेरे पांस-संज्ञा, स्त्री० दे० ( सं० पाँशु) खेत को परै'-राम चं। उपजाऊ करने की सड़ी-गली चीजों की पाक -- संज्ञा, पु० (सं०) पकाने की क्रिया या खाद, सड़ने से उठा खमीर।। भाव, पकवान, रसाई,औषधियों का चाशनी पांसना-स० क्रि० दे० ( हि० पास+ने | में पाग, पाचन-क्रिया, श्राद्ध के पिंडों की प्रत्य०) खेत में खाद देना, "खेत पाँसना, खीर । " आप गयी जहँ पाक बनावा" खूब जोत कर पानी देना तीन'- स्फुट० ।। -रामा० । वि० (फा०) शुद्ध, पवित्र, निर्मल, प्रे० रूप-साना, पंसवाना। निदोष, समाप्त । यो०-पाक-साफ़ । मुहा० पांसा--संज्ञा, पु० द० ( सं० पाशक ) चौपड़ ---झगड़ा पाक करना-किसी कठिन खेलने के हाथी दाँत या हड्डी के चौकोर कार्य को कर डालना, बखेड़ा मिटाना, टुकड़े । 'ज्यों चौपड़ के खेल में, पाँसा | मार डालना । साफ । यौ०-पाकदामन पड़े सो दाँव"-वृन्द० । मुहा०-पाँसा -निर्दोष, निष्कलंक । वि० दे० (सं० पर) उलटना-किसी उपाय या उद्योग का -परिपक्क । पाककर्ता-वि० यौ० (सं०) उलटा फल होना। रसोई बनाने वाला, रसोइया । For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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