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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मौय-लिपि नासिक सं. 20 (स्त. XIII) और आभीर राजा ईश्वरसेन (स्त. XIV ) के समय की लिपि, समय ईसा की दूसरी शती; कुड़ा और जुन्नार के अभिलेखों (स्त. XV, XVI) की उसी जिले की आलंकारिक ब्राह्मी जिसमें दक्षिणी ब्राह्मी की विशेषताएँ और उभर कर आई हैं, काल-ईसा की दूसरी शती; जग्गयपेठ से प्राप्त पूर्वी डेक्कन की अति आलंकारिक ब्राह्मी (स्त. XVII, XVIII), काल-तीसरी शताब्दी ई. (?); और पल्लव राजा शिवस्कंदवर्मन के प्राकृत के दानपत्र की प्राचीन घसीट लिपि (स्त. XIX-XX), काल-चौथी शताब्दी ई. (?) । ____16. पुरानी मौर्य-लिपि : फलक I __ अ. भौगोलिक विस्तार और उसके प्रयोग की अवधि156 पुरानी मौर्य-लिपि का इस्तेमाल सारे भारत में था। सिंहल में भी कमसे-कम ई. पू. 250 के लगभग इसकी पहुंच हो गई थी, क्योंकि राजा अबय गामिनि के समय के दो सिंहली अभिलेखों157 में, जो संभवतः ई. पू. दूसरी शती के अंत या पहली शती के शुरू के हैं, जो अक्षर मिलते हैं उनका विकास अशोक के अभिलेखों के अक्षरों से हुआ मालूम पड़ता है। दक्षिणी बौद्ध परंपराओं से पता चलता है कि अशोक और सिंहल के तिस्स में घनिष्ठ संबंध था। इससे यही संभव प्रतीत होता है कि सिंहल में ब्राह्मी लिपि मगध से गई होगी। लेकिन यह भी संभव है कि अशोक से पहले के उन भारतीयों ने सिंहल में ब्राह्मी लिपि का प्रचार किया हो जो वहीं जाकर बस गये थे । 158 निश्चयपूर्वक यह नहीं कहा जा सकता कि मौर्य-लिपि का प्रारंभ कब से होता है । किंतु ईरानी सिग्लोई पर मिलने वाले कुछ अक्षरों की शक्ल से (दे. ऊपर 15, 1) यही संभव प्रतीत होता है कि इसके कुछ अपेक्षाकृत विकसित रूप भी भारत में अखमनी शासन के अंत (ई. पू. 331) से पहले विद्यमान थे। इसके प्राचीनतम प्राथमिक रूप तो निस्संदेह इससे भी काफी पुराने हैं जैसा कि उपरिचचित परंपराओं से भी संभाव्य प्रतीत होता है। मौर्य-लिपि की निचली सीमा अशोक के शासन काल के अंत (ई.पू. 221) से बहुत दूर नहीं रही होगी। यह 156. मिला बु ई स्ट. III, 2, 49 तथा आगे। 157. ई. मूलर ऐंसि. इन्स. फ्राम सिलोन फल. I. 158. मिला. एम. डी. जिल्वा विक्रमसिंघ, ज. रा. ए. सो. 1895, 895 तथा आग। 67 For Private and Personal Use Only
SR No.020122
Book TitleBharatiya Puralipi Shastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGeorge Buhler, Mangalnath Sinh
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1966
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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