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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir निशं निशाकर १०२४ निशाकर-संज्ञा, पु० (सं०) चन्द्रमा, मुरगा, निशानची-संज्ञा, पु. (फ़ा० निशान निसाकर (दे०)। " लिखत निशाकर ची-प्रत्य० ) ध्वजाधारी, झंडाबरदार । लिखिगा राहू"-रामा० । निशानदेही-संज्ञा, स्त्री. (फा०) असामी निशाखातिर-संज्ञा, स्त्री० यौ० (अ० खातिरे | को सम्मन आदि दिलाना । + फ़ा० निशाँ -खातिरनिशाँ ) तसल्ली, निशाना-- संज्ञा, पु० (फा०) लघय । मुहा० निश्चिन्त, दिलजमई, निसाखातिर (दे०)। --निशाना बाँधना - वार करते समय निशागम--संज्ञा, पु. यो० (सं०) रात्रि का अस्त्र-शस्त्र को ऐसा साधना कि ठीक लक्ष्य श्राना, साँझ, संध्या, सायंकाल । पर लगे । निशाना मारना या लगानानिशाचर--संज्ञा पु० (सं०) राक्षस, स्यार, लचय को ठोक ताक कर मारना, जिम उल्लू, भूत, चोर, रात में चलने वाला, __ व्यक्ति के हेतु व्यंग कहा जावे। (निशां चरतीति) सूर्य । निशानाथ–संज्ञा, पु. यौ० (सं०) चन्द्रमा । निशाचरी-संज्ञा, स्त्री. (सं०) राक्षसी, . निशानी-संज्ञा, स्त्री० (फा०) यादगार, स्मृति कुलटा, अभिसारिका नायिका । "दुस्सहेन चिन्ह, पहचान, निशान, चिन्हारी । हृदये निशाचरी"- रघु०। निशापति- संज्ञा, पु० (सं०) चन्द्रमा । निशाचारी-वि. पु. ( सं० निशाचारिन् ) निशार्माण- संज्ञा, पु० यौ० (सं.) चन्द्रमा। रात्रि में चलने वाला। स्त्री निशावारिणी। निशामुख-संज्ञा, पु. यौ० (सं०) संध्या का निशाट-निशाटन --संज्ञा, पु० यौ० (सं०) समय, गोधूली बेला। राक्षस, चोर, उल्लू । निशास्त--संज्ञा, पु. (फ़ा०) गेहूँ का गूदा निशाटी-निशाटिनी-संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) | वा सत, माड़ो, कलफ़ । यौ० (सं०) निशाराक्षसी, अभिसारिका। वसान =प्रभात । निशात-वि० (स०) शानदिया हुआ, पैनाया | निशि-संज्ञा, स्त्री० (सं०) रात्रि, रात । हुश्रा। निशिकर-संज्ञा, पु० (सं०) चन्द्रमा । निशाधीश-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) चन्द्रमा, निशिवर-संज्ञा, पु० (सं०) राक्षस, उल्लू । निशापति, निशाधिपति ।। निशिचर-राज:---- संज्ञा, पु० यौ० (सं०) निशान - संज्ञा, पु. (फ़ा०) लक्षण, चिन्ह, विभीषण, निशिचरेश।। दाग़, धब्बा, पता, रण का बाजा। "हने निशित-वि० (सं०) पैना, तीखा। निसाना'-रामा० । यौ०-नाम-निशान | निशिनाथ-संज्ञा, पु० (सं०) चन्द्रमा । -लक्षण या चिन्ह, थोड़ा सा बचा हुश्रा, निशिपाल-संज्ञा, पु० (सं०) चन्द्रमा, नामो-निशाँ न रहना-कुछ भी शेष न | निशिपालक, एक छन्द (पिं०)। रहना। "बाकी मगर है फिर भी नामोनिशां निशिवासर:-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) दिनहमारा"-इक० । मुहा०—निशान देना रात, रातो दिन, सदा। "निशि वासर ताकहँ (करना,लगाना)-किसी की पहिचान या | भलो, मानै राम-इतात".-- तु.। पता करना, चिन्ह लगाना । ध्वजा, पताका, | निशीथ- संज्ञा, पु० (सं०) थई रात्रि, श्राधी झंडा । मुहा०--निशान गाड़ना (खड़ा रात। "निशीथे तम उद्भूते जायमाने जना. करना)-झंडा गाड़ना । मुहा०-किसी | र्दने'-भाग० । बात का निशान उठाना या खड़ा निशीथिनी--संज्ञा, स्त्री० (सं०) रात, रात्रि । करना-मुखिया या अगुश्रा बन कर लोगों | निशंभ -संज्ञा, पु. ( सं०) हिंसा, मारण, को अपना अनुचर बनाना। | वध, एक दैत्य। For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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