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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भारतीय पुरालिपि-शास्त्र लिखति, लेख, लेखक, अक्षर जैसे पुराने शब्दों का प्रयोग हुआ है। लिखने की सामग्री काष्ठ, बाँस, पण्ण (पत्ते) और सुवण्णपट्ट (सोने के पत्र) का उल्लेख है। इससे इन उद्धरणों को प्राचीनता सिद्ध होती है, जब कड़ी सामग्री पर अक्षर खोदे जाते थे। यद्यपि निआर्कस तथा कटियस के वक्तव्यों में सिकंदर के आक्रमण के समय के भारत में लेखन-सामग्री के जो संदर्भ हैं उनसे यही संभावना प्रतीत होती है कि ई० पू० चौथी शती में रोशनाई का पता था और यद्यपि ई० पू० तीसरी या दूसरी शती के अंधेर के स्तूप सं० III से प्राप्त एक धातु-मंजूषा के ढक्कन के भीतरी भाग में एक मसि-अभिलेख भी है तथापि रोशनाई के प्रयोग का कोई चिह्न शेष नहीं है । सिंहली पोथियों में लिपि, लिबि, दिपि, दिपति, दिपपति, लिपिकर और लिबिकर शब्दों का प्रयोग नहीं मिलता। इसमें प्रथम 6 का प्रयोग अशोक के आदेश लेखों में हुआ है तथा अंतिम दो पाणिनी के व्याकरण में आये हैं जिसका उल्लेख ऊपर किया जा चुका है। दिपि और लिपि का मूल संभवतः प्राचीन ईरानी दिपि से है। ये शब्द ई० पू० 500 में पंजाब पर दारा के आक्रमण से पूर्व भारत में न पहुँचे होंगे । दिपि ही बाद में लिपि हो गया ।48 इ विदेशी ग्रंथ निआर्कस ने लिखा है कि हिंदू लोग कुंदी किये सूती कपड़ों पर पत्र लिखते हैं।49 पेड़ों की छाल के भीतरी मुलायम हिस्से पर पत्र लिखने का उल्लेख क्यू० कटियस ने किया है ।। ये उल्लेख ई० पू० चौथी शताब्दी के अंतिम चरण के हैं। कर्टियस के उल्लेख से स्पष्ट है कि लिखने के लिए उस समय भोज-पत्र (birch bark) का प्रयोग होता था। इन दोनों लेखकों की साक्षी से पता चलता है कि ई० पू० 327-325 में लिखने के लिए दो पृथक्-पृथक् स्थानीय सामग्रियाँ काम में आती थीं। इससे यही निष्कर्ष निकलता है कि उस समय यहाँ प्रायः लोगों को लिखने का ज्ञान था और उनके लिये यह कोई नई बात न थी। मेगस्थनीज का अंश 36 अ इनसे कुछ बाद का है।51 इससे पता चलता है 47. कनिंघम, भिलसा स्तूप पृ. 349 फल. 30, 6 48. बु, इं. स्ट. III, 21 तथा आगे; वेस्टरगार्ड, ज्वोई आभन्डल. 33 49. स्ट्राबो, XV, 717 50. हिस्ट्री अलेक्जा. VIII, 9; मिला. सी. मूलर, फैग. हिस्ट्री ग्रीक, 2, 421 ____51. सी. मूलर, वही 430 12 For Private and Personal Use Only
SR No.020122
Book TitleBharatiya Puralipi Shastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGeorge Buhler, Mangalnath Sinh
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1966
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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