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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir निवारण निशा -- १०२३ निवारण -- संज्ञा, पु० (सं०) निवारन (दे०)। देववलि, भोग । मुहा०-निवेद लगाना निवृत्ति, छुटकारा, रोक, निरोध । “करिय -देवार्पित करना। जतन जेहि होय निवारन"-रामा० । वि. निवेदक-संज्ञा, पु० (सं०) निवेदन या प्रार्थना निवारणीय। | करने वाला, प्रार्थी। निवारना*- स० क्रि० दे० (सं० निवारण) निवेदन-संज्ञा, पु० (सं०) समर्पण, प्रार्थना, रोकना, हटाना, दूर करना, मिटाना, मना विनय, विनती। वि० निवेदनीय। या निषेध करना । "सैनहि रघुपति लखन | निवेदना*-स० कि० दे० (हि. निवेदन) निवारे"- रामा० । प्रार्थना या विनती करना, खाने की वस्तु निवारा-संज्ञा, पु. (दे०) निवाड़ा, जल- आगे रखना, अर्पित करना, नैवेद्य चढ़ाना । क्रीड़ा, नाव फेरना। निवेदित- वि० (सं०) निवेदन या अर्पित निधारि-पू० का० स० कि० दे० (हि. __ किया हुआ। "तुमहिं निवेदित भोजन करहीं" निवारना ) बचा कर, रोक कर, मना करके, -- रामा। बरज कर। निवेरना-स० क्रि० दे० (हि० निबटाना) निवारित-वि. (सं०) हटका, बचाया, निबटाना, चुकाना, बेबाक या पूर्ण करना, रोका, मना किया हुआ । हटाना, "जै जै कृष्ण टेरत निबेरत सुभट भीर'-अ० व०। निवारी-निवाड़ो-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० नेवाली या नमाली ) एक लता और उसके | निवेरा:-वि० (हि० निवेरना) छंटा या चुना हुश्रा, नया, अनोखा। फूल । "निवाड़ी की अजब साकी मीठी निवेश--संज्ञा, पु० (सं०) पड़ाव, डेरा खेमा, है बू"-सौदा०। प्रवेश, घर, निवास। निघाला-संज्ञा, पु. (फा०) कौर, ग्रास ।। निशंक-वि० (सं० निःशंक) निडर, निर्भय, निवास-संज्ञा, पु० (सं०) घर, मकान, स्थान, बेधड़क, अशंक, संदेह-रहित, निसंक (दे०)। रहाइस । “ऊँच निवास नीच करतूती' निश्शंक संज्ञा, स्त्री० निशंकता । रामा। निशंग-संज्ञा, पु० दे० (सं० निषंग) तरकस, निवासस्थान-संज्ञा, पु. यो० (सं.) घर, भाथा, तूणीर, तूनीर, (दे०) निखंग (दे०)। मकान, जगह, ठौर, रहने की जगह । निश-संज्ञा, स्त्री० (सं०) निशा, रात, रात्रि । निवासी-वि० संज्ञा, पु. (सं० निवासिन् ) निशचर-निश्चर- संज्ञा, पु. (सं०) राक्षस, वासी, रहने या बसने वाला। स्त्री निवा | निसचर (दे०)। "पावा निसचर-कटक सिनी । “जेहि चाहत बैकंठ-निवासी"-स्फु०। भयंकर"- रामा० । स्त्री. निशचरी । निविड़-वि० (सं०) घना, गहिरा । "कबहूँ "नाम लंकिनी एक निशचरी"-रामा । दिवस मँह निबिड़ तम"--रामा० । निशमन-संज्ञा, पु० (सं०) देखना-सुनना । निविष्ट-वि० (सं०) तस्पर, लगा हुश्रा, निशान्त-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) रात्रि का एकाग्र, घुसा या बैठा हुया, बाँधा हुआ। अंत, निशावसान, प्रातःकाल, तड़का, सबेरा, निधीत-संज्ञा, पु. (सं०) गले से लटका भोर, प्रभात । हुआ, जनेऊ, चादर। निशान्ध–वि० यौ० (सं०) जिसे रात्रि को निवृत्ति-संज्ञा, स्त्री० (सं०) छुटकारा, मुक्ति, दिखलाई न दे, उल्लू । मोक्ष निर्वाण । निशा-संज्ञा, स्त्री. (सं०) राति, रात्रि, निवेद, नैवेद -संज्ञा, पु० दे० (सं० नैवेद्य) | रजनी, हरदो, निसा (दे०) । For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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