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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७६ भारतीय पुरालिपि-शास्त्र अभिव्यक्ति अधिकांश रूप में दो लकीरों से होती है जो या तो समांतर होती हैं, जैसे, धू (26, Y) और यू (33, VII) में या अन्य रूप में जैसे पू (28, VIII, XVI) में । 6. गे जैसे चिह्नों में हुक की शक्ल की ए की मात्रा के अवशिष्ट वर्तमान हैं । ऊपर से थोपा त्रिभुज पहले इसी रूप में सिकुड़ा (दे. ऊपर 4, इ. 1)। खे (10. गे III), (11, III) और ग्ये (42, VII) में ए की मात्रा की लकीर नीचे की ओर बायें से दायें झुक रही है। इसका निर्वचन भी इसी प्रकार करना होगा। जे (15, VII), टे (18, V), ठे (19, XII) और थे (24, XII) में मात्रा दूसरी ओर बीच में लगी है। खे में यह प्रायः हुक के बाएं जुड़ती है। 7. ऐ की मात्रा त्रै (23, IX) और 2 (24, x), दोनों गिरनार में, और मै (32, XII, शिद्दापुर) में ही मिलती है। 8. ओ की मात्रा में ओ अक्षर का मूल रूप पूर्णतया सुरक्षित है (दे. ऊपर 4, इ, 1)। बाद में इस मात्रा का एक घसीट रूप विकसित होता है जिसमें दो डंडे एक ही ऊंचाई पर लगते हैं, जैसे गो (11, V, दिल्ली-शिवालिक) और हो (40, V, दिल्ली-शिवालिक) तथा ईरानी सिग्लोई के यो में । मो (32, VII, X; जौगड़ पृथक आदेशलेख, मथिया, रधिया और गिरनार) में ओ की मात्रा इसी तरह बनी है । इसका एक दूसरा रूप भी है जिसमें दोनों डंडे मध्य में एक-दूसरे के उलट लगते हैं। इससे पता चलता है कि ई. पू. तीसरी शती में तुल्य रूप मा और में उसी प्रकार वर्तमान थे जैसे उत्तरकाल में; देखिए फलक III, 30, X, XVII कालसी आदेशलेख V, पंक्ति 14 के नो में ओ की मात्रा फंदेदार है। यह फलक III, 33, XX के लो की ओ मात्रा और बाद के चिह्नों से मिलती है। ___9. अनुस्वार प्रायः पूर्वगामी मात्रिका के मध्य में दूसरी तरफ लगता है, जैसे मं (32, VIII) में। किंतु इ की मात्रा के साथ दिल्ली-शिवालिक, दिल्ली-मेरठ, मथिया, रधिया, जौगड़ और धौली में यह सदा स्वर के कोण के वीच लगता है, जैसे टिं (18, VI) में। कुछ ऐसे भी उदाहरण हैं जिनमें बाद की तरह यह मात्रिका के ऊपर भी लगता है। कभी-कभी यह अक्षर के नीचे भी उतर आता है, जैसे में (32, II) में, देखि. 4, आ. 2 (च)। (उ.) संयुक्ताक्षर अशोक के आदेशलेखों (42, II-VII, X-XII; 43, V-VIII, 76 For Private and Personal Use Only
SR No.020122
Book TitleBharatiya Puralipi Shastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGeorge Buhler, Mangalnath Sinh
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1966
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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